यूनुस की कहानी: अमेरिकी डीप स्टेट-राजनीतिक थ्रिलर, 50 साल पहले कैसे शुरू हुआ भारत विरोधी एजेंडा?
प्रोफेसर मोहम्मद यूनुस की अंतरिम सरकार में भारत विरोधी एजेंडा शुरू हो गया है। उनका भारत विरोधी रुख बढ़ता जा रहा है। वर्ष 1972 में उनकी एक छोटी सी नारा ...और पढ़ें

जयप्रकाश रंजन, नई दिल्ली। वर्ष 2023 में जिस बांग्लादेश को आर्थिक विकास के एक प्रमुख उदाहरण के तौर पर वैश्विक बिरादरी में चिह्नित किया जा रहा था वह देश वर्ष 2025 के अंत में राजनीतिक अस्थिरता और आंतरिक कलह का मैदान बन चुका है।
अगस्त, 2024 के छात्र आंदोलन से शुरू हुई क्रांति अब हिंसा, हत्या और अराजकता में बदल गई है। इसके साथ ही नोबेल पुरस्कार विजेता प्रोफेसर मोहम्मद यूनुस की अंतरिम सरकार के कार्यकाल में भारत विरोध एजेंडा शुरू हो गया।
एंटी-इंडिया प्रोपगैंडा
कभी पाकिस्तान व चीन के साथ सैन्य संबंधों को बढ़ावा देना, कभी भारत के पूर्वोत्तर राज्यों की सुरक्षा को लेकर टिप्पणी करना, कभी पानी बंटवारे जैसे मुद्दों को उठाना, कभी पूर्व पीएम शेख हसीना के प्रत्यर्पण करने की मांग करना मतलब उनका एंटी-इंडिया प्रोपगैंडा बढ़ता ही जा रहा है। क्या प्रोफसर युनुस का भारत विरोधी एजेंडा सिर्फ राजनीति में उनके बने रहने का हथियार है या यह वैश्विक कूटनीतिक खेल का हिस्सा है?

राजनीतिक थ्रिलर
वस्तुत: उन्होंने अपनी महत्वाकांक्षा के आड़े आने वाली शेख हसीना के लिए हमेशा से भारत को दोष दिया और शुरुआती काल से ही भारत के खिलाफ मन बना लिया। यही कारण है कि एक अर्थशास्त्री होने के बावजूद बंग्लादेश में यूनुस का कार्यकाल आर्थिक तरक्की की बजाय भारत विरोधी घटनाओं से ही भरा रहा है। दैनिक जागरण ने जब इस बारे में खोज बीन शुरू की तो जो बात सामने आई वह राजनीतिक थ्रिलर से कम नहीं है।
बांग्लादेश वापस लौटे
बात सामने आई है कि प्रोफेसर यूनुस के सार्वजनिक जीवन की शुरुआत में ही भारत विरोध का बीज पड़ चुका था। भारत को लेकर वर्ष 1972 में उनकी एक छोटी सी नाराजगी ने पांच दशकों में एक राजनीतिक तूफान का शक्ल ले लिया है। युनुस का भारत विरोध का एजेंडा वर्ष 1972 में तब शुरु हुआ जब वह अमेरिका से हाल ही में आजाद हुए बांग्लादेश वापस लौटे।

मन में भारत विरोध का बीज
- ढाका विश्वविद्यालय में दुनिया भर के दूसरे विश्वविद्यालयों से बांग्लादेशी मूल के प्रोफेसरों को बुलाया गया था। यूनुस को उम्मीद थी कि उन्हें भी ढाका विश्वविद्यालय में अच्छी पदवी मिलेगी। लेकिन बंग-बंधु शेख मुजीबुर्रहमान ने जो पद उन्हें दिया, उससे युनुस ने अपनी गरिमा से कमतर करके आंका।
- शेख मुजीबुर्रहमान के भारत से गहरे संबंध थे और यूनुस ने ढाका विश्वविद्यालय में एक अदद नौकरी की इनकार को भारत से जोड़ कर देखा। यहीं से उनके मन में भारत विरोध का बीज पड़ा।
- मुजीब को उन्होंने दुश्मन माना और मुजीब के राजनीतिक विरोधी मेजर जियाउर रहमान उनके हीरो बन गये। भारत से दूरी रखने वाली बीएनपी पार्टी के साथ युनुस का तभी से संपर्क कायम हो गया था।
बांग्लादेश में भयंकर अकाल
बांग्लादेश के पूर्व राजनयिक बी जेड खासरू ने अपनी किताब 'हसीना, यूनुस एंड द यूनाइटेड स्टेट्स: द पावर स्ट्रगल फॉर बांग्लादेश' में लिखा है कि वर्ष 1974 में जब बांग्लादेश भयंकर अकाल से जूझ रहा था तो शेख मुजीबुर्रहमान की सरकार बहुत कुछ नहीं कर पा रही थी। तब यूनुस अपने साथी प्रोफेसरों को उकसाते थे कि वह मुजीब सरकार की निंदा करे।

