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    आइए जानें, क्‍या है नानावती आयोग

    By Sanjay BhardwajEdited By:
    Updated: Wed, 19 Nov 2014 09:58 AM (IST)

    27 फरवरी 2002 को गोधरा में साबरमती एक्‍सप्रेस में 59 कारसेवकों को जलाने की घटना के प्रतिक्रियास्‍वरूप समूचे गुजरात में दंगे भड़क उठे थे। इसकी जांच के लिए तीन मार्च 2002 को तत्‍कालीन राज्‍य सरकार ने सुप्रीम कोर्ट सेवानिवृत्त जज न्यायमूर्ति जीटी नानावती की अध्‍यक्षता में एक आयोग का गठन

    नई दिल्ली। 27 फरवरी 2002 को गोधरा में साबरमती एक्सप्रेस में 59 कारसेवकों को जलाने की घटना के प्रतिक्रियास्वरूप समूचे गुजरात में दंगे भड़क उठे थे। इसकी जांच के लिए तीन मार्च 2002 को तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी ने सुप्रीम कोर्ट सेवानिवृत्त जज न्यायमूर्ति जीटी नानावती की अध्यक्षता में एक आयोग का गठन किया। न्यायमूर्ति केजी शाह आयोग के दूसरे सदस्य थे।

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    शुरू में आयोग को साबरमती एक्सप्रेस में आगजनी से जुड़े तथ्य और घटनाओं की जांच का काम सौंपा गया। लेकिन जून 2002 में आयोग को गोधरा कांड के बाद भड़की हिंसा की भी जांच करने के लिए कहा गया। आयोग ने दंगों के दौरान नरेंद्र मोदी, उनके कैबिनेट सहयोगियों व वरिष्ठ अफसरों की भूमिका की भी जांच की।

    आयोग ने सितंबर 2008 में गोधरा कांड पर अपनी प्राथमिक रिपोर्ट पेश की थी। इसमें गुजरात के तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी को क्लीन चिट दी गई थी। उस समय आयोग ने साबरमती एक्सप्रेस की बोगी संख्या-छह में आग लगाने को सुनियोजित साजिश का परिणाम बताया था। 2009 में शाह के निधन के बाद अक्षय मेहता को सदस्य बनाया गया।

    पिछले 12 साल में आयोग का 24 बार कार्यकाल बढ़ाया गया और एक आरटीआइ मुताबिक पूरी जांच में सात करोड़ रुपये से ज्यादा खर्च हुए।

    आयोग ने 45 हजार शपथ पत्र व हजारों गवाहों के बयान के बाद करीब ढाई हजार पेज की रिपोर्ट तैयार की और इसे 18 नवंबर 2014 को मुख्यमंत्री आनंदीबेन पटेल को सौंप दिया गया। अब इस रिपोर्ट को विधानसभा के पटल पर रखा जाएगा।

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