Trending

    Move to Jagran APP
    pixelcheck
    विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें

    श्रद्धांजलि : स्‍मृतियों में आकर मिलते रहेंगे नामवर सिंह के प्रेरणादायी विचार

    By JP YadavEdited By:
    Updated: Wed, 20 Feb 2019 02:23 PM (IST)

    नामवर सिंह पुरानी पीढ़ी और नई पीढ़ी के बीच की कड़ी थे। नामवर सिंह भले ही पेशे से अध्‍यापक थे, लेकिन वे कभी किसी को बिना मतलब की सलाह नहीं दिया करते थे।

    श्रद्धांजलि : स्‍मृतियों में आकर मिलते रहेंगे नामवर सिंह के प्रेरणादायी विचार

    नई दिल्ली [स्मिता]। 65 साल से भी अधिक लेखन का विराट अनुभव रखने वाले डॉ. नामवर सिंह को सुनने का अवसर तो हिंदी साहित्‍य के कई अलग-अलग प्रोग्राम में मिला था, अलग-अलग विषयों पर टेलीफोन पर उनके विचार भी अक्‍सर लिया करती थी, लेकिन उनका इंटरव्यू करनेे का अवसर जब अपने किसी सीनियर के सहयोग से मिला तो लगा ही नहीं कि हिंदी के आधार स्‍तंभ से मिल रही हूं। मैं उनसे बातचीत करने के लिए उनके घर पर गई थी। बहुत गर्मी न होने के बावजूद मैं पसीने से तर ब तर हो रही थी। मौसम से अधिक मुझे इस बात का भय लग रहा था कि कहीं अपना इंटरव्यू देने से पहले वे मुझसे ही हिंदी साहित्‍य के बारे में सवाल-जवाब न करने लगें। लेकिन जैसे ही उन्‍होंने दरवाजा खोलकर बड़ी आत्‍मीयता से मुझे अंदर बुलाया, तो मन में सहजता के भाव खुद ब खुद आने लगे।

    विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें

    बैठते ही उन्‍होंने कहा कि इन दिनों हिंदी में इतने युवा और प्रतिभाशाली साहित्‍यकार हैं, तो मुझ बुड्ढे का इंटरव्‍यू क्‍यों करना चाहती हो। इसके जवाब में जब मैंने कहा कि आपकी बताई बातें मेरे लिए अमूल्‍य निधि होंगी। इस पर उन्‍होंने कहा कि तब तो हम दो-ढाई घंटे से अधिक बतियाएंगे। उम्र के कारण उनकी कमर भले ही थोड़ी झुक गई थी, मानो विशाल अनुभव की गठरी हो पीठ पर, लेकिन आंखों में चमक बरकरार थी।

    नामवर सिंह पुरानी पीढ़ी और नई पीढ़ी के बीच की कड़ी थे। उस समय उनके घर के अतिथि कक्ष में न सिर्फ पुरानी पीढ़ी के लेखकों की कृतियां सजी हुई थीं, बल्कि युवा लेखकों की अनगिनत किताबें भी उन्‍होंने संभाल कर रखी हुई थीं। बुक सेल्‍फ पर युवाओं की पुस्‍तकें सजी देखकर मैंने जब पहले ही सवाल में उनसे पूछा कि लगता है युवाओं का लेखन आपको पसंद है, जबकि अन्‍य वरिष्‍ठ साहित्‍कार तो युवाओं के लेखन की केवल कमियां ही गिनाते हैं। इस पर उन्‍होंने तपाक से कहा था कि यह देखा गया है कि जो बीत चुका है वही अच्छा लगता है। वर्तमान अच्छा नहीं लगता है। आज के युवा आत्मचेतस हैं। वे अपनी खूबियों के साथ-साथ कमजोरियों को भी जानते हैं। इन दिनों युवा अलग-अलग विषयों पर समसामयिक लिख रहे हैं। हां वरिष्‍ठ साहित्‍यकारों को बिना मांगे सलाह नहीं देनी चाहिए। सीख ताको दीजिए जाको सीख सुहाय। सीख न दीजे बांदरे बया का घर भी जाए। युवा लेखक खुद समझदार हैं। वे अपना रास्ता खुद तय करते हैं। वे अच्छी तरह जानते हैं कि उन्हें क्या लिखना चाहिए और क्या नहीं।

    नामवर सिंह भले ही पेशे से अध्‍यापक थे, लेकिन वे कभी किसी को बिना मतलब की सलाह नहीं दिया करते थे। वे आलोचक थे, लेकिन साहिि‍त्‍यक कृतियों की व्‍यर्थ की आलोचना नहीं करते थे। जब एक सवाल मैंने उनसे यह पूछा कि कुछ वरिष्ठ लेखक इन दिनों स्तरहीन आलोचना लिखे जाने का आरोप लगाते हैं, के जवाब में पहले तो वे मुस्‍कराए और फिर कहा कि आमतौर पर मेरी उम्र के लेखक जो अस्सी पार कर चुके हैं, उन्हें अपना समय इतना महत्वपूर्ण लगता है कि सभी समकालीन लेखकों को खारिज करते रहते हैं। मैं ऐसी दृष्टि नहीं रखता हूं। नए कवि, कहानीकार, उपन्यासकार बहुत बढिय़ा लिख रहे हैं। किसी एक का नाम गिनाना मुश्किल है। आलोचना की कई सारी पत्रिकाएं निकल रही हैं। मुझे यह नहीं लगता है कि पहले वाले दौर के लेखकों से वे किसी मामले में भी कमतर हैं। प्रबुद्ध और समझदार लेखन हो रहा है। दलित लेखन खूब हो रहा है। स्त्री कथाकार इन दिनों बहुत बढिय़ा लिख रही हैं। इसके आगे भी उन्‍होंने साहित्‍य संबंधी कई प्रश्‍नों के सार्थक जवाब दिए और जब हमारा साक्षात्‍कार समाप्‍त हुआ, तो बड़े प्रेम भाव के साथ दरवाजे तक छोड़ने आए और फिर घर आकर मिलने को भी कहा। भले ही मैं दोबारा उनके घर पर न जा सकी, लेकिन युवाओं के लेखन को लेकर कहे गए उनके प्रेरणादायी विचार हमेशा स्‍मृतियों में आकर मिलते रहेंगे। 

     

    comedy show banner
    comedy show banner