नई दिल्ली। विवेक तिवारी / एक छोटा सा मच्छर आपके लिए कितना घातक हो सकता है इसके बारे में आपने कभी सोचा है। हमारे आसपास पनप रहा एक छोटा सा मच्छर जानलेवा साबित हो सकता है। मच्छर के काटने से आप कोमा में भी जा सकते हैं। ऐसी ही एक घटना हाल ही में जर्मनी में सामने आई। यहां एक 27 साल के युवक को एशियन टाइगर मच्छर ने काटा जिससे उसका जीवन खतरे में पड़ गया। मच्छर के काटने से ये युवक कोमा में चला गया। उसकी बाईं जांघ सड़ गई। लगभग 30 ऑप्रेशन करने के बाद किसी तरह इस युवक की जान बच सकी।

जर्मनी के सेबास्टियन रोत्श्के मच्छर के काटने के चलते 4 हफ्ते तक कोमा में रहे। इलाज के दौरान कई बार लिवर, किडनी, फेफड़ों और दिल ने काम करना बंद कर दिया। डॉक्टरों ने किसी तरह से उनकी जान बचाई। उनके पैर की दो उंगलियां भी आधी काटनी पड़ीं। टेस्ट रिपोर्ट में सामने आया कि सेरेशिया मार्सेसेंस नाम के बैक्टीरिया ने उनकी जांघ खा ली थी। मच्छर के काटने से उनका खून संक्रमित हो गया था। फिलहाल उनकी रिकवरी जारी है।

बेहद खतरनाक है एशियन टाइगर मच्छर

एशियन टाइगर मच्छर का साइंटिफिक नाम एडीज अल्बोपिक्टस (Aedes Albopictus) है। यह दक्षिण पूर्वी एशिया के ट्रॉपिकल और सब-ट्रॉपिकल इलाकों में पाया जाता है। इसलिए इसे जंगली मच्छर भी कहते हैं। हमारे घरों के आसपास घनी झाड़ियों या घांस में ये आसानी से दिख जाता है। पिछले कुछ सालों से यह खतरनाक मच्छर यूरोप के कई देशों में भी देखा जा रहा है है। यूएस के नेशनल सेंटर फॉर बॉयोटेक्नॉलिजी इंफॉर्मेशन की नेशनल लाइब्रेरी ऑफ मेडिसिन की ओर से जारी एक रिपोर्ट के मुताबिक एशियन टाइगर मच्छर 22 तरह के वायरस का हमला करने में सक्षम है। ये मच्छर मौसम और तापमान के मुताबिक अपने आप को ढाल भी लेता है।

ICMR के पूर्व वैज्ञानिक और वेक्टर बॉर्न डिजीज पर लम्बे समय तक काम करने वाले डॉक्टर रमेश चंद धीमान कहते हैं कि एशियन टाइगर मच्छर को सबसे खतरनाक मच्छर कहा जा सकता है। दरअसल इसके अंड़े साल भर तक मिट्टी या किसी जगह पर पड़े रह सकते हैं और बारिश में या पानी मिलने पर इसमें से लारवा निकल आते हैं। इसे सबसे आक्रामक मच्छर भी माना जाता है। ये काफी तेज और एक साथ कई बार डंक मारने के लिए भी जाना जाता है। दरअसल ये मच्छर किसी इंसान से काफी मात्रा में खून लेकर किसी दूसरे व्यक्ति के शरीर में वायरस पहुंचा सकता है। डेंगू, चिकनगुनिया, यलो फीवर, जीका वायरस और वेस्ट नाइल वायरस से होने वाली बीमारियां ज्यादातर ये मच्छर ही फैलाता है। ये मच्छर अंधेर का इंतजार नहीं करता है। ये दिन में भी डंक मारता है।

इस लिए पड़ा टाइगर मच्छर नाम

एशियन टाइगर मच्छर के शरीर पर काली और सफेद धारियां होती हैं। ये धारिया किसी टाइगर की धारियों जैसे पैटर्न बनाती हैं। इसी लिए इस मच्छर का नाम टाइगर मच्छर पड़ा। ये मच्छर प्रमुख रूप से एशिया में ही पाया जाता था लेकिन अब अमेरिका, यूरोप तक पैर पसार चुका है। ऑस्ट्रेलिया में भी कुछ जगहों पर ये मच्छर पाया गया है।

इस तरह के लक्षण दिख सकते हैं

अगर आपको एशियन टाइगर मच्छर ने काटा है तो आपमें किसी वायरस या बैक्टीरिया के संक्रमण के लक्षण हो सकते हैं। आप खुद संक्रमण के प्रमुख लक्षण पहचान सकते हैं। इनमें तेज पेट दर्द, उल्टी, सांस लेने में दिक्कत, सिर चकराना, बुखार, नाक और मसूड़ों से खून निकलना, थकान, बेचैनी, लिवर में सूजन, उल्टी या मल में खून आना, आंखों में दर्द, सिर दर्द और स्किन एलर्जी शामिल हैं। ये लक्षण मच्छर के काटने के 3 से 7 दिन बाद आ सकते हैं।

ये है बचाव का तरीका

एशियन टाइगर मच्छर से बचाव के लिए सबसे ज्यादा जरूरी है कि आप अपने आसपास इसे प्रजनन या अंडे देने से रोकें। इसके लिए जरूरी है आप कहीं पर भी पानी इकट्ठा न होने दें। क्योंकि इस मच्छर के अंडे लारवा में तब तक नहीं बदलते जब तक ये कुछ समय तक पानी में न पड़े हों। घर से आपपास बड़ी झाड़ियां या घांस हो तो उसे भी कटवा दें। ये मच्छर ज्यादातर ऐसी ही जगहों पर रहता है।

