क्या नेहरू सरकार ने नियम तोड़कर बनाया था CJI, बीआर गवई ने क्यों किया 61 साल पुराने किस्से का जिक्र?
सीजेआई बीआर गवई (CJI BR Gavai) ने जजों की नियुक्ति प्रक्रिया और कॉलेजियम सिस्टम को लेकर उठे सवालों पर बोलते हुए नेहरू और इंदिरा गांधी का नाम लेकर कांग्रेस सरकार की गलतियां याद दिलाईं। कहा कि सरकार ने मुख्य न्यायाधीश की नियुक्ति करते समय दो बार नियमों को नजरांदाज किया था। नेहरू ने किसे बनाया सीजेआई?

डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। देश में न्यायाधीशों की नियुक्ति करने के लिए बने कॉलेजियम सिस्टम को लेकर समय-समय पर सवाल उठते रहे हैं। कई दफा कॉलेजियम सिस्टम को लेकर सुप्रीम कोर्ट और केंद्र सरकार के बीच तकरार भी देखने को मिलती रही है। इस बीच प्रधान न्यायाधीश बीआर गवई (CJI BR Gavai) ने जजों की नियुक्ति प्रक्रिया को लेकर नेहरू और इंदिरा गांधी का नाम लेकर कांग्रेस सरकार की गलतियां याद दिलाईं। उन्होंने कहा कि सरकार ने मुख्य न्यायाधीश की नियुक्ति करते समय दो बार सबसे सीनियर जजों को नजरअंदाज कर दिया था।
CJI बीआर गवाई ने जजों की नियुक्ति को लेकर यह टिप्पणी ब्रिटेन के सुप्रीम कोर्ट की ओर से आयोजित एक गोलमेज सम्मेलन में की। सीजेआई यहां 'न्यायिक वैधता और सार्वजनिक विश्वास बनाए रखना' विषय पर संबोधित कर रहे थे।
CJI बीआर गवई ने क्या कहा?
सीजेआई ने कहा -
भारत में न्यायिक नियुक्तियों में प्राथमिकता विवाद का एक बड़ा मुद्दा है। साल 1993 तक सुप्रीम कोर्ट और हाई कोर्ट में जजों की नियुक्ति में आखिरी फैसला कार्यपालिका (सरकार) का होता था। उस वक्त देश के प्रधान न्यायाधीश की नियुक्ति में सरकार ने दो बार न्यायाधीश के फैसले की अनदेखी करते हुए परंपरा के उलट फैसला किया था।
साल 1964 में सीजेआई पद व्यवस्था के मुताबिक, जस्टिस सैयद जफर इमाम और जस्टिस हंस राज खन्ना को बनाया जाना था, लेकिन उस वक्त जवाहरलाल नेहरू सरकार ने दोनों वरिष्ठ जजों में से किसी को भी सीजेआई नहीं बनाया। दोनों को स्वास्थ्य संबंधी समस्या से पीड़ित होने की बात कहकर जस्टिस पी बी गजेंद्रगडकर को प्रधान न्यायाधीश का पद सौंप दिया था।
आखिर कौन हैं, वो सीजेआई थे, जिनकों नेहरू सरकार में सीनियर जजों को नजरअंदाज कर चीफ जस्टिस नियुक्त गिया था। आइए हम आपको बताते हैं...
