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    Kolkata doctor rape-murder case: देश में कड़े कानून हैं और फास्ट ट्रैक कोर्ट भी; फिर क्‍यों नहीं लग रहा अपराध पर अंकुश?

    Updated: Tue, 03 Sep 2024 07:30 PM (IST)

    Kolkata doctor rape-murder case and Womens Safety कोलकाता में प्रशिक्षु डॉक्टर के साथ दुष्कर्म और हत्या की घटना ने देश को झकझोर कर रख दिया है। इस घटना ने एक बार फिर महिला सुरक्षा के मुद्दे पर गंभीरता से विचार करने को मजबूर कर दिया है। इस खबर में महिलाओं के खिलाफ अपराध को प्रभावित करने वाले विभिन्न कारकों के बारे में जानिए

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    क्‍यों नहीं लग रहा महिलाओं के खिलाफ होने वाले अपराध पर अंकुश।

     डिजिटल डेस्‍क, नई दिल्‍ली। देश में कड़े कानून भी हैं। तेजी से मामलों के निस्तारण के लिए फास्ट ट्रैक अदालतें भी हैं। समय के साथ साक्षरता भी बढ़ी है। महिलाएं अपनी सुरक्षा को लेकर सतर्क भी हुई हैं, लेकिन इन सब उपायों से महिलाओं के खिलाफ होने वाले अपराध पर अंकुश लगाने में कामयाबी नहीं मिली है। आए दिन महिलाओं के खिलाफ अपराध की खबरें आती रहती हैं। कभी इस राज्य से कभी उस राज्य से।

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    कोलकाता में प्रशिक्षु डॉक्टर के साथ दुष्कर्म और हत्या से देश आंदोलित है। यह घटना हमें एक देश और समाज के तौर पर करीब एक दशक पहले निर्भया के साथ हुई अमानवीयता और उसके बाद महिला सुरक्षा को लेकर उठाए गए कदमों पर दोबारा गौर करने पर मजबूर करती है।

    शर्मनाक बात यह है कि महिलाओं के खिलाफ अपराध और दुष्कर्म के मामलों पर जब लोग आक्रोशित होते हैं, सिस्टम की नाकामी पर सवाल उठाते हैं तो इस पर राजनीति शुरू हो जाती है और महिलाओं की सुरक्षा का मुद्दा कहीं पीछे छूट जाता है।

    एक देश और समाज के तौर पर हम महिलाओं की सुरक्षा क्यों नहीं सुनिश्चित कर पा रहे हैं और इस पर क्या किया जाना बाकी है, यही आज पड़ताल का अहम मुद्दा है।

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    महिलाओं के खिलाफ अपराध को प्रभावित करने के कारकों को दो हिस्सों में बांटा जा सकता है। पहला है सैद्धांतिक कारक जिसे सिद्धांत के द्वारा सही ठहराया जा सकता है। उदाहरण के लिए सिनेमा में महिलाओं का प्रतिनिधित्व। दूसरा है सांख्यिकीय कारक जिसे आंकड़ों की मदद से साबित किया जा सकता है। उदाहरण के लिए महिलाओं के खिलाफ अपराध पर बेरोजगारी का प्रभाव।

    भौगोलिक और सामाजिक-आर्थिक कारकों का प्रभाव

    सैद्धांतिक कारक हमें अपराध के पीछे की मानसिकता के साथ पीड़ित के नजरिये को भी समझने में मदद करते हैं। वहीं सांख्यिकीय कारक हमें उस रास्ते को समझने में मदद करते हैं, जिन पर आगे बढ़ कर हम महिलाओं के खिलाफ अपराध पर अंकुश लगा सकते हैं।

    इंटरनेशनल जर्नल आफ क्रिएटिव रिसर्च थाट्स के अध्ययन के अनुसार महिलाओं के खिलाफ अपराध भौगोलिक और सामाजिक आर्थिक कारकों से प्रभावित होते हैं।

    1. बेरोजगारी: बेरोजगारी महिलाओं के खिलाफ अपराध को बड़े पैमाने पर प्रभावित करती है। अगर बेरोजगारी एक प्रतिशत बढ़ती है तो महिलाओं के खिलाफ अपराध के मामले 45 प्रतिशत बढ़ जाते हैं।
    2. महिला श्रम बल भागीदारी: महिलाएं जब काम के लिए बाहर जाती हैं तो उनके लिए खतरा बढ़ जाता है। इसका मतलब है कि महिला श्रम बल भागीदारी बढ़ने से महिलाओं के खिलाफ अपराध बढ़ता है।
    3. जनसंख्या घनत्व: किसी शहर में घनी आबादी वाला इलाका अपराध, खास कर महिलाओं के खिलाफ अपराध का केंद्र बन जाता है। मुंबई में झुग्गी बस्ती धारावी इसका एक सटीक उदाहरण है।
    4. क्षेत्र: बड़े क्षेत्रफल वाले राज्य में अगर पर्याप्त संख्या में पुलिसकर्मी नहीं है तो वहां कानून व्यवस्था बनाए रखना एक बड़ी चुनौती होती है। ऐसे में अपराध बढ़ता है।
    5. गरीबी: गरीबी अपराध की दर को बढ़ाती है।
    6. पुलिस कर्मियों की संख्या: पुलिस स्टेशन में पुलिस कर्मियों की संख्या महिलाओं के खिलाफ अपराध को प्रभावित करती है। यहां महिला पुलिस कर्मियों की संख्या मायने रखती है।

    अत्याचार के खिलाफ आवाज उठाएं महिलाएं

    महिलाओं को अत्याचार पर चुप रहने के बजाए इसके खिलाफ आवाज उठानी चाहिए। महिलाओं में उनके अधिकारों को लेकर जागरूकता पैदा करने का प्रयास करना चाहिए। महिलाओं को दहेज, कन्या भ्रूण हत्या जैसी सामाजिक बुराइयों का मुखर विरोध करना होगा। महिलाओं को कराटे और ताइक्वांडो का प्रशिक्षण भी लेना चाहिए।

    महिलाओं के खिलाफ हिंसा के दूसरे कारण

    • परिवारों में बचपन में ही लड़कों को लड़कियों के मुकाबले वरीयता दी जाती है।
    • महिलाओं को स्वास्थ्य सुविधाओं एवं शिक्षा से वंचित किया जाना।
    • महिलाओं के खिलाफ हिंसा के मामलों में आरोपी को माफी मिल जाना।
    • भेदभाव और दुर्व्यवहार के खिलाफ बोलने पर महिला को परिवार और समुदाय से समर्थन न मिलना।
    • कम पढ़ा लिखा होना, आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर न होना, अविवाहित या तलाशुदा होना, लिव इन रिलेशनशिप में होना घरेलू हिंसा के लिए जोखिम के कारक के तौर पर काम करते हैं।
    • मीडिया और सिनेमा में महिलाओं के खिलाफ हिंसा दिखाया जाना महिलाओं के खिलाफ आक्रामकता को बढ़ावा देता है।

    महिलाओं के खिलाफ अपराध

    • 2022 में महिलाओं के खिलाफ देश में 4,45,256 मामले दर्ज हुए।
    • 51 एफआईआर प्रति घंटे महिलाओं से संबंधित मामले में दर्ज हुईं।
    • 66.4% रही प्रति लाख आबादी पर महिलाओं के खिलाफ अपराध की दर
    • 75.8% मामलों में दाखिल किए गए आरोप पत्र

    (स्रोत: राष्ट्रीय अपराध रिकार्ड ब्यूरो की सालाना रिपोर्ट: 2022)

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