इलाज के सीमित विकल्प के कारण कमर दर्द बन रहा बड़ा संकट, दुनिया की 8% आबादी इससे पीड़ित

लांसेट रूमाटोलॉजी जर्नल में प्रकाशित स्टडी के अनुसार दुनिया में साल 2050 तक कमर दर्द की समस्या से जूझने वाले लोगों की संख्या बढ़कर 84 करोड़ से ज्यादा ...और पढ़ें
नई दिल्ली, प्राइम टीम। कमर दर्द से परेशान लोगों की तादाद दिन-ब-दिन बढ़ती जा रही है। गलत पॉस्चर, विटामिन डी और कैल्शियम की कमी, खराब लाइफस्टाइल, मोटापा, धूम्रपान, बेहतर खान-पान का न होना इसके प्रमुख कारण हैं। एक रिपोर्ट में दावा किया गया है कि अगर कमर दर्द के मरीज इसी तरह बढ़ते रहे तो आने वाले समय में यह महामारी का रूप धारण कर सकता है। लांसेट रूमाटोलॉजी जर्नल में प्रकाशित स्टडी के अनुसार दुनिया में साल 2050 तक कमर दर्द की समस्या से जूझने वाले लोगों की संख्या बढ़कर 84 करोड़ से ज्यादा हो जाएगी। यह स्टडी ऑस्ट्रेलिया स्थित सिडनी विश्वविद्यालय के शोधकर्ताओं ने की है।
शोधकर्ताओं ने पिछले 30 सालों के डेटा का विश्लेषण किया और पाया कि लगातार बढ़ती जनसंख्या तथा बुजुर्गों की आबादी में वृद्धि के कारण एशिया और अफ्रीका में कमर दर्द की समस्या से परेशान लोगों की संख्या में सबसे ज्यादा इजाफा होगा। उनका कहना है कि कमर दर्द की उपचार पद्धतियां विकसित करने की दिशा में सुसंगत दृष्टिकोण की कमी और इलाज के सीमित विकल्पों के कारण एक बड़ा स्वास्थ्य संकट खड़ा होने की आशंका है, क्योंकि कमर दर्द अक्षमता का एक प्रमुख कारण है। अध्ययन में कहा गया है कि पीठ दर्द के इलाज के सीमित विकल्पों ने समस्या बढ़ा दी है। पीठ के निचले हिस्से में दर्द विकलांगता के अहम वजहों में एक है।
तीन साल में बढ़ गए करीब 12 करोड़ मरीज
रिपोर्ट के अनुसार, 2017 के बनिस्पत 2020 में कमर दर्द से परेशान मरीजों की संख्या में करीब 12 करोड़ का इजाफा हो गया। वर्ष 2020 में दुनिया में कमर दर्द की समस्या से जूझ रहे मरीजों की संख्या 61.9 करोड़ पहुंच गई थी। यह विश्व जनसंख्या का करीब 8% है। आम धारणा है कि कमर दर्द की समस्या अक्सर कामकाजी उम्र के वयस्कों में उभरती है, लेकिन इस अध्ययन से पुष्टि हुई है कि पीठ के निचले हिस्से में दर्द की शिकायत बुजुर्गों में अधिक सामने आती है। पुरुषों के मुकाबले महिलाओं में कमर दर्द के मामले अधिक होते हैं।
मुख्य शोधकर्ता प्रोफेसर मैनुएल फरेरा का कहना है कि हमारा विश्लेषण दुनियाभर में कमर दर्द की समस्या से जूझ रहे लोगों की संख्या में वृद्धि को दर्शाता है। यह हमारे स्वास्थ्य तंत्र पर अत्यधिक दबाव डाल रहा है। इससे निपटने के लिए एक राष्ट्रीय, सुसंगत दृष्टिकोण स्थापित करने की जरूरत है, जो अनुसंधान की बुनियाद पर टिका हो। पीठ के निचले हिस्से के दर्द के लिए सुझाए गए सामान्य उपचार अप्रभावी पाए गए हैं, इसमें कुछ सर्जरी और ओपिओइड शामिल हैं।
ये उपाय दिलाएंगे राहत