सीजेआई गवई ने नेहरू के समय सीजेआई बनने वाले जिन न्यायाधीश का जिक्र किया, उनका नाम न्यायमूर्ति पी.बी. गजेंद्रगडकर (P.B. Gajendragadkar) है।
न्यायमूर्ति पी.बी. गजेंद्रगडकर देश के सातवें मुख्य न्यायाधीश थे। उनका पूरा नाम प्रहलाद बालाचार्य गजेंद्रगडकर था।
पी बी गजेंद्रगडकर का जन्म 16 मार्च, 1901 में बंबई प्रेसीडेंसी के सतारा के ब्राह्मण परिवार गजेंद्रगडकर बालाचार्य के घर हुआ था। उनके पिता बालाचार्य संस्कृत के विद्वान थे।
पी.बी. गजेंद्रगडकर ने 1924 में डेक्कन कॉलेज (पुणे) से पोस्ट ग्रेजुएशन और 1926 में आईएलएस लॉ कॉलेज से एलएलबी की थी। इसके बाद वह अपीलीय पक्ष में बम्बई बार में शामिल हो गए। साल 1945 में पी बी गजेंद्रगडकर को बंबई हाईकोर्ट का जज नियुक्त किया गया था। फिर जनवरी, 1956 में पदोन्नत सर्वोच्च न्यायालय की बेंच में शामिल किया गया।
इसके बाद साल 1 फरवरी, 1964 में पी.बी. गजेंद्रगडकर भारत के प्रधान न्यायाधीश बने। न्यायमूर्ति पी.बी. गजेंद्रगडकर 15 मार्च, 1966 तक सीजेआई के रहे।
सीजेआई पद से सेवानिवृत्त होने के बाद केंद्रीय विधि आयोग, राष्ट्रीय श्रम आयोग, महंगाई भत्ता आयोग, प्रेस ट्रस्ट ऑफ इंडिया, बैंक पुरस्कार आयोग, जम्मू-कश्मीर जांच आयोग, बनारस हिंदू विश्वविद्यालय जांच आयोग और भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान जांच आयोग जैसे कई आयोगों का नेतृत्व किया।
पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के अनुरोध पर उन्होंने दक्षिण भारत में गांधीग्राम ग्रामीण संस्थान के मानद कार्यालय का आयोजन किया।
पी.बी. गजेंद्रगडकर पर लगते रहे कई आरोप?
आरोप नंबर -1
न्यायमूर्ति पी.बी. गजेंद्रगडकर को नेहरू सरकार में जज नियुक्ति व्यवस्था के विरुद्ध जाकर देश का प्रधान न्यायाधीश बनाया गया था। इस कारण उन पर नेहरू और इंदिरा का विशेष हाथ होने के आरोप लगते रहे।
आरोप नंबर-2
जब सीजेआई के पद से रिटायर हुए तो न्यायाधीश शांति भूषण का नाम आया, लेकिन गजेंद्रगडकर उनकी उम्र का हवाला देते हुए नियुक्ति रोक दी थी, जब उस वक्त शांति भूषण 40 साल के थे। न्यायाधीश शांति भूषण का नाम फिर कभी सीजेआई के लिए आगे नहीं बढ़ाया गया और वे सीजेआई की कुर्सी के बेहद नजदीक पहुंचकर भी सीजेआई नहीं सके। बाद में जब जनता पार्टी की सरकार बनी तो न्यायाधीश शांति भूषण मोरारजी देसाई की सरकार में कानून मंत्री बने थे।
शांति भूषण बने कानून मंत्री तो सताने लगा था डर
गजेंद्रगडकर को रिटायरमेंट के बाद लॉ कमीशन का चेयरमैन बना दिया गया। उसके कुछ दिनों बाद न्यायाधीश शांति भूषण मोरारजी देसाई की सरकार में कानून मंत्री बन गए थे, तब गजेंद्रगडकर को अपनी चेयरमैन के पद से हटाए जाने का डर सताने लगा था।
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इसका जिक्र करते हुए पूर्व कानून मंत्री शांति भूषण ने अपनी आत्मकथा में लिखा- 'लॉ कमीशन के चेयरमैन रहते हुए पी बी गजेंद्रगडकर उनसे कई बार मिले और हर बार पद से न हटाने के लिए मान-मनुहार की।'
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Source
- सुप्रीम कोर्ट की आधिकारिक वेबसाइट - www.sci.gov.in
- सुप्रीम कोर्ट ऑब्जर्वर वेबसाइट - www.scobserver.in
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