नई दिल्ली, अनुराग मिश्र । उत्तर भारतीय थाली सोडियम, पौटेशियम, फॉस्फोरस और प्रोटीन आदि के मामले में असंतुलित है। जॉर्ज इंस्टीट्यूट फॉर ग्लोबल हेल्थ इंडिया द्वारा किए गए अध्ययन के अनुसार सोडियम, पौटेशियम, फॉस्फोरस और प्रोटीन के असंतुलन के कारण गैर-संचारी रोग जैसे कि कार्डियोवास्कुलर बीमारी, हाइपरटेंशन और किडनी से संबंधित बीमारी के बढ़ने का जोखिम बढ़ता है। रिपोर्ट में कहा गया है कि पौष्टिक खान-पान और बेहतर लाइफस्टाइल कई बीमारियों के खतरे को कम कर सकता है।

अनुशंसित स्तर से अधिक नमक का सेवन, अपर्याप्त पौटेशियम का सेवन और अनुशंसित आहार से कम प्रोटीन का सेवन उच्च रक्तचाप, हृदय रोग और क्रोनिक किडनी रोग के विकास का जोखिम बढ़ता है । स्टडी रिपोर्ट के अनुसार पुरुषों में महिलाओं की तुलना में पोषण अधिक पाया गया। द जॉर्ज इंस्टीट्यूट फॉर ग्लोबल हेल्थ, भारत के कार्यकारी निदेशक और किडनी स्वास्थ्य विशेषज्ञ और प्रमुख अध्ययन लेखक प्रोफेसर विवेकानंद झा का कहना है कि खराब पौष्टिक आहार गैर-संचारी रोगों (एनसीडी) के लिए एक बड़ा जोखिम है। भारत में लोग अलग-अलग खाद्य पदार्थ खाते हैं, इसलिए यह जानना महत्वपूर्ण है कि इन बीमारियों को रोकने और प्रबंधित करने में मदद के लिए उन्हें कौन से पोषक तत्व मिल रहे हैं? उच्च नमक का सेवन और कम पोटेशियम का सेवन स्वास्थ्य के लिहाज से बेहतर नहीं है। अध्ययन के निष्कर्ष इस तथ्य को उजागर करते हैं कि अच्छे हृदय और गुर्दे के स्वास्थ्य के लिए आहार में कई पोषक तत्वों का सेवन आवश्यक है, लेकिन उनका सेवन स्तर के अनुकूल नहीं है। उन्होंने कहा कि यह अध्ययन दिखाता है कि उत्तर भारतीय समुदायों के लिए एक स्वस्थ भविष्य को बढ़ावा देने के लिए एनसीडी से लड़ने के लिए सक्रिय कदम कैसे उठाए जाएं।

इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिसिन (द नेशनल एकेडमी ऑफ मेडिसिन) के अनुसार, स्वस्थ वयस्कों के लिए फास्फोरस और प्रोटीन के लिए अनुशंसित आहार (आरडीए) 700 मिलीग्राम/दिन और 0.80 ग्राम/किग्रा/दिन है।

भारत के अलग-अलग हिस्सों में खानपान में अंतर

मुख्य रूप से शाकाहारी भारतीयों में सामान्य प्रोटीन का सेवन 39-57 ग्राम/दिन संभावित तौर पर होता है। भारत के पूर्वी और दक्षिणी भागों में मीठा, नमकीन, मांस या मछली सबसे अधिक प्रचलित आहार थे जबकि उत्तर और पश्चिम में फल, सब्जियां, चावल और दालें लोकप्रिय थे। अध्ययन में सामने आया कि सामान्य बीएमआई वाले लोगों की तुलना में उच्च बीएमआई वाले लोगों में नमक, प्रोटीन, पोटेशियम और फास्फोरस का सेवन अधिक था। बीएमआई के मानकों के अनुसार,मोटापे से पीड़ित पुरुषों और महिलाओं दोनों में इन सभी पोषक तत्वों का अधिक सेवन होता है। वहीं महिलाओं में इन सभी का स्तर कम था।

