Move to Jagran APP

आखिर हम कर क्या रहे हैं, प्यासी है यमुना किनारे बसी दिल्ली, नहीं संभले तो आएगी 'प्रलय'

दिल्ली जलसंकट से जूझ रही है। हिमालय के करीब साठ फीसद जल स्रोत लुप्त हो गए हैं। गोमुख गलकर गिर गया है। अभी संभलने का वक्त है, नहीं संभले तो प्रलय आएगी।

By Amit MishraEdited By: Published: Tue, 05 Jun 2018 05:24 PM (IST)Updated: Wed, 06 Jun 2018 07:22 AM (IST)
आखिर हम कर क्या रहे हैं, प्यासी है यमुना किनारे बसी दिल्ली, नहीं संभले तो आएगी 'प्रलय'
आखिर हम कर क्या रहे हैं, प्यासी है यमुना किनारे बसी दिल्ली, नहीं संभले तो आएगी 'प्रलय'

नई दिल्ली [सुधीर कुमार पांडेय]। नदियां जीवन का आधार होती हैं। देश की संस्कृतियां भी इन्हीं नदियों के किनारे बसीं और बढ़ीं। गंगा, यमुना, नर्मदा, शिप्रा और भी कई नदियों का ऐतिहासिक महत्व है। इन्होंने राम को देखा, कृष्ण को देखा, बुद्ध को भी देखा और महावीर को भी। काकी, औलिया जैसे पीरों को भी इन्हीं की गोद में पनाह मिली।

loksabha election banner

जलसंकट से जूझ रही है दिल्ली

बड़े-बड़े शहर भी इन नदियों के किनारे ही हैं। दिल्ली भी इन शहरों में से एक है। जो गंगा की सबसे बड़ी सहायक नदी यमुना के किनारे है। इसके बावजूद दिल्ली आज जलसंकट से जूझ रही है। हरियाणा और दिल्ली की सरकार एक दूसरे को इसके लिए जिम्मेदार ठहरा रही हैं। मामला सुप्रीम कोर्ट में भी है। लेकिन, यह भी देखना होगा कि आखिर हम क्या कर रहे हैं। क्या सरकारों के भरोसे बैठे रहें। विशेषज्ञों का कहना है कि ऐसी स्थिति के लिए हम भी जिम्मेदार हैं।

यमुना में न तो किनारा बचा और न ही गहराई

रिवर एक्टीविस्ट और यूथ फेडरेशन फाउंडेशन के अध्यक्ष गोपी दत्त आकाश कहते हैं कि प्राकृतिक स्रोतों पर ध्यान दिया जाए तो इस समस्या से काफी हद तक निपट सकते हैं। वह कहते हैं कि यमुना में प्रदूषण की वजह से न तो किनारा बचा है और न ही गहराई। वर्ष दो हजार में यमुना की औसत गहराई 15 मीटर थी जो अब डेढ़ मीटर रह गई है।

...तो जलसंकट होगा ही नहीं

आकाश का कहना है कि यमुना से गाद हटाई जाए। हम नदी को सुरक्षित रखेंगे तो जलसंकट होगा ही नहीं। बारिश आने को है। यदि इससे पहले यमुना की गाद हटा लें तो बारिश का पानी उसमें रह जाएगा। वह कहते हैं कि दिल्ली में तीन सौ तालाब हैं, उन्हें साफ कर लें। उनमें कूड़ा न डालें तो बारिश का पानी उनमें जमा हो जाएगा, जिससे भी जलस्तर सुधरेगा।

निचुड़ गई है दिल्ली

गंगा के पुनरोद्धार के लिए जीवन समर्पित करने वाले निलय उपाध्याय कहते हैं कि दिल्ली में भूमिगत जल का साठ फीसद हिस्सा निकल चुका है। भूजल के दोहन पर मनाही है फिर भी दोहन हो रहा है। दिल्ली लगभग निचुड़ गई है। यहां की स्थिति सुधारने के लिए मूल स्रोतों, स्थायी स्रोतों को पुनर्जीवित करना होगा। दिल्ली का तल इतना कठोर हो गया है कि भूजल नीचे जाता ही नहीं है।

नहीं संभले तो प्रलय आएगी

निलय ने कहा कि हम लोग ही हालात सुधार सकते हैं। जल की निरंतरता बनी रहनी चाहिए। जितना इस्तेमाल करते हैं, उतना जल जमीन के अंदर भी जाना चाहिए। जल चक्र को समझा जाए। चक्र में जहां टूटन हो, उसे ठीक करें। ऐसा न होने पर स्थिति बहुत भयावह हो जाएगी। जो चीज उपलब्ध है, उस पर ध्यान दिया जाए। वह कहते हैं कि पहाड़ों में भी पानी कम हो गया है। हिमालय के करीब साठ फीसद जल स्रोत लुप्त हो गए हैं। गोमुख गलकर गिर गया है। अभी संभलने का वक्त है, नहीं संभले तो प्रलय आएगी।

दिल्ली में रोजाना 1140 एमजीडी पानी की जरूरत

दिल्ली में प्रतिदिन करीब 1140 एमजीडी (मिलियन गैलन प्रतिदिन) पानी की जरूरत है, जबकि जल बोर्ड सामान्य तौर पर 900 एमजीडी पानी की आपूर्ति करता है।

सुप्रीम कोर्ट भी चिंतित

दिल्ली में पानी की स्थिति को लेकर सुप्रीम कोर्ट भी बड़ी टिप्पणी कर चुका है। उसका कहना है कि दिल्ली में पानी का स्तर इतना नीचे चला गया है कि हम राष्ट्रपति को भी पानी नहीं मुहैया करा पा रहे हैं। स्थिति कितनी गंभीर है, यह हम समझ नहीं पा रहे हैं। न ही इसे कोई गंभीरता से ले रहा है। जानकारी के अनुसार दिल्ली में हर साल भूजल स्तर 0.5 मीटर से लेकर दो मीटर तक नीचे गिर रहा है।

यह भी पढ़ें: WHO ने माना- दिल्ली विश्व का चौथा सर्वाधिक प्रदूषित शहर, समस्या की जड़ तक नहीं जाना चाहता कोई


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.