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    'एक परीक्षा में चूकना, अवसरों का छूटना नहीं', नंदन नीलेकणि ने बताया कैसे बने इंफोसिस के को-फाउंडर

    Updated: Fri, 24 Oct 2025 03:14 PM (IST)

    नंदन नीलेकणि, आईआईएम प्रवेश परीक्षा में चूक गए, पर यह चूक उनके जीवन का महत्वपूर्ण मोड़ साबित हुई। आईआईटी बॉम्बे से स्नातक होने के बाद, उन्होंने परीक्षा छोड़ दी क्योंकि उनकी तबीयत ठीक नहीं थी। बाद में, उन्होंने पटनी कंप्यूटर सिस्टम्स ज्वाइन किया और नारायण मूर्ति से मिले। मूर्ति के साथ मिलकर उन्होंने इंफोसिस की स्थापना की। नीलेकणि ने बताया कि कैसे एक 'गलती' ने उन्हें ऐसा रास्ता दिखाया जिसकी उन्होंने कल्पना भी नहीं की थी।

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    नंदन नीलेकणि। (पीटीआई)

    डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। एक परीक्षा का छूट जाना हमेशा एक अवसर का छूट जाना नहीं होता और शायद ये बात नंदन नीलेकणि से बेहतर कोई नहीं समझ सकता। नीलेकणि आआईएम के एंट्रेंस एग्जाम देने से चूक गए, लेकिन यही चूक उनके जीवन की सबसे बड़ा निर्णय साबित हुई।

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    ग्रो के साथ एक इंटरव्यू में नीलेकणि ने बताया कि आईआईटी बॉम्बे से ग्रेजुएट होने के बाद उनका आईआईएम में एंट्रेंस एग्जाम देने का इरादा था, लेकिन उन्होंने परीक्षा नहीं दी क्योंकि उस दिन उनकी तबीयत ठीक नहीं थी। उन्होंने कहा कि वह इसलिए बीच में फंसे रहे क्योंकि वह SAT या GMAT के लिए आवेदन करने में बहुत आलसी थे।

    नीलेकणि ने बताया कि कैसे उन्हें मुंबई स्थित एक छोटी सी टेक फर्म, पटनी कंप्यूटर सिस्टम्स के बारे में जानकारी मिली, जो उस समय ऑनलाइन कंप्यूटर चलाती थी, जो एक दुर्लभ बात थी। उन्होंने कहा, "मैंने पटनी कंप्यूटर सिस्टम्स नाम की इस छोटी सी कंपनी के बारे में सुना था। हुआ यूं कि 1977 में आईबीएम भारत छोड़कर चली गई। इसलिए, यहां एक तरह का खालीपन था, इसलिए पटनी भारत में डिजिटल डेटा जनरल के एजेंट थे।"

    नारायण मूर्ति से नंदन नीलेकणि की मुलाकात

    जिसके बाद मैंने नरीमन पॉइंट में एक कंपनी ज्वाइन की, अपने भावी साथी और तत्कालीन इंजीनियर एनआर नारायण मूर्ति से मुलाकात की, और एक चुनौती का समाधान करने पर मुझे नौकरी का प्रस्ताव मिला। उस सौभाग्यशाली मुलाकात ने 1981 में इंफोसिस की स्थापना का रास्ता साफ किया।

    इंफोसिस नारायण मूर्ति का विचार था- नीलेकणि

    नीलेकणि ने बताया कि इंफोसिस का नारायण मूर्ति ने ही मूल विचार प्रस्तुत किया था। वह हमेशा से एक कंपनी शुरू करना चाहते थे। इसलिए, हम उनके साथ जुड़ गए। हम सभी ने उनके लिए काम किया। और हमने इंफोसिस की शुरुआत की।" नीलेकणि के निर्देशन में व्यवसाय का तेजी से विस्तार हुआ और इसका सबसे तेजी से विकास करने वाला दौर उनके सीईओ कार्यकाल के दौरान आया।

    उन्होंने उस दृष्टिकोण पर भी जोर दिया जो इंफोसिस की विशेषता बन गया: "बहुत बड़े लक्ष्य निर्धारित करना... 10 करोड़ तक पहुंचना, अरब तक पहुंचना... जो भी हो, 10 अरब।"

    एक ऐसी गलती जिसके लिए मुझे खुशी है - नीलेकणि

    नीलेकणि ने परीक्षा छूटने को याद करते हुए कहा, "एक ऐसी गलती जिसके लिए मुझे खुशी है कि मैंने ऐसा किया। विदेश नहीं जाना, आईआईएम में दाखिला नहीं लेना।" उन्होंने आगे कहा कि इससे उन्हें एक ऐसा रास्ता अपनाने का मौका मिला जो शायद वह अन्यथा नहीं अपना पाते।

    नीलेकणी मार्च 2002 से अप्रैल 2007 तक इंफोसिस के सीईओ रहे। वे नारायण मूर्ति के उत्तराधिकारी थे और उनके बाद क्रिस गोपालकृष्णन ने यह पद संभाला। यह इन्फोसिस के विकास के सबसे तेज दौरों में से एक था, जिसमें कंपनी की बिक्री लगभग छह गुना बढ़कर लगभग 3 अरब डॉलर हो गई। नीलेकणि जुलाई 2009 से मार्च 2014 तक भारतीय विशिष्ट पहचान प्राधिकरण (UIDAI) के अध्यक्ष रहे।

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