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    विपक्ष क्यों मांग रहा है डिप्टी स्पीकर का पद? लोकसभा में क्या हैं इसके अधिकार और जिम्मेदारियां

    Updated: Tue, 25 Jun 2024 05:54 PM (IST)

    लोकसभा अध्‍यक्ष को लेकर पक्ष-विपक्ष के बीच टकराव जारी है। एनडीए की ओर से दोबारा ओम बिरला को स्‍पीकर पद के प्रत्‍याशी हैं तो विपक्ष की ओर से कांग्रेस ने के. सुरेश बिरला मैदान में हैं। दोनों प्रत्‍याशियों ने नामांकन कर दिया है। इस बीच राहुल गांधी ने कहा कि वह एक शर्त पर स्‍पीकर को समर्थन दे देंगे लेकिन डिप्‍टी स्‍पीकर विपक्ष का बनाया जाए।

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    Opposition wanted to have deputy speaker: लोकसभा की प्रतीकात्‍मक तस्‍वीर

     डिजिटल डेस्‍क, नई दिल्‍ली। लोकसभा के पहले सत्र आज यानी मंगलवार को दूसरा दिन है। इधर, लोकसभा स्‍पीकर को लेकर रकार और विपक्ष के बीच टकराव बढ़ गया है। एनडीए की ओर से ओम बिरला तो विपक्ष की ओर से कांग्रेसी सांसद के. सुरेश ने लोकसभा अध्‍यक्ष पद के लिए नामांकन किया है। देश के इतिहास में पहली बार लोकसभा अध्यक्ष पद के लिए चुनाव होगा। 26 जून सुबह 11 अध्यक्ष पद के लिए वोटिंग होगी।

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    कांग्रेस सांसद राहुल गांधी का कहना है कि राजनाथ सिंह ने कांग्रेस अध्‍यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे को स्‍पीकर के समर्थन के लिए कॉल किया था। विपक्ष ने साफ कर दिया है कि हम स्‍पीकर को समर्थन दे देंगे, लेकिन डिप्‍टी स्‍पीकर का पद विपक्ष को मिलना चाहिए। इस पर राजनाथ सिंह ने दोबारा कॉल करने की बात की थी, लेकिन अभी तक कॉल नहीं आया है।

    सवाल ये हैं कि विपक्ष ने डिप्‍टी स्‍पीकर का पद क्यों मांगा, क्या यह पद लोकसभा स्‍पीकर जितना ही ताकतवर होता है? यहां पढ़िए...

    डिप्‍टी स्‍पीकर कौन होता है?

    लोकसभा का उपाध्‍यक्ष (Deputy Speaker) संसद के निचले सदन का दूसरा सर्वोच्च पदाधिकारी होता है। डिप्‍टी स्‍पीकर का चुनाव भी स्‍पीकर की तरह ही लोकसभा के सदस्‍य करते हैं।

    भारतीय संविधान के अनुच्छेद 93 लोकसभा के उपाध्यक्ष का उल्लेख है। अनुच्छेद 93 के मुताबिक, लोकसभा के सदस्य दो सदस्यों को क्रमशः अध्यक्ष और उपाध्यक्ष के तौर पर चुनेंगे। अगर इन दोनों में से कोई भी पद रिक्त होता है तो सदन उसका जल्द से जल्द फिर चुनाव करेगा।

    स्पीकर सौंप सकता है डिप्‍टी स्‍पीकर को अपना इस्‍तीफा

    खास बात यह है कि डिप्‍टी स्‍पीकर लोकसभा स्‍पीकर के अधीनस्‍थ नहीं, बल्कि सीधे सदन के प्रति उत्तरदायी होते हैं। अगर दोनों में कोई भी इस्‍तीफा देना चाहता है तो उन्हें अपना इस्तीफा सदन को प्रस्तुत करना होगा। यानी कि अगर स्पीकर अपना इस्‍तीफा देता है तो वह डिप्‍टी स्‍पीकर को सौंप सकता है। अगर डिप्‍टी स्‍पीकर का पद रिक्त है तो महासचिव को इस्‍तीफा दे सकता है और साथ ही सदन को इसकी सूचना देनी होती है।  

    डिप्‍टी स्‍पीकर का चुनाव और कार्यकाल

    • लोकसभा में डिप्‍टी स्‍पीकर का चयन लोकसभा की प्रक्रिया और कार्य संचालन नियमावली के नियम 8 के तहत किया जाता है।
    • डिप्‍टी स्‍पीकर चुनाव लोकसभा के सदस्यों द्वारा लोकसभा स्पीकर का चुनाव करने के तुरंत बाद ही किया जाता है।
    • लोकसभा अध्यक्ष ही उपाध्यक्ष के चुनाव तारीख तय करता है। डिप्‍टी स्‍पीकर का चुनाव सामान्‍य तौर पर दूसरे सत्र में होता है।
    • स्पीकर की तरह ही डिप्‍टी स्‍पीकर भी आमतौर पर लोकसभा के कार्यकाल (5 वर्ष) तक अपने पद पर बना रहता है।

    डिप्‍टी स्‍पीकर को कब पद से हटाया जा सकता है?