स्टडी में दिए गए सुझाव

डा. विवेकानंद झा का कहना है कि अध्ययन से पता चलता है कि आहार संबंधी दिशानिर्देश होना महत्वपूर्ण है। यह गाइडलाइंस स्थान विशेष के लिहाज से बनाई जानी चाहिए। हमें पोषक तत्वों में असंतुलन को ठीक करने और विविधता बढ़ाकर लोगों को अधिक स्वस्थ खाने के लिए प्रोत्साहित करने के लिए कार्रवाई करने की आवश्यकता है। गैर-संचारी रोगों (एनसीडी) के खतरों को कम करने के लिए, शोधकर्ताओं ने तमाम स्तरों पर रणनीतियां बना उन्हें लागू करने का सुझाव दिया। इसके लिए खाद्य लेबल पर बेहतर जानकारी प्रदान करना शामिल है ताकि लोग स्वस्थ विकल्प चुन सकें। प्रसंस्कृत खाद्य पदार्थों में नमक कम करें और लोगों को अधिक फल और सब्जियां खाने के लिए प्रोत्साहित करें।

तीन दशकों में पौष्टिकता हुई कम

नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ न्यूट्रिशन ने 2017 में एक रिपोर्ट जारी की थी। इससे पहले 1989 में खाद्य पदार्थों के पोषण पर एक रिपोर्ट जारी की गई थी। 2017 की रिपोर्ट में सूचीबद्ध सभी खाद्य पदार्थों और पोषक तत्वों का उल्लेख 1989 की रिपोर्ट में नहीं मिलता है। फिर भी, इन दोनों रिपोर्ट की तुलना करने पर पता चलता है कि अधिकतर खाद्य पदार्थों के पोषण में कमी आई है। इंडियन फूड कंपोजिशन टेबल 2017 रिपोर्ट के शोधकर्ताओं ने देश के 6 अलग-अलग स्थानों से लिए गए 528 खाद्य पदार्थों में 151 पोषक तत्वों को मापा था।

इसके अनुसार इन 28 वर्षों में गेहूं में कार्बोहाइड्रेट करीब 9 फीसदी घटा है। बाजरा का सेवन मुख्य रूप से कार्बोहाइड्रेट के लिए किया जाता है। पिछले तीन दशकों में बाजरा में कार्बोहाइड्रेट का स्तर 8.5 प्रतिशत कम हो गया है। इसी तरह, दालों में उनके प्रमुख पोषक तत्व प्रोटीन की कमी हो रही है, जो ऊतकों के निर्माण, मरम्मत और रखरखाव में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। मसूर में प्रोटीन 10.4 फीसदी और मूंग में 6.12 फीसदी कम हुआ है।

पुणे की हीराबाई कोवासजी जहांगीर मेडिकल रिसर्च की प्रोजेक्ट मैनेजर रुबीना मांडलिक कहती हैं कि 1989 और 2017 में मापे गए खाद्य पदार्थों में पोषक तत्वों की कमी की कई वजह हो सकती हैं। एक वजह उनकी वैराइटी और मिट्टी का फर्क हो सकता है। धान के मामले में तकनीक का अलग-अलग इस्तेमाल भी अंतर का कारण हो सकता है। इसके अलावा फल के पकने के अलग-अलग चरण, कृषि पद्धतियों में बदलाव भी इसकी वजह हो सकती है। आलू में आयरन बढ़ गया है लेकिन थायमिन (विटामिन बी1), मैग्नीशियम और जिंक कम हो गया है। गोभी में चार सूक्ष्म पोषक तत्वों में आश्चर्यजनक रूप से 41-56 प्रतिशत की कमी आई है। पके टमाटर में थायमिन, आयरन और जिंक 66-73 फीसदी तक कम हो गया है। हरे टमाटर में आयरन 76.6 फीसदी और सेब में 60 फीसदी तक कम हुआ है।

भारत में बढ़ रहे हृदय रोग और डायबिटीज के मामले

भारत में उच्च रक्तचाप, मधुमेह, हृदय रोग (सीवीडी) और क्रोनिक किडनी रोग (सीकेडी) जैसे गैर-संचारी रोगों (एनसीडी) का बोझ बढ़ रहा है। विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) के अनुसार, भारत में 2016 में दर्ज की गई कुल मौतों में से 63% एनसीडी के कारण थीं, जिनमें से 27% हृदय रोगों (सीवीडी) के कारण थीं। इसी तरह, भारत में सीकेडी (क्रोनिक किडनी डिजीज) से होने वाली मौतों की संख्या बढ़ रही है। अस्वास्थ्यकर आहार, शारीरिक गतिविधि की कमी और शराब और तंबाकू का उपयोग एनसीडी के प्रमुख जोखिम कारक हैं।

