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    आगरा से अलीगढ़ तक ‘ट्रिपल तलाक’ पर केंद्र के निर्णय का स्‍वागत

    By Monika minalEdited By:
    Updated: Sat, 08 Oct 2016 10:32 AM (IST)

    सुप्रीम कोर्ट में केंद्र ने मुसलमानों के बीच तीन तलाक का विरोध किया है और केंद्र के इस कदम का स्‍वागत सभी कर रहे हैं।

    आगरा (जेएनएन)। आगरा से अलीगढ़ तक लोग एक स्वर में कह रहे हैं कि ‘ट्रिपल तलाक’ पर प्रतिबंध लगना चाहिए। केंद्र ने मुसलमानों के बीच तीन तलाक, निकाह हलाला और बहु विवाह प्रथा का सुप्रीम कोर्ट में विरोध किया। केंद्र के इस फैसले का स्वागत तमाम मुस्लिम महिलाएं कर रही हैं।

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    मुस्लिम पर्सनल बोर्ड की तानाशाही

    सामाजिक कार्यकर्ता मारिया आलम उमर ने अलीगढ़ में कहा कि न केवल ट्रिपल तलाक बल्कि मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड को भी समाप्त कर देना चाहिए। उमर ने कहा की बोर्ड का गठन इसलिए किया गया था कि यह शरिया कानून की पेचिदगियों को समझाए लेकिन यह उस काम के बजाए तानाशाही कर रहा है और पुरुषों के पक्ष में है। उमर ने बताया कि कुरान के अनुसार, मुस्लिम महिलाओं को बराबर का अधिकार है जिसमें मुस्लिम महिला अपने पति को तलाक (खुल्ला) दे सकती है। केंद्र की ओर से ट्रिपल तलाक का विरोध किए जाने को अच्छा फैसला बताते हुए उन्होंने कहा कि यदि मुस्लिम पर्सनल बोर्ड ट्रिपल तलाक का पक्ष लेती है तो उसे तलाकशुदा महिलाओं के भरण-पोषण का जिम्मा भी लेना चाहिए।

    इस्लामिक देशों में भी लगे प्रतिबंध

    अलीगढ़ में इंटरप्रेन्योर, शाजिया सिद्दकी ने भी केंद्र के इस फैसले का स्वागत करते हुए कहा,’यह प्रैक्टिस भेद-भाव वाला है और इसे खत्म कर देना चाहिए। किसी को मात्र तीन शब्द ‘तलाक’ बोल कर शादी खत्म करने और महिला के जीवन को बर्बाद करने क्या हक। इस्लामिक देशों को भी ट्रिपल तलाक बंद कर देना चाहिए।

    इस्लाम नहीं करता वकालत

    आगरा में बैकुंटी देवी गर्ल्स डिग्री कॉलेज की उर्दू विभाग की प्रमुख, डॉ नसरीन बेगम ने कहा, ट्रिपल तलाक, बहुविवाह और निकाह हलाला धर्म का जरूरी हिस्सा नहीं है।‘ उन्होंने आगे कहा कि इस काम को खत्म करने का समय आ गया है। बेगम ले कहा, ‘इस्लाम ट्रिपल तलाक की वकालत नहीं करता है और यह मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड की मनमानी चाल है। इन मामलों में बोर्ड के निर्णय में महिलाओं को भी शामिल होना चाहिए।‘

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