डेंगू से लाखों लोग जान गवां रहे 

मच्छर के चलते हर साल लाखों लोग जान गवां देते हैं। डब्लूएचओ के आंकड़ों के मुताबिक दुनिया भर में 40 करोड़ लोग हर साल डेंगू से प्रभावित होते हैं। देश भर में डेंगू का कहर जारी है। भारत में भी इस समय बड़ी संख्या में डेंगू से जूझ रहे हैं। हाल ही में आई रिपोर्ट बताती है कि दुनिया भर में जलवायु परिवर्तन के चलते तापमान और आर्द्रता में आने वाले बदलावों से पैथोजेनिक बीमारियां जैसे कि इंफ्लुएंजा, खसरा, कोरोना, डेंगू, मलेरिया आदि का संक्रमण 58 फीसद और तेजी से बढ़ेगा। वैज्ञानिकों का मानना है कि आम लोगों को जागरूक करने के साथ ही सरकार को जलवायु परिवर्तन को ध्यान में रखते हुए इन बीमारियों से बचाव के लिए तत्काल कदम उठाए जाने की जरूरत है।

बढ़ रहे हैं संक्रामक रोग

 जलवायु परिवर्तन और स्वास्थ्य 2019 रिपोर्ट में लैंसेट ने खुलासा किया था कि पिछले कुछ वर्षों में मच्छरों द्वारा होने वाले रोगों (मलेरिया और डेंगू) में वृद्धि हुई है। अध्ययनों से पता चलता है कि दक्षिण एशिया के ऊंचे पहाड़ों में ज्यादा बारिश और बढ़ते तापमान के चलते संक्रामक बीमारियां तेजी से फैली हैं। ज्यादा बारिश के चलते इन पहाड़ी इलाकों में मच्छरों को प्रजनन में मदद मिली है। साथ ही बढ़ता तापमान इनके जीवन चक्र को तेज कर देता है। ICMR सेंटर ऑफ एक्सिलेंस फॉर क्लाइमेट चेंज एंड वेक्टर बॉर्न डिजीज के प्रिंसिपल इनवेस्टिगेटर रहे डॉक्टर रमेश धीमान बताते हैं कि जल जनित और वेक्टर जनित रोग पैदा करने वाले रोगजनक जलवायु के प्रति संवेदनशील होते हैं। मच्छरों, सैंड फ्लाई, खटमल आदि जैसे बीमारी फैलाने वाले कीटों का विकास और अस्तित्व तापमान और आर्द्रता पर निर्भर करता है, ये रोग वाहक मलेरिया, डेंगू, चिकनगुनिया, जापानी एन्सेफलाइटिस, कालाजार जैसी बीमारी बहुत तेजी से फैला सकते हैं। आने वाले समय में ये देखा जा सकता है कि जलवायु परिवर्तन के चलते कुछ इलाके जहां पर कोई विशेष संक्रामक बीमारी नहीं थी अचानक से बीमारी फैलने लगेगी। 

पहाड़ों में बढ़ रहा डेंगू और मलेरिया

जलवायु परिवर्तन वैसे तो दुनिया के हर हिस्से में रहने वाले लोगों को प्रभावित कर रहा है लेकिन इसका सबसे ज्यादा असर हिंदुकुश और हिमालय के आसपास के इलाकों में रहने वाले लोगों की सेहत पर पड़ रहा है। तापमान में हो रहे बदलाव के चलते पहाड़ों में रहने वाले लोगों के लिए मुश्किलें बढ़ी हैं। उन्हें कई ऐसी बीमारियों को सामना करना पड़ रहा है जो पहले पहाड़ों में पाई ही नहीं जाती थीं। ये बात स्विट्जरलैंड के एक रिसर्च पेपर में छपे एक शोध में सामने आई।

इस शोध में शामिल आईसीएमआर के नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ मलेरिया रिसर्च के वैज्ञानिक रहे रमेश सी धीमान ने बातचीत में बताया कि गर्म मौसम में मच्छर तेजी से प्रजनन करते हैं और उनका जीवन चक्र भी तेज हो जाता है। वो जल्द अंडे से व्यस्क मच्छर बन जाते हैं और जल्द मर जाते हैं। वहीं ठंड होने पर इनका जीवन चक्र सुस्त हो जाता है। पिछले कुछ सालों में पहाड़ों में तापमान बढ़ा है। साल के अलग अलग समय में तापमान में दो से तीन डिग्री तक का अंतर आ चुका है। ऐसे में पिछले कुछ सालों में देखा गया है कि उत्तराखंड के जिन हिस्सों में पहले मलेरिया नहीं होता था वहां से मलेरिया के मरीज आने लगे हैं। हिमाचल के कुछ हिस्सों में डेंगू के मामले दर्ज किए गए हैं। पहले यहां लोगों को डेंगू नहीं होता था। ये जलवायु परिवर्तन का असर है। यदि जल्द इस पर नियंत्रण नहीं किया गया तो जलवायु परिवर्तन का सबसे ज्यादा असर हिमालय के पहाड़ी इलाकों में रहने वाले लोगों की सेहत पर दिखेगा।