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WHO ने माना- दिल्ली विश्व का चौथा सर्वाधिक प्रदूषित शहर, समस्या की जड़ तक नहीं जाना चाहता कोई

सरकारी विभागों में तालेमल नहीं कहने को डेढ़ वर्ष पूर्व केंद्रीय पर्यावरण मंत्रालय ने दिल्ली-एनसीआर में वायु प्रदूषण से निपटने के लिए चार स्तरीय ग्रेडेड रिस्पास एक्शन प्लान लागू कर दिया है।

By Edited By: Published: Mon, 04 Jun 2018 08:16 PM (IST)Updated: Tue, 05 Jun 2018 11:12 AM (IST)
WHO ने माना- दिल्ली विश्व का चौथा सर्वाधिक प्रदूषित शहर, समस्या की जड़ तक नहीं जाना चाहता कोई
WHO ने माना- दिल्ली विश्व का चौथा सर्वाधिक प्रदूषित शहर, समस्या की जड़ तक नहीं जाना चाहता कोई

नई दिल्ली (संजीव गुप्ता)। विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) ने दिल्ली को फिर से विश्व के चौथे सर्वाधिक प्रदूषित शहर में रखा है। साल दर साल यहा की आबादी ही नहीं, प्रदूषण भी बढ़ता जा रहा है, लेकिन स्थिति काबू में नहीं आ रही। वजह, दिल्ली-एनसीआर में वायु प्रदूषण के कारण कई हैं, मगर सरकारी विभागों में तालमेल नहीं है। समस्या की जड़ तक कोई जाना नहीं चाहता। ये हैं प्रमुख कारण दिल्ली-एनसीआर में आबादी और वाहनों का दबाव तेजी से बढ़ रहा है। हरियाली की कीमत पर यहा भवन निर्माण एवं औद्योगिकीकरण थम नहीं रहा।

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भौगोलिक स्थितिया ऐसी हैं कि हवा की गति आमतौर पर एक मीटर प्रति सेकेंड तक रहती है। जबकि वायु प्रदूषण को खत्म करने के लिए हवा की गति 6 से 10 मीटर प्रति सेकेंड तक होनी चाहिए। हर जगह प्रदूषण के अलग-अलग कारण दिल्ली-एनसीआर में अलग- अलग जगह वायु प्रदूषण के कारण भी अलग अलग हैं। जैसे, आनंद विहार की तरफ उत्तर प्रदेश के डीजल चालित बस- ट्रक आबोहवा में जहर घोलते हैं वहीं पंजाबी बाग में लगने वाला लंबा जाम प्रदूषण बढ़ने का कारण है। इसी तरह एयरपोर्ट पर वायु प्रदूषण बढ़ने की वजह अलग हैं, जबकि आरके पुरम में अलग।

सभी जगह एक जैसे उपायों से प्रदूषण की रोकथाम संभव ही नहीं है। जहा पर जो कारक हैं, उसी हिसाब से एक्शन प्लान तैयार करना होगा। एनसीआर की बात करें तो गुरुग्राम में वाहनों का दबाव ज्यादा है जबकि फरीदाबाद में औद्योगिक इकाइया भी बड़ी वजह हैं। गाजियाबाद व नोएडा में भवन निर्माण गतिविधियों, ईंट भट्ठों व स्टोन थ्रेसर पर प्रशासन का कोई अंकुश नहीं है।

और भी हैं कारण-
1. सड़कों के किनारे, भवन निर्माण के दौरान और सफाई के दौरान उड़ने वाली धूल।