इंडियन स्पाइनल इंजरी सेंटर, दिल्ली के डॉ. एच.एस. छाबड़ा (स्पाइन सर्जन) कहते हैं कि मांसपेशियों के दर्द को छोटे और आसान व्यायाम से भी दूर कर सकते हैं। ऑफिस में चलते-फिरते कुछ देर पंजों के बल खड़े हों। ऐसा दिन में दो से तीन बार करें। आंखें बंद कर गहरी सांस लें। कंधे को स्ट्रेच करें, पैरों को सीधा रखें। घर पर हैं तो सीधे लेटकर दोनों हाथों को कूल्हे के नीचे रखें। अब पैरों को जमीन पर बिना छुए ऊपर नीचे करें। इससे खून का संचार बेहतर होगा। दर्द बढ़ने पर ही फिजियोथेरेपिस्ट की सलाह लें। खाने में हरी सब्जियां और फाइबर का प्रयोग बढ़ाएं। शारदा अस्पताल के ऑर्थोपेडिक सर्जन डा. भरत गोस्वामी के अनुसार पीठ के निचले हिस्से में दर्द एक आम समस्या बन चुका है। इसकी जद में सबसे कम उम्र के बुजुर्ग शामिल हैं। उम्र के अनुसार कारण अलग-अलग हो सकते हैं। आसन, शेड्यूल, आदत और आहार सामान्य कारक हैं जो समस्या को प्रभावित करते हैं। डिस्क की समस्या 15 से 45 वर्ष की उम्र में होती है। रीढ़ की समस्या कभी भी एक दिन की समस्या नहीं होती है, इसे विकसित होने में कई साल लग जाते हैं। स्पांडलाइटिस मुख्य रूप से युवा और बुजुर्ग महिलाओं में होता है। तपेदिक जैसा संक्रमण सभी आयु समूहों में विकलांगता और दर्द का संभावित कारण हो सकता है।
पौष्टिक आहार, कैल्शियम और विटामिन-डी की करें पूर्ति
सीके बिरला अस्पताल के हड्डी तथा जोड़ रोग विशेषज्ञ डा. देबाशीष चंदा का कहना है कि शरीर में अगर कैल्शियम और विटामिन-डी की कमी है तो हड्डियों में दर्द होगा। हमें पौष्टिक आहार का सेवन करना होगा ताकि शरीर में कैल्शियम की कमी न रहे। विटामिन-डी की पूर्ति करने के लिए दवा है, लेकिन अगर सुबह की धूप में कुछ समय बिताया जाए, तो अच्छा लाभ मिलेगा। हड्डियों को स्वस्थ रखने के लिए कैल्शियम बहुत जरूरी है। शरीर में पर्याप्त मात्रा में कैल्शियम पूरा करने के लिए दूध से बनी चीजें- जैसे पनीर, दही के अलावा बादाम, चावल, सोया, हरी पत्तेदार सब्जियों का सेवन करें।
वह सुझाव देते हैं कि मौसम के हिसाब से कुछ चीजें खानी ही चाहिए। इससे शरीर को प्रोटीन मिलता है। हड्डियों को मजबूत रखने के लिए प्रोटीन का सेवन बहुत जरूरी है। अगर किसी की हड्डी टूट जाती है, तो उसे जल्द ठीक करने में प्रोटीन बड़ा लाभ देता है। दूध, पनीर, दही प्रोटीन अच्छे स्त्रोत है। इसके अलावा कद्दू के बीज, मूंगफली, अमरूद में भी अच्छा प्रोटीन है।
किन वजहों से हो सकता है कमर दर्द
साइटिका
साइटिका शरीर में मौजूद सबसे बड़ी नर्व है। यह कमर के निचले हिस्से से लेकर एड़ी तक होती है। इसमें कोई भी प्रॉब्लम आने पर कमर दर्द होता ही है। कई बार दर्द काफी बढ़ जाता है। शुरुआत में सिर्फ कमर दर्द होता है, फिर यह कूल्हों और पैरों तक चला जाता है। इसके ज्यादातर लक्षण एक पैर में ही दिखाई देते हैं, जैसे पैरों में झनझनाहट या सुन्न होना, कमजोरी, कमर के अलावा कूल्हों और पैरों में हल्का दर्द रहना, कमर की तुलना में पैरों में ज्यादा दर्द होना, पैरों की उंगलियों में दर्द होना।
स्लिप डिस्क
स्लिप डिस्क में भी कमर दर्द होता है। डिस्क रीढ़ की हड्डी में लगे ऐसे पैड होते हैं, जो उसे झटके या दबाव से बचाते हैं। डिस्क में दो पार्ट होते हैं। एक जेल जैसा इंटरनल पार्ट और दूसरी कड़ी बाहरी रिंग। चोट लगने पर डिस्क का भीतरी हिस्सा, बाहरी हिस्से से बाहर निकल जाता है, जिसको स्लिप डिस्क कहा जाता है। यह प्रॉब्लम होने पर कमर में तेज दर्द, बेचैनी, सुन्न होना, दर्द की जगह पर जलन और झनझनाहट होना, चलने में परेशानी, मांसपेशियों में कमजोरी आना, शरीर के एक हिस्से में ज्यादा दर्द होना जैसे लक्षण दिख सकते हैं।
स्पाइनल अर्थराइटिस
