Kolkata Doctor Rape and Murder Case: 'अगर उसे पोर्न देखने की आदत न होती...'; जेल, जमानत और फिर से रेप पर क्या बोले एक्सपर्ट?
Kolkata Doctor Rape and Murder Case कोलकाता दुष्कर्म कांड ने पूरे देश को झकझोर कर रख दिया है। इस जघन्य अपराध के बाद एक बार फिर से दुष्कर्म संस्कृति पोर्न और जमानत प्रक्रिया पर बहस छिड़ गई है। समाजशास्त्री डॉ. ऋतु सारस्वत से बातचीत में जानिए कि पोर्न वीडियो कैसे दुष्कर्म को बढ़ावा देते हैं और जमानत प्रक्रिया अपराधियों को संरक्षण देती है।
डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। कोलकाता में हुई दुष्कर्म की घटना की अंतहीन पीड़ा से पूरा देश आहत है। चारों ओर हाहाकार मचा हुआ है। यक्ष प्रश्न यह है कि क्या ऐसी घटना पहली बार घटित हुई है? इसका उत्तर हम सभी के पास है।
कैंडल मार्च, सड़कों पर प्रदर्शन, इंटरनेट मीडिया पर क्रांतिकारी विचार और अपने कर्तव्यों से इतिश्री। क्या हम यह नहीं जानते कि हर दिन हर क्षण देश के किसी कोने में मानव देह का लबादा ओढ़े ‘भेड़िए’ वासना में लिप्त अपने शिकार की तलाश में भटक रहे हैं।
इससे उनका कोई सरोकार नहीं कि उनका ग्रास नन्ही सी बच्ची है या फिर प्रौढ़ महिला। दुष्कर्म की घटनाएं चीख-चीख कह रही हैं कि हम सभी सभ्य समाज का हिस्सा नहीं है अपितु बर्बर समाज में जी रहे हैं।
यह अवस्था ऐसी ही रहेगी, क्योंकि जब हम आरोप-प्रत्यारोप के खेल में हार जीत का युद्ध लड़ने में अपनी समस्त शक्ति को झोंक बैठे हैं तो कैसे यह विचार करेंगे कि इस अमानवीय सामाजिक व्याधि का उपचार हो?
स्त्री को देवी मानकर पूजने वाली संस्कृति यदि दुष्कर्म की साक्षी बनती है तो यकीनन इसका संपूर्ण दायित्व सामाजिक व्यवस्था की उस मौन स्वीकृति को जाता है, जिसे हमने तथाकथित रूप से ‘पौरुष’ के रूप में स्वीकार किया है। पुरुषत्व की विकृत परिभाषा स्त्री को ‘भोग’ के रूप में स्वीकार करती है और इस परिभाषा का पोषण परिवार से आरंभ होता है।
मर्यादित जीवन की नियमावली से पूरी तरह से मुक्त समाजीकरण की यह प्रक्रिया उच्छृंखल जीवन की पोषक बनती है। परिवार की परिधि में स्त्री जनित, यौन-उच्छृंखलता,जब हास्य का विषय बन रही होती है, उसी क्षण ऐसे बालकों का भी निर्माण होता है, जो स्त्री को ‘भोग्य’ के रूप में स्वीकार करने के प्रथम चरण की ओर बढ़ रहे होते हैं।
गली-मोहल्लों में अश्लील टिप्पणियां करती जिह्वा किसी निर्वाचित संस्कृति की उपज नहीं है अपितु उन अभिभावकों की छत्रछाया की परिणति हैं, जिन्हें अपने बालकों का ऐसा व्यवहार सामान्य और पुरुषोचित प्रतीत होता है।
‘लड़के हैं ऐसा करेंगे ही… लड़कियों को ही ध्यान रखना चाहिए’
यह वाक्य उस पाशविक प्रवृत्ति को जन्म देता है, जिसकी उत्पत्ति का संपूर्ण दायित्व अभिभावकों को जाता है। एक दुष्कर्मी को सामाजिक व्यवस्था में स्वीकार करने की प्रवृत्ति उसकी पीठ थपथपाती है और दिलासा देती है कि जिस तरह कमजोर न्यायिक एवं पुलिस व्यवस्था उसका संरक्षण करेगी, ठीक उसी तरह समाज भी उसके अपराधों को भूलकर सहजता से उसे स्वीकार करेगा।
ऐसे परिदृश्य में जयपुर(राजस्थान) के दुष्कर्मी और हत्यारे सिकंदर (जीवाणु) के बारे में जानना अपरिहार्य हो जाता है। साल 2001 में जीवाणु ने पहली बार एक बच्ची के साथ दुष्कर्म किया था, परंतु वह जेल से छूट गया। 2014 में उसने चार वर्ष की बच्ची से दुष्कर्म किया और उसकी हत्या कर दी। वह फिर छूट गया।
साल 2015 में पुनः उसने एक मासूम बच्ची को अपनी वासना का शिकार बनाया पर फिर भी वह छूट गया। साल 2019 में उसने फिर दो बच्चियों को अपना शिकार बनाया। छह बार गिरफ्तार होकर छूटना उन प्रश्नों को खड़ा करता है, जिसका उत्तर पुलिस, अधिवक्ता, जमानत देने वाले व्यक्ति तथा न्यायिक व्यवस्था के पास है।
क्या है दुष्कर्म संस्कृति?
यह सभी उस सामाजिक व्यवस्था के पोषक हैं, जिसे ‘दुष्कर्म संस्कृति’ कहा जाता है। दुष्कर्म के मामलों में कई बार आरोपी को विवाह करने को भी कहा जाता है। हमारी मानवीयता उस दहलीज तक होनी चाहिए, जहां आम व्यक्ति कमजोर और अपराधी मजबूत न हों। इस संस्कृति के संरक्षण में एक बड़ी भूमिका पोर्न व अश्लील सामग्री की भी है, जो सहजता से उपलब्ध है।
अमेरिका के सीरियल किलर और दुष्कर्मी टेड बंडी ने एक साक्षात्कार में कहा था कि ‘यदि उसे पोर्न देखने की आदत नहीं पड़ी होती तो उसने यौन अपराध नहीं किए होते।’
अमेरिकी लेखिका और सामाजिक कार्यकर्ता रॉबिन मार्गन ने 1974 अपने एक लेख ‘थ्योरी एंड प्रैक्टिस: Poronography एंड रेप’ में लिखा था कि यह उस सिद्धांत की तरह काम करती है, जिसे व्यावहारिक रूप से दुष्कर्म के रूप में अंजाम दिया जाता है।
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(समाजशास्त्री डॉ. ऋतु सारस्वत से बातचीत)