2. वाहनों का धुआ, जेनरेटर का धुआ।

3. कूड़ा, कोयला, लकड़ी जलाने से उत्पन्न होने वाला धुआ।

4. निजी वाहनों की बढ़ती संख्या एवं लंबा जाम।

5. हॉट मिक्स प्लाट और स्टोन थ्रेसर का धड़ल्ले से उपयोग।

6. ठोस कचरा प्रबंधन के लिए कोई पुख्ता योजना नहीं होना।

सरकारी विभागों में तालेमल नहीं कहने को डेढ़ वर्ष पूर्व केंद्रीय पर्यावरण मंत्रालय ने दिल्ली-एनसीआर में वायु प्रदूषण से निपटने के लिए चार स्तरीय ग्रेडेड रिस्पास एक्शन प्लान लागू कर दिया है। लेकिन, इसे क्रियान्वित करने की जिम्मेदारी नगर निगम, एनसीआर प्लानिंग बोर्ड, यातायात पुलिस, राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड तथा दिल्ली एवं एनसीआर के सभी परिवहन आयुक्तों की है। इनमें आपसी तालेमल नहीं है। एक- दूसरा विभाग क्या कर रहा है, आपस में ही नहीं पता होता। राजनीतिक प्रतिद्वंद्विता भी यहा अवरोधक बन रही है। दिल्ली में सरकार आम आदमी पार्टी की है जबकि नगर निगम में भाजपा की सत्ता है। ऐसे में अक्सर दोनों एक-दूसरे पर असहयोग का आरोप लगाते रहते हैं।

हालाकि इस सबके बीच दिल्ली-एनसीआर में वायु प्रदूषण से लड़ाई में पर्यावरण प्रदूषण नियंत्रण प्राधिकरण (ईपीसीए) के चेयरमैन डॉ. भूरेलाल का योगदान सराहनीय है। वरिष्ठ आइएएस अधिकारी रहे भूरेलाल को 1990 में सुप्रीम कोर्ट ने दिल्ली की आबोहवा में सुधार के लिए ईपीसीए गठित कर इसका अध्यक्ष उन्हें नियुक्त किया था। तब से दिल्ली में सार्वजनिक परिवहन के लिए सीएनजी अनिवार्य कराने, दिल्ली-एनसीआर में तमाम एयर मॉनिटरिंग स्टेशन लगवाने और ग्रेडेड रिस्पास एक्शन प्लान बनवाने सहित विभिन्न सुधारात्मक कदम लागू कराने में इनकी भूमिका उल्लेखनीय रही है।

राजनीतिक इच्छाशक्ति और जन सहयोग से थमेगा वायु प्रदूषण
दिल्ली-एनसीआर में वायु प्रदूषण एक बहुत बड़ी समस्या बन चुका है। सुप्रीम कोर्ट और एनजीटी (नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल) के साथ-साथ केंद्रीय वन एवं पर्यावरण मंत्रालय भी खासा चिंतित है। बावजूद इसके आबोहवा में सुधार नहीं हो रहा है तो वह सिर्फ इसलिए क्योंकि ईपीसीए या सीपीसीबी (केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड) प्लान बना सकते हैं, गाइडलाइंस दे सकते हैं, उन पर अमल कराना राज्य सरकारों का काम है। जबकि राजनेता निहित स्वार्थो के लिए सख्त कदम नहीं उठाते।

दिल्ली सरकार को ही ले लीजिए, कई बार व्यक्तिगत तौर पर ईपीसीए के प्रतिनिधि समझा चुके हैं लेकिन वहा से आश्वासन ही मिलता रहता है। इसी तरह उत्तर प्रदेश और हरियाणा भी राजनीतिक दृढ़ इच्छाशक्ति के अभाव से जूझ रहा है। ग्रेडेड रिस्पास एक्शन प्लान को सख्ती से लागू कराने के मामले में भी यही लापरवाही सामने आ रही है। विभिन्न राज्यों की सरकारें अस्थायी व्यवस्था तो करती हैं, लेकिन स्थायी उपाय करने में ढीली पड़ जाती हैं।

दिल्ली में लागू हुई ऑड-इवेन एक अस्थायी व्यवस्था थी। ऐसी व्यवस्था सिर्फ तभी के लिए प्रासंगिक हैं जब स्थिति आपातकालीन हो। उस स्थिति में तो स्कूल-कॉलेज भी बंद किए जा सकते हैं, लेकिन ऐसा कुछ दिन के लिए ही संभव है।- डॉ. भूरेलाल, चेयरमैन, पर्यावरण प्रदूषण नियंत्रण प्राधिकरण (ईपीसीए)


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