यूरोपियन जर्नल ऑफ प्रिवेंटिव कार्डियोलॉजी में प्रकाशित शोध के अनुसार हार्ट फेल के मामले 70 से 74 साल के पुरुषों में अधिक है। वहीं 75-79 साल की महिलाओं में हार्ट फेल के मामले ज्यादा है। प्रमुख बात यह है कि 70 साल से अधिक उम्र की महिलाओं में पुरुषों की तुलना में हार्ट फेल के मामले अधिक है। रिपोर्ट में बड़ी बात यह है कि हार्ट फेल के मामले 1990-2017 के दौरान चीन और भारत में सबसे अधिक बढ़े हैं। चीन में हार्ट फेल के मामले 29.9 फीसद बढ़े है वहीं भारत में 16 फीसद बढ़े है। यानी सीधे तौर पर कहें तो यह एशिया में तेजी से बढ़ रहा है।

दुनिया भर में सबसे अधिक मामले इस्केमिक हार्ट रोग के होते हैं। यह कुल मामलों का 26.5 फीसद होते हैं। जबकि हाइपरसेंसिटिव हार्ट रोग और क्रानिक ऑब्सट्रक्टिव पल्मोनरी डिजीज कुल मामलों का क्रमश: 26.2 और 23.4 प्रतिशत होते हैं। रिपोर्ट के अनुसार इस्केमिक हार्ट रोग, ऑब्सट्रक्टिव पल्मोनरी डिजीज और एल्कोहलिक कार्डियोपैथी पुरुषों में अधिक होती है जबकि हाइपरसेंसिटिव हार्ट रोग और रयूमेटिक हार्ट रोग महिलाओं में अधिक होते हैं।

नमक को लेकर डब्ल्यूएचओ की चेतावनी

विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) की एक रिपोर्ट के मुताबिक अगर नमक का संतुलित तरीके से प्रयोग किया जाए तो 70 लाख लोगों की जान बचाई जा सकती है। वहीं डब्ल्यूएचओ समेत कई रिपोर्ट कहती है कि विकासशील देशों के लोग, जिसमें भारत भी शामिल है में अधिक नमक का इस्तेमाल कर रहे हैं। जबकि विकसित देशों में रोजाना नमक खाने की आदत में सुधार आया है और वे नमक खा रहे हैं, जिससे वे स्वस्थ भी हो रहे हैं।

नमक का सीमा से अधिक लंबे समय तक सेवन खतरनाक

शारदा अस्पताल के डिपॉर्टमेंट ऑफ जनरल मेडिसिन के डा. श्रेय श्रीवास्तव कहते हैं कि सोडियम एक आवश्यक पोषक तत्व है, लेकिन बहुत अधिक नमक खाने से यह आहार और पोषण संबंधी मौतों के लिए शीर्ष जोखिम कारक बन जाता है। सोडियम का मुख्य स्रोत टेबल सॉल्ट होता है। वह कहते हैं कि सोडियम के अधिक इस्तेमाल से आपको अधिक प्यास लगने, ब्लॉटिंग और रक्तचाप जैसी दिक्कतें होती है। लंबे समय तक नमक का अधिक सेवन दिल के रोग, किडनी रोग, किडनी स्टोन, स्ट्रोक, हाई ब्लड प्रेशर, हाइपरटेंशन जैसी समस्या होने की संभावना बढ़ जाती है। डा. श्रीवास्तव कहते हैं कि अमेरिकन हार्ट एसोसिएशन और 2020-2025 डायटरी गाइडलाइंस के अनुसार 2300 मिग्रा नमक से अधिक का सेवन न करें। डब्ल्यूएचओ के डिपॉर्टमेंट ऑफ न्यूट्रिशियन फॉर हेल्थ एंड डेवलपमेंट के निदेशक डा. फ्रांसेको ब्रांका कहते हैं कि विश्व स्वास्थ्य संगठन की सोडियम कम करने की सिफारिशों को अगर लागू किया जाए तो 2025 तक बीस लाख लोगों की जान बचाई जा सकती है और 2030 तक 70 लाख लोगों की जान बच सकती है। हम रोजाना अपने खाने में कम नमक का इस्तेमाल करने की आदत डालें।