पर्यावरणीय और तकनीकी बदलावों के बीच उभर रहीं मानवाधिकारों की नई चुनौतियां, बोले पूर्व राष्ट्रपति कोविन्द
पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने कहा है कि तकनीकी और पर्यावरणीय बदलाव मानवाधिकारों के लिए चुनौतियां पैदा कर रहे हैं। उन्होंने राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग के स्थापना दिवस पर मानवाधिकारों की रक्षा के लिए करुणा और समावेश पर जोर दिया। आयोग ने पिछले वर्ष हजारों शिकायतों का निपटारा किया और न्याय को सुलभ बनाने के प्रयास किए जा रहे हैं।

पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद। (फाइल फोटो)
डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविन्द ने गुरुवार को आगाह किया कि तेजी से हो रहे तकनीकी और पर्यावरणीय बदलाव मानवाधिकारों के लिए नई चुनौतियां पैदा कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि आर्थिक प्रगति मानवीय गरिमा के अनुरूप होनी चाहिए।
राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग (एनएचआरसी) के 32वें स्थापना दिवस और कैदियों के मानवाधिकारों पर राष्ट्रीय सम्मेलन में कोविन्द ने कहा, भारत ने मानवाधिकारों की रक्षा के लिए मजबूत संवैधानिक और संस्थागत ढांचा तैयार किया है, लेकिन सच्ची प्रगति करुणा और समावेश पर निर्भर करती है। मानवाधिकार केवल वैधानिक अधिकार नहीं हैं, बल्कि यह नैतिक और सभ्यतागत चेतना की अभिव्यक्ति हैं।
कोविंद ने की एनएचआरसी की तारीफ
पिछले तीन दशकों में बेजुबानों को आवाज देने के लिए एनएचआरसी की प्रशंसा करते हुए कोविन्द ने कहा कि बंधुआ मजदूरी, मानव तस्करी और महिलाओं, बच्चों तथा दिव्यांगों के अधिकारों के लिए इसके प्रयासों ने राष्ट्र के अंतरात्मा पर अमिट छाप छोड़ी है।
कोविन्द ने कहा, हिरासत में बंद व्यक्तियों के साथ अमानवीय व्यवहार संवैधानिक और नैतिक मूल्यों के विरुद्ध है। पूर्व राष्ट्रपति ने मानसिक स्वास्थ्य को मानवाधिकार के रूप में मान्यता देने पर भी बल दिया।
इस अवसर पर एनएचआरसी अध्यक्ष जस्टिस वी. रामसुब्रमण्यम ने कहा कि आयोग ने 1993 में अपनी स्थापना के बाद से लगभग 24 लाख मामलों का निपटारा किया है। पिछले वर्ष आयोग ने 73,849 शिकायतें दर्ज कीं, 108 मामलों का स्वत: संज्ञान लिया और 38,063 मामलों का निपटारा किया।
रामसुब्रमण्यन ने कहा, आयोग मानवाधिकार उल्लंघन के पीडि़तों की अपेक्षाओं को पूरा करने का प्रयास कर रहा है। एनएचआरसी ग्लोबल साउथ (पिछड़े देशों) के राष्ट्रीय मानवाधिकार संस्थानों के साथ अपने संबंधों को मजबूत कर रहा है।
एनएचआरसी के महासचिव ने क्या कहा?
एनएचआरसी के महासचिव भरत लाल ने एचआरसीनेट जैसी डिजिटल पहलों के माध्यम से न्याय को सुलभ बनाने के एनएचआरसी के प्रयासों के बारे में बताया। उन्होंने कहा, जेलों को पुनर्वास, शिक्षा और सुधार के संस्थान के रूप में देखा जाना चाहिए।
संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद में 2026-28 के कार्यकाल के लिए भारत के हाल ही में निर्विरोध पुनर्निर्वाचन पर लाल ने कहा कि यह भारत की मानवाधिकारों के प्रति अटूट प्रतिबद्धता और वैश्विक क्षेत्र में उसकी बढ़ती आवाज को रेखांकित करता है।
उन्होंने कहा, सरकार और हर नागरिक का साझा नैतिक कर्तव्य है कि वे सुनिश्चित करें कि कोई भी पीछे न छूटे और हर व्यक्ति सम्मान और बिना किसी डर के जीवन जीए।
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