पनप रही थी भारत विरोधी भावना
मुजीब की भारत-समर्थक छवि उन्हें चुभती थी। यूनुस मानते थे कि सत्ता में बने रहने के लिए शेख मुजीबुर्रहमान भारत का इस्तेमाल कर रहे हैं। अंदर ही अंदर उनमें भारत विरोधी भावना पनप रही थी। यह वह दौर भी था जब यूनुस ने ग्रामीण बैंक की योजना को जमीन पर उतारने का मन बना लिया था। कूटनीतिक जानकार बताते हैं कि ग्रामीण बैंक की सफलता के साथ ही यूनुस अमेरिका और यूरोपीय देश के एक खास लॉबी के करीब आ जाते हैं। खास तौर पर उन्हें अमेरिका का डीप स्टेट भावी एशिया के समीकरण में अपनी एक भरोसेमंद साथी के तौर पर चिन्हित कर लेता है।
मोहम्मद यूनुस को नोबल पुरस्कार
नोबल पुरस्कार मिलने के बाद युनुस की छवि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर और प्रखर हो जाती है। बताया जाता है कि इस दौरान अमेरिका ने बांग्लादेश की दोनों प्रमुख राजनीतिक दलों बीएनपी और आवामी लीग की जगह प्रोफेसर यूनुस को आगे बढ़ाने की नीति पर काम किया। यह वह दौर था जब भारत और अमेरिका के बीच संबंधों में लगातार सुधार हो रहा था।
धुर विरोधी राजनीतिक दल बीएनपी के साथ
दक्षिण एशिया के भविष्य पर दोनों देशों के विदेश मंत्रालयों के बीच विमर्श में भारत ने किसी तीसरी राजनीतिक शक्ति को स्थापित करने की अमेरिकी कोशिशों का विरोध किया। भारत का तर्क था कि इस तरह की रणनीति राजनीतिक अस्थिरता पैदा करेगी और इससे कट्टरपंथी मजूबत होंगे। भारत का यह तर्क अमेरिकियों से ज्यादा यूनुस को चुभी। इस बीच यूनुस का संपर्क लगातार अवामी लीग की धुर विरोधी राजनीतिक दल बीएनपी के साथ बना रहा।

शेख हसीना के साथ यूनुस की तना-तानी
हालांकि, पूर्व पीएम शेख हसीना के साथ यूनुस की पहली सीधी तना-तानी वर्ष 2007-08 में शुरु हुआ। तब सैन्य समर्थित अंतरिम सरकार में प्रोफेसर यूनुस को सलाहकार बनाया गया था। चुनाव की घोषणा के साथ ही यूनुस वर्ष 2007 में नागरिक पार्टी के नाम से अपना राजनीतिक दल बनाते हैं और बीएनपीके साथ मिल कर चुनाव में उतरते हैं। लेकिन चुनाव में आवामी लीग विजयी होती है।
शेख हसीना नही झुकीं
हसीना के साथ यूनुस का सीधा टकराव का दौर शुरू हो जाता है। आवामी लीग सरकार ने बाद में यूनुस को ग्रामीण बैंक के प्रमुख पद से हटा दिया था। पीएम हसीना यूनुस को गरीबों का खून चूसने वाला बताती हैं। इस दौरान फिर अमेरिका की तरफ से यूनुस को बचाने की कोशिश की जाती है। बांग्लादेश की सरकार पर ग्रामीण बैंक को लेकर संबंधित नियम बदलने का दबाव बनाया गया लेकिन शेख हसीना नही झुकीं।

यूनुस की वर्ष 1972 की नाराजगी
जानकार मानते हैं कि यूनुस ने हसीना सरकार के इस रुख को भी भारत से जोड़ा। उनका मानना था कि भारत की शह की वजह से ही प्रधानमंत्री हसीना अमेरिकी मांग को स्वीकार नहीं किया। उसके बाद से वह थोड़े दिन लो प्रोफाइल रहते हैं और परिवार समेत ज्यादातर समय अमेरिका में बिताया। भारत के खिलाफ यूनुस की वर्ष 1972 की नाराजगी वर्ष 2024 में तब परवान चढ़ी जब छात्र आंदोलन की आड़ में ढाका में लोकतांत्रिक तरीके से स्थापित हुई आवामी लीग सरकार की पीएम शेख हसीना को देश छोड़ना पड़ा और उन्होंने भारत में शरण लिया। प्रोफेसर यूनुस अंतरिम सरकार के मुखिया बन गए। उनका भारत विरोधी रुख अब कायम ही नहीं बढ़ता जा रहा है।

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