नई दिल्ली, विवेक तिवारी । हर साल घने कोहरे के चलते रेल और विमान सेवाएं बड़े पैमाने पर प्रभावित होती हैं। विजिबिल्टी कम होने के चलते सड़कों पर काफी एक्सीडेंट भी होते हैं। यही नहीं, भविष्य में हालात और खराब होने वाले हैं। मौसम वैज्ञानिकों का कहना है कि आने वाले सालों में कोहरा और ज्यादा घना होगा। उत्तर भारत, खास तौर पर गंगा की तराई वाले इलाकों में घना कोहरा बढ़ेगा। सर्दियों में कोहरे के दिन भी ज्यादा होंगे।

भारत और कनाडा के वैज्ञानिकों ने एक अध्ययन में दावा किया है कि 2045 तक सर्दियों के मौसम में कोहरे के स्तर में 57 फीसदी से अधिक की बढ़ोतरी होगी। वहीं, घने कोहरे वाले दिन 154 फीसदी अधिक होंगे। मौसम विभाग के मुताबिक फिलहाल दिसंबर और जनवरी में 18 से 22 दिन कोहरा घना होता है। यानी, आने वाले सालों में आपको डेढ़ महीने तक घने कोहरे का सामना करना पड़ सकता है। इससे सर्दियों में लंबे समय तक विजिबिल्टी काफी कम रहेगी। वैज्ञानिकों के मुताबिक जलवायु परिवर्तन, बढ़ता प्रदूषण और ग्रीन हाउस गैसों का उत्सर्जन कोहरा बढ़ने की मुख्य वजहें होंगी।

कोहरा 57 फीसदी ज्यादा घना होगा

इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ ट्रॉपिकल मेट्रोलॉजी (IITM) और कनाडा स्थित विक्टोरिया बीसी यूनिवर्सिटी के वैज्ञानिकों ने CMIP6 मॉडल के जरिए ये अध्ययन किया। इस अध्ययन में आठ वायुमंडलीय पैरामीटर को आधार मान कर 1981 से 2018 तक के डेटा का अध्ययन किया गया। अध्ययन में पाया गया कि 2015 से 2045 के बीच वायु प्रदूषण, क्लाइमेट चेंज और ग्रीन हाउस गैसों के चलते बढ़ती गर्मी से आने वाले सालों में सर्दियों में कोहरे भरे दिनों में 154 फीसदी की बढ़ोतरी होने की संभावना है। वहीं कोहरा 57 फीसदी ज्यादा घना होगा। शोध में शामिल कनाडा स्थित विक्टोरिया बीसी विश्वविद्यालय की वैज्ञानिक डॉ दीप्ति हिंगमिरे के मुताबिक गंगा के तराई वाले इलाकों मे सर्दियों के मौसम में नमी काफी रहती है। ऐसे में हवा में प्रदूषण के कण बढ़ने और क्लाइमेट चेंज के चलते गर्मी बढ़ने से आने वाले समय में कोहरा और अधिक घना होगा।

2046 के बाद कोहरे में आएगी कमी

CMIP6 मॉडल के जरिए किए गए अध्ययन के मुताबिक 2046 के बाद सर्दियों के मौसम में कोहरे भरे दिनों में कमी देखी जा सकती है। इसका बड़ा कारण जलवायु परिवर्तन के कारण गर्मी का बढ़ना और प्रदूषण कम करने के लिए किए जा रहे प्रयासों के चलते इसमें कमी मुख्य वजह होगी।

अध्ययन में शामिल IITM के वैज्ञानिक रमेश वेल्लोर के मुताबिक इस शोध में उत्तर भारत के गंगा के मैदानों (आईजीपी) में कोहरे की स्थिति पर जलवायु परिवर्तन के प्रभावों का अध्ययन किया गया है, जो वायुमंडलीय पैरामीटर के पुनर्विश्लेषण डेटा, मॉडल पर आधारित है। इस अध्ययन में डीप लर्निंग कन्वेन्शनल न्यूरल नेटवर्क (CNN) मैपिंग की भी मदद ली गई है। यह अध्ययन गंगा के मैदानी इलाकों के लिए कोहरे का आउटलुक समझने में मदद करेगा।

मौसम वैज्ञानिक समरजीत चौधरी कहते हैं कि नदियों के किनारे और पहाड़ों के तराई वाले इलाकों में आर्द्रता का स्तर सर्दियों में ज्यादा होता है। ऐसे में बढ़ती गाड़ियां और उद्योगों से निकलने वाले प्रदूषक तत्व हवा में मौजूद पानी के कणों से जुड़ कर घना स्मॉग बनाते हैं। अगले दस से पंद्रह सालों में निश्चित तौर पर स्मॉग में बढ़ोतरी होगी। दूसरी तरफ, सरकार प्रदूषण नियंत्रण के लिए डीजल और पेट्रोल की गाड़ियों को हतोत्साहित करने के साथ ही कई अन्य प्रयास कर रही है। वायु प्रदूषण कम करने के लिए कई अन्य कदम भी उठाए जा रहे हैं, पर इन कदमों का असर 2035 के पहले दिखे ये मुश्किल है। जलवायु परिवर्तन के चलते आने वाले समय में तापमान में भी बढ़ोतरी दर्ज होगी। ऐसे में अगर हवा में प्रदूषण कम होता है तो निश्चित तौर पर कोहरे भरे दिनों में कमी आएगी।

दिल्ली में कोहरे की जगह स्मॉग ने ली

पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय ने 2016 और 2021 के बीच, दिल्ली सहित उत्तर-पश्चिम भारत में कोहरे की रासायनिक संरचना का अध्ययन किया। इसमें पाया गया कि पहले की तुलना में अब कोहरा सफेद और घना होना बंद हो गया है। अब कोहरे का रंग ग्रे है। कोहरे में अब तीखी अम्लीय गंध भी आती है। दिल्ली में अब कोहरा नहीं, बल्कि स्मॉग होता है जिसमें काफी प्रदूषक तत्व होते हैं। पिछले पांच सालों में कोहरे पर किए गए अध्ययन में पाया गया कि दिल्ली के कोहरे में क्लोराइड, सल्फेट, नाइट्रेट, कैल्शियम और अमोनियम के कणों की बड़ी हिस्सेदारी थी। ये सभी मुख्य रूप से गाड़ियों से निकलने वाले धुएं, कूड़ा जलाने और निर्माण गतिविधियों से निकलते हैं।

भारत मौसम विज्ञान विभाग (IMD) के मुताबिक कोहरा तब होता है जब ठंड के मौसम और उच्च आर्द्रता के चलते पानी की बूदें काफी संघनित हो जाती हैं। प्राकृतिक कोहरे का रंग सफेद होता है लेकिन उत्तर पश्चिम भारत में हवा में मौजूद प्रदूषक कणों के चलते इसका रंग बदल जाता है। उदाहरण के तौर पर दिल्ली में गाड़ियों से निकलने वाले धुएं के कारण कोहरे का रंग आमतौर पर ग्रे होता है। अध्ययन में पाया गया कि दिल्ली और एनसीआर में कोहरे में क्लोराइड 24 फीसदी, कैल्शियम के कण लगभग 23 फीसदी, अमोनियम के कण 15 फीसदी और नाइट्रेट लगभग 14 फीसदी शामिल हैं। दिल्ली के कोहरे में सल्फेट के कण लगभग 14 फीसदी, मैग्नीशियम के लगभग 4 फीसदी और सोडियम के कण लगभग 3 फीसदी पाए गए। पोटेशियम लगभग 2 फीसदी और फ्लोराइड लगभग एक फीसदी था।