टाइगर मच्छर पर बेअसर हो रहे कीटनाशक, जानिए क्या है बचाव

जापान के वैज्ञानिकों ने एक रिसर्च रिपोर्ट में दावा किया है कि मच्छरों को मारने के लिए इस्तेमाल होने वाले घातक केमिकल टाइगर मच्छर पर बेअसर होने लगे हैं...और पढ़ें
विवेक तिवारी जागरण न्यू मीडिया में एसोसिएट एडिटर हैं। लगभग दो दशक के करियर में इन्होंने कई प्रतिष्ठित संस्थानों में कार् ...और जानिए
नई दिल्ली, जागरण प्राइम । डेंगू, चिकनगुनिया और जीका जैसी खतरनाक बीमारियों को फैलाने वाला मच्छर अब और घातक हो चुका है। जापान के वैज्ञानिकों ने एक रिसर्च रिपोर्ट में दावा किया है कि मच्छरों को मारने के लिए इस्तेमाल होने वाले घातक केमिकल टाइगर मच्छर पर बेअसर होने लगे हैं। मच्छरों को मारने के लिए छिड़की जाने वाली दवाओं ने ही इन्हें और मजबूत बना दिया है। एशिया के अलग अलग हिस्सों में टाइगर मच्छर पर किए गए शोध में पता लगा है कि इस मच्छर ने पर्मेथ्रिन जैसे घातक कीटनाशकों के प्रति 1000 गुना तक प्रतिरोधक क्षमता विकसित कर ली है। इसको लेकर वैज्ञानिकों ने चिंता जताई है। गौरतलब है कि हर साल दुनिया की लगभग आधी आबादी डेंगू के खतरे का सामना करती है। विश्व स्वास्थ्य संगठन के मुताबिक पिछले दो दशक में डेंगू के मामलों में 8 गुने से ज्यादा की वृद्धि देखी गई है। डब्लूएचओ ने डेंगू को दुनिया के 10 सबसे बड़े स्वास्थ्य खतरों की सूची में रखा है।
टोक्यो स्थित नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ इंफेक्शियस डिजीज के वैज्ञानिक शिंजी कसाई के मुताबिक उनकी टीम ने थाईलैंड, मलेशिया, इंडोनेशिया, वियतनाम, घाना और ताइवान सहित कुछ अन्य एशियाई देशों से एडीज या टाइगर मच्छर के सैंपल एकत्र करके उन पर अध्ययन किया। रिपोर्ट के मुताबिक एशिया के कई देशों के साथ-साथ घाना के मच्छरों में आनुवांशिक बदलाव हुए हैं और उनमें कई कीटनाशकों के प्रति प्रतिरोधक क्षमता का विकास हुआ है। इसके चलते कुछ लोकप्रिय पाइरेथ्रॉइड-आधारित कीटनाशकों जैसे पर्मेथ्रिन का असर अब इन मच्छरों पर नहीं हो रहा है। कंबोडिया से लिए गए मच्छरों के सैंपल की जांच में पाया गया कि 90 फीसदी मच्छरों में कई अलग अलग तरह के म्यूटेशन हुए हैं। इसके चलते यहां के मच्छरों में काफी अधिक प्रतिरोधक क्षमता देखी गई। यहां के मच्छरों में देखा गया कि कीटनाशक की जितनी मात्रा से सामान्य तौर पर 100 फीसदी तक मच्छर मर जाने चाहिए उनती मात्रा में 7 फीसदी मच्छर भी नहीं मरे। वहीं कीटनाशक की 10 फीसदी तक मात्रा बढ़ाने पर भी 30 फीसदी मच्छर ही मरे। रिसर्च में पाया गया कि कंबोडिया, वियतनाम और घाना में मच्छरों में प्रतिरोधक क्षमता का स्तर अलग अलग है। मच्छरों में अनुवांशिक बदलाव कब हुआ और प्रतिरोधक क्षमता कब बढ़ी इसकी जांच के लिए वैज्ञानिकों की टीम कई अन्य एशियाई देशों में काम कर रही है।
आईसीएमआर के सेंटर ऑफ एक्सिलेंस फॉर क्लाइमेट चेंज एंड वेक्टर बॉर्न डिजीज के प्रिंसिपल इनवेस्टिगेटर रहे डॉक्टर रमेश धीमान बताते हैं कि एडीज या टाइगर मच्छर मौसम में बदलावों के साथ भी तेजी से अनुकूलन कर लेता है। एशियन टाइगर मच्छर को सबसे खतरनाक मच्छर कहा जा सकता है। दरअसल इसके अंडे छह महीने तक पड़े रह सकते हैं। बारिश में या पानी मिलने पर इसमें से लारवा निकल आते हैं। इसे सबसे आक्रामक मच्छर भी माना जाता है। ये काफी तेज और एक साथ कई बार डंक मारने के लिए भी जाना जाता है। दरअसल ये मच्छर किसी इंसान से काफी मात्रा में खून लेकर किसी दूसरे व्यक्ति के शरीर में वायरस पहुंचा सकता है। डेंगू, चिकनगुनिया, यलो फीवर, जीका वायरस और वेस्ट नाइल वायरस से होने वाली बीमारियां ज्यादातर ये मच्छर ही फैलाता है। ये मच्छर अंधेरे का इंतजार नहीं करता है। ये दिन में भी डंक मारता है। इस मच्छर को नियंत्रित करने के लिए सबसे अच्छा तरीका है कि इसके लारवा को मारा जाए। ये मच्छर खास तौर पर शहरी क्षेत्रों में पाया जाता है। घरों में या आसापास पानी से स्रोत इसके प्रजनन की मुख्य जगहें होती हैं।
अध्ययन में एडीज इजिप्टाई के अलावा मच्छरों की अन्य किस्मों में भी प्रतिरोधक क्षमता बढ़ी हुई पाई गई लेकिन एडीज या टाइगर मच्छर की तुलना में ये कम थी। इसकी दो प्रमुख वजहें होने की संभावना जताई जा रही है पहली की टाइगर मच्छर अनुवांशिक तौर पर मजबूत होता है। वहीं ये इंसानों के करीब रहता है जिससे ये कीटनाशकों के ज्यादा संपर्क में आता है।
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