ISRO latest news : दुनिया के लिए मिसाल बन सकता है आदित्य L1, कई मायनों में है बेहद खास

चंद्रयान-3 मिशन की सफलता के बाद ISRO ने अब सूरज के राज खोलने की भी तैयारी कर ली है। सूरज में चल रही उथल-पुथल और स्पेस क्लाइमेट का अध्ययन करने के लिए भ...और पढ़ें
विवेक तिवारी जागरण न्यू मीडिया में एसोसिएट एडिटर हैं। लगभग दो दशक के करियर में इन्होंने कई प्रतिष्ठित संस्थानों में कार् ...और जानिए
नई दिल्ली, जागरण प्राइम । चंद्रयान-3 मिशन की सफलता के बाद ISRO ने अब सूरज के राज खोलने की भी तैयारी कर ली है। सूरज में चल रही उथल-पुथल और स्पेस क्लाइमेट का अध्ययन करने के लिए भारत का आदित्य L-1 मिशन 2 सितंबर को सुबह 11.50 बजे रवाना होगा। विज्ञान के साथ ही हमारे और आपके जीवन के लिए भी ये अभियान बेहद महत्व रखता है। आदित्य-एल1 अंतरिक्ष में एक स्पेस स्टेशन की तरह काम करेगा। भारत में अब तक वैज्ञानिक सूरज का अध्ययन ऑब्जर्वेटरी में लगी दूरबीनों के जरिए कर रहे हैं। इसकी कई सारी सीमाएं हैं। आदित्य L1 मिशन की सफलता के बाद वैज्ञानिकों के लिए संभावनाओं के नए द्वार खुलेंगे। इसरो के इस मिशन के मायनों को जानने के लिए हमने आदित्य मिशन के साइंस वर्किंग ग्रुप के को-चेयर और आर्यभट्ट रिसर्च इंटीट्यूट ऑफ ऑब्जरवेशनल साइंस के निदेशक दीपांकर बनर्जी और उत्तराखंड स्पेस एप्लीकेशन सेंटर के पूर्व निदेशक डॉक्टर एमपी बिष्ट से बात की।
आदित्य-एल1 को पूरी तरह से भारत में ही बनाया गया है। इसे दो हफ्ते पहले आंध्र प्रदेश के श्रीहरिकोटा स्थित इसरो के अंतरिक्ष केंद्र पर लाया गया था। शनिवार यानी 2 सितंबर यहीं से इसे लॉन्च कर दिया जाएगा। इस अंतरिक्ष यान को L1 प्वाइंट तक पहुंचने में लगभग चार महीने लगेंगे। अंतरिक्ष यान को पृथ्वी से लगभग 1.5 मिलियन किलोमीटर दूर, सूर्य और पृथ्वी के बीच लैग्रेज बिंदु 1 (L1) की करीबी कक्षा में स्थापित किया जाएगा।
आदित्य मिशन के साइंस वर्किंग ग्रुप का कोचेयर और आर्यभट्ट रिसर्च इंटीट्यूट ऑफ ऑब्जरवेशनल साइंस के निदेशक दीपांकर बनर्जी कहते हैं कि आदित्य मिशन भारत के लिए कई मायनों में बेहद अहम है। अब तक भारत में सूरज के बारे में अध्ययन जमीन पर मौजूद ऑब्जर्वेटरी के जरिए ही किया जाता है। लेकिन इस मिशन के जरिए भारतीय वैज्ञानिक डीप क्रोनोस्फेयर में झांक कर देख पाएंगे। वहीं हमारा आदित्य मिशन दुनिया में किए गए अन्य प्रयासों से थोड़ा अलग है। इसमें हमने खास तरह के टेलिस्कोप का इस्तेमाल किया है। इसके जरिए वैज्ञानिक सूरज से निकलने वाली अलग अलग वेवलेंथ वाली तरंगों में होने वाले उथल पुथल पर नजर रख सकेंगे।
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