    • अगर वह लोकसभा के सदस्य नहीं रह जाते।
    • अगर वह खुद लिखकर अपना इस्तीफा दे देते हैं।
    • लोकसभा के सभी सदस्यों द्वारा बहुमत से एक प्रस्ताव पारित करके भी हटाया जाए। यह प्रस्ताव 14 दिनों की अग्रिम सूचना देने के बाद ही लाया जा सकता है।

    डिप्‍टी स्‍पीकर की जिम्‍मेदारियां और अधिकार

    • स्पीकर का पद रिक्त होता है या फिर स्पीकर सदन में अनुपस्थित होते हैं, तब उप-सभापति ही कामकाज संभालता है।
    • इन दोनों ही स्थितियों में डिप्‍टी स्‍पीकर को लोकसभा अध्यक्ष की तरह ही फैसले लेने का अधिकार होता है।
    • अगर स्‍पीकर किसी अधिवेशन से अनुपस्थित होता है तो डिप्‍टी स्‍पीकर दोनों सदनों की संयुक्त बैठक की भी अध्यक्षता करता है।
    • मतों के बराबर होने की स्थिति में उप-सभापति अध्यक्ष की तरह ही निर्णायक मत का विशेषाधिकार रखता है।
    • उप-सभापति के पास एक विशेष विशेषाधिकार होता है कि जब भी उसे किसी संसदीय समिति का सदस्य नियुक्त किया जाता है तो वह स्वतः ही उसका अध्यक्ष बन जाता है।

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    डिप्‍टी स्‍पीकर क्‍या नहीं कर सकता  

    1- स्‍पीकर की तरह ही डिप्‍टी स्‍पीकर भी सदन की अध्‍यक्षता करते समय किसी भी विधेयक या अन्‍य मुद्दे को लेकर वोटिंग नहीं कर सकता। वह केवल बराबरी की स्थिति में ही निर्णायक मत का प्रयोग कर सकता है।

    2- जब डिप्‍टी स्‍पीकर को हटाने का प्रस्‍ताव सदन में विचाराधीन हो, ऐसी स्थिति में वह सदन की बैठक की अध्यक्षता नहीं कर सकता। भले ही वह सदन में उपस्थित हो।

    3- जब स्‍पीकर सदन की अध्यक्षता करता है तो डिप्‍टी स्‍पीकर सदन के किसी भी अन्य सामान्य सदस्य की तरह होता है। वह सदन में बोल सकता है, उसकी कार्यवाही में भाग ले सकता है और सदन के समक्ष किसी भी प्रश्न पर मतदान कर सकता है।

    कौन-कौन बना डिप्टी स्‍पीकर ?

    क्रमांक नाम  कार्यकाल
    1 डॉ. एम थम्बीदुरई 13 अगस्‍त 2014 - 25 मई  2019

    22 जनवरी 1985 - 27 नवंबर 1989

    2 करिया मुंडा  3 जून 2009 - 18 मई 2014
    3 चरणजीत सिंह अटवाल 9 जून 2004 - 18 मई 2009
    4 पी. एम. सैईद 27 अक्‍तूबर 1999 - 6 फरवरी 2004
    5 सूरज भान 12 जुलाई 1996 -4 दिसंबर 1997
    6 एस मल्लिकार्जुनैया 13 अगस्‍त 1991 - 10 मई 1996
    7 शिवराज वी पाटिल 19 मार्च 1990 - 13 मार्च 1991
    8 गोविंदस्‍वामी लक्ष्मणन 01 दिसंबर 1980 - 31 दिसंबर 1984
    9 गोडे मुराहरी 01 अप्रैल 1977 - 22 अगस्‍त 1979
    10 जॉर्ज गिल्बर्ट स्वेल 27 मार्च 1971 - 18 जनवरी 1977
    11 रघुनाथ केशव खाडिलकर 28 मार्च 1967 - 01 नवंबर 1969
    12 एस वी कृष्णमूर्ति राव 23 अप्रैल 1962 - 03 मार्च 1967
    13 सरदार हुकुम सिंह 17 मई 1957 - 31 मार्च 1962

    20 मार्च 1956 - 04 अप्रैल 1957

    14 मदभूषि अनंतशयनं अयंगार 30 मई 1952 - 07 मार्च 1956

    बता दें कि 10वीं लोकसभा तक लोकसभा अध्यक्ष और उपाध्यक्ष दोनों आमतौर पर सत्तारूढ़ दल से होते थे। 11वीं लोकसभा के बाद आम सहम‍ति से अध्यक्ष सत्तारूढ़ दल (या सत्तारूढ़ गठबंधन) से आता है और उपाध्यक्ष का पद मुख्य विपक्षी दल को जाता है। हालांकि, 16वीं लोकसभा से फिर स्‍पीकर और डिप्‍टी स्पीकर सत्तारूढ़ दल के ही बनाए गए। 

    (सोर्स: संसद और लोकसभा की आधिकारिक वेबसाइट)

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