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    One Nation One Election: एक देश-एक चुनाव का अर्थव्यवस्था पर क्‍या असर पड़ेगा, क्‍या महंगाई कम होगी और निवेश बढ़ेगा?

    Updated: Tue, 17 Dec 2024 04:40 PM (IST)

    केंद्रीय कानून मंत्री अर्जुन राम मेघवाल ने लोकसभा में आज यानी मंगलवार को एक देश-एक चुनाव का संशोधन बिल पेश किया। लोकसभा में वन नेशन-वन इलेक्शन बिल के पक्ष में 269 वोट तो विरोध में 198 वोट पड़े हैं। वोटिंग के बाद विधेयक को जेपीसी को भेज दिया गया। एक देश-एक चुनाव बिल लागू होने के बाद देश में क्‍या-क्‍या बदलेगा इससे देश को लाभ हो गया नुकसान... यहां पढ़ें.

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    One Nation, One Election: एक देश-एक चुनाव से क्‍या-क्‍या बदलेगा। जागरण ग्राफिक्‍स टीम

    जागरण टीम, नई दिल्‍ली। कहा जाता है कि भारत में नेता और राजनीतिक दल हमेशा चुनावी मोड में रहते हैं, इसकी वजह भी है। यहां कभी लोकसभा चुनाव, कभी राज्यों की विधानसभा के चुनाव और कभी स्थानीय निकायों के चुनाव चलते रहते हैं, लेकिन आज के बाद यह बदलने वाला है।

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    अब देश में केंद्र और राज्य सरकारों के चुनाव एक साथ होंगे। इसका मतलब है कि चुनावी खबरों का एक तय मौसम होगा। केंद्रीय कैबिनेट ने गत गुरुवार को ही एक देश-एक चुनाव से जुड़े विधेयकों को मंजूरी दे दी है। केंद्रीय कानून मंत्री अर्जुन राम मेघवाल ने लोकसभा में आज एक देश-एक चुनाव का संशोधन बिल पेश किया गया।

    प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अपने पहले कार्यकाल से ही एक देश-एक चुनाव की व्यवस्था अपनाने की जरूरत पर जोर देते रहे हैं। उनकी सोच है कि नेताओं को चार वर्ष तक शासन व्यवस्था और नीतियों को लागू करने पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए और एक वर्ष राजनीति करनी चाहिए।

    इससे न सिर्फ सरकारी नीतियों को तेजी से प्रभावी तरीके से लागू किया जा सकेगा, बल्कि व्यवस्था से जुड़े सुधारों को आगे बढ़ाने में भी सहूलियत होगी। एक देश-एक चुनाव मौजूदा राजनीति और देश को किस तरह से प्रभावित करेगा, इसकी पड़ताल ही आज का मुद्दा है...

    क्‍या है एक देश-एक चुनाव?

    भारत में एक देश-एक चुनाव का मतलब है कि संसद के निचले सदन यानी लोकसभा चुनाव के साथ ही सभी राज्यों के विधानसभा चुनाव भी कराए जाएं।

    इसके साथ ही स्थानीय निकायों यानी नगर निगम, नगर पालिका, नगर पंचायत और ग्राम पंचायतों के चुनाव भी हों। इसके पीछे विचार है कि ये चुनाव एक ही दिन या फिर एक निश्चित समय सीमा में कराए जा सकते हैं।

    आजादी के बाद देश में कैसे होते थे चुनाव?

    आजादी के बाद वर्ष 1950 में देश गणतंत्र बना। वर्ष 1951-52 से 1967 के बीच लोकसभा के साथ ही राज्यों के विधानसभा चुनाव पांच वर्ष में होते रहे। वर्ष 1952, 1957, 1962 और 1967 में ये चुनाव हुए।

    इसके बाद कुछ राज्यों का पुनर्गठन हुआ और कुछ नए राज्य बनाए गए। इसके अलावा लोकसभा को भी समय से पहले भंग किया गया। इसके कारण एक साथ चुनाव का चक्र टूट गया और तब से अलग-अलग चुनाव होने लगे।

    एक देश- एक चुनाव का जीडीपी पर क्‍या असर होगा?  

    कोविन्द कमेटी की रिपोर्ट बताती है कि सभी चुनाव एक साथ होने पर भारत की राष्ट्रीय रियल जीडीपी ग्रोथ अगले वर्ष 1.5 प्रतिशत बढ़ जाएगी। जीडीपी का 1.5 प्रतिशत वित्त वर्ष 2023-24 में 4.5 लाख करोड़ रुपये के बराबर था। यह रकम भारत के स्वास्थ्य पर कुल सार्वजनिक खर्च का आधा और शिक्षा पर खर्च का एक तिहाई है।

    वन नेशन वन इलेक्‍शन का निवेश पर क्‍या प्रभाव पड़ेगा?

    देश में चुनावों का चक्र लगातार चलते रहने से निवेश को लेकर अनिश्चितता का माहौल बनता है। सभी चुनाव एक साथ होने से जीडीपी के लिए नेशनल ग्रॉस फिक्स्ड कैपिटल फॉर्मेशन (निवेश) का अनुपात करीब 0.5 प्रतिशत बढ़ जाएगा।

    क्‍या सार्वजनिक खर्च बढ़ जाएगा?

    केंद्र और राज्यों के चुनाव एक साथ होने पर सार्वजनिक खर्च 17.67 प्रतिशत बढ़ जाएगा। अहम बात यह सार्वजनिक खर्च में राजस्व के बजाए पूंजीगत खर्च अधिक होगा। सामान्य तौर पर पूंजीगत खर्च बढ़ने से जीडीपी ग्रोथ को मजबूती मिलती है।

    क्‍या एक देश-एक चुनाव से महंगाई में गिरावट आएगी?

    एक साथ चुनाव होने और अलग अलग चुनाव होने दोनों परिदृश्य में महंगाई कम होती है। लेकिन एक साथ चुनाव होने के परिदृश्य में महंगाई में अधिक गिरावट आती है। यह अंतर करीब 1.1 प्रतिशत का हो सकता है।

    बढ़ेगा राजकोषीय घाटा

    चुनावों के बाद सार्वजनिक खर्च बढ़ने का मतलब है कि एक साथ चुनाव के बाद अलग अलग चुनावों की तुलना में ग्रोथ रेट बढ़ेगी। रिपोर्ट में कहा गया है कि चुनाव के दो वर्ष पहले और दो वर्ष बाद राजकोषीय घाटा 1.28 प्रतिशत तक बढ़ सकता है।  

    अमेरिका में एक साथ होता है चुनाव

    जहां तक दूसरे देशों में एक देश, एक चुनाव की व्यवस्था की बात है, तो इस सूची में अमेरिका, फ्रांस, स्वीडन, कनाडा आदि शामिल हैं। अमेरिका में हर चार वर्ष में एक निश्चित तारीख को ही राष्ट्रपति, कांग्रेस और सीनेट के चुनाव कराए जाते हैं। इसके लिए संघीय कानून का सहारा लिया जाता है।

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