स्पाइन में अर्थराइटिस भी कमर दर्द की एक वजह हो सकता है। अगर आपको कमर दर्द की शिकायत है तो स्पाइनल अर्थराइटिस के चांस बढ़ जाते हैं। ऐसे में, इसे बिल्कुल भी नजरअंदाज न करें। कमर दर्द, गर्दन दर्द, कमर और गर्दन में कड़ापन रहना, चलते वक्त पैरों में दर्द होना, पैरों का सुन्न होना, कमजोरी इसके कुछ अहम लक्षण हैं।
बच्चों में बढ़ा टेक्स्ट नेक सिंड्रोम
ब्राजील के शोधकर्ताओं ने भी रीढ़ की हड्डी की दिक्कतों पर एक शोध किया है। इस शोध में पता चला कि दिन में तीन घंटे से अधिक समय तक किसी भी तरह की स्क्रीन को देखना (मोबाइल, टैब आदि), काफी करीब से स्क्रीन देखना और पेट के बल बैठना या लेटना कमर दर्द और रीढ़ की हड्डी में परेशानियों के कारण हैं।
यह अध्ययन थोरेसिक स्पाइन पेन (टीएसपी) पर केंद्रित था। थोरैसिक रीढ़ छाती के पीछे स्थित होती है। यह कंधे के ब्लेड के बीच और गर्दन के नीचे से कमर तक फैली होती है। इस शोध में 14 से 18 वर्ष के 1,628 छात्र-छात्राओं को शामिल किया गया था। शोध से पता चला कि थोरैसिक स्पाइन पेन से लड़कों के मुकाबले लड़कियां अधिक प्रभावित हैं।
पब्लिक हेल्थ एक्सपर्ट समीर भाटी का कहना है कि टेक्स्ट नेक समस्या पहले बड़ों में देखी जाती थी, पर कोविड के दौरान नर्सरी क्लास के बच्चों को भी अपनी क्लासेज लेने के लिए टैब का इस्तेमाल करना पड़ा, जिससे उनमें भी यह समस्या उभरने लगी। टेक्स्ट नेक समस्या को टेकनेक सिंड्रोम भी कहते हैं। आमतौर पर इसके जो सिम्पटम्स होते हैं उनमें बचे गर्दन, पीठ और सिर में दर्द, विज़न प्रॉब्लम, कमर व शोल्डर प्रॉब्लम की शिकायत करते हैं। कुछ सावधानियां बरतने से टेकनेक की समस्या से निजात पा सकते हैं।
1.बच्चों को सही मुद्रा में बैठना और उनके बॉडी पॉस्चर का विशेष तौर पर ध्यान रखना पड़ेगा। स्क्रीन का इस्तेमाल करते वक़्त स्क्रीन आंखों के लेवल पर होनी चाहिए ।
2.डिवाइस के इस्तेमाल का समय सीमित करना चाहिए और बीच-बीच में ब्रेक लेना बहुत जरूरी है। लगातार लम्बे समय तक नहीं बैठना चाहिए। 20 से 30 मिनट्स का एक टाइमर फिक्स करके ब्रेक लेना जरूरी है।
3.जहाँ बच्चे स्क्रीन इस्तेमाल कर रहे हैं उस कमरे की लाइट का भी ध्यान रखना होगा ताकि स्क्रीनलाइट का आईज पर ज्यादा असर न पड़े।
4.बच्चों को स्ट्रेंग्थेनिंग और स्ट्रेचिंग एक्सरसाइज की आदत डलवानी होगी जिससे उनकी मसल हेल्थ बनी रहे।
5.सिरदर्द, आँखों में स्ट्रेन, ड्राई आइज़ होना, गर्दन दर्द, कमर दर्द , हाथों या कलाई में डिस्कम्फर्ट , ऐसे लक्षण नजर आते हैं तो हमें उसे इग्नोर नहीं करना चाहिए , उचित स्ट्रेचिंग एक्सरसाइज फिजियोथेरेपी या रेस्ट करके प्रॉब्लम को रोकना होगा।
6.इसके लिए बैक को आप स्ट्रेच करें। पीछे की तरफ, सर को लेफ्ट राइट घुमाएं। चिन को राइट और लेफ्ट डायरेक्शन में टर्न करें । इससे बच्चों के मसल्स में जो तनाव या स्टिफनेस महसूस हो रही है वो कम होगी।

बदलती जलवायु से पड़ेगा दूग्ध उत्पादन पर असर, एक दिन की तेज गर्मी से घट जाता है 10 दिन का उत्पादन


बढ़ता वायु प्रदूषण, दिल- दिमाग की सेहत को पहुंचा रहा नुकसान, बढ़ा रहा बीमारियों का खतरा
-1760521574137.webp)
भारत समेत एशिया में सबसे तेज़ बढ़ा एंटीबायोटिक रेजिस्टेंस, बढ़ेगा महामारी का खतरा

भारत में बढ़ती ऑटोइम्यून बीमारियां, महिलाओं में क्यों ज्यादा दिख रहा असर?

कमेंट्स
सभी कमेंट्स (0)
बातचीत में शामिल हों
कृपया धैर्य रखें।