दरबार में बैठकर टोपी बुनता था औरंगजेब... मुगल वंश के सबसे क्रूर शासक को क्यों पड़ी थी इसकी जरूरत?
मुगल साम्राज्य का छठा शासक औरंगजेब भारतीय इतिहास के सबसे विवादास्पद व्यक्तियों में से एक है। हालाँकि उसके शासन की पहचान सैन्य विस्तार धार्मिक रूढ़िवादिता और व्यापक आक्रोश को जन्म देने वाली नीतियों से थी लेकिन उसके निजी जीवन के कुछ कम ज्ञात पहलू हैं जो उनके चरित्र के बारे में जानकारी देते हैं। ऐसी ही एक दिलचस्प आदत थी उसकी रोज़ाना टोपी बुनने की आदत।

डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। अगर आपने हाल ही में रिलीज हुई फिल्म छावा देखी होगी, तो इसमें औरंगजेब को दरबार में बैठे वक्त हाथ से कुछ बुनते हुए देखा जा सकता है। अगर इतिहास में आपकी रुचि थोड़ी कम हो, तो आपको आश्चर्य भी जरूर हुआ होगा कि इतना बड़ा शासक आखिर सिंहासन पर बैठकर क्या बुनता रहता है।
छावा सहित कई फिल्मों में दिखाई गई औरंगजेब की ये छवि कोई मनगढ़ंत नहीं है। औरंगजेब वाकई अपने दरबार में बैठकर टोपी बुना करता है। इतिहास की कई किताबों में इसका जिक्र भी किया गया है। लेकिन वह ऐसा करता क्यों था, इसकी वजह भी आपको बताते हैं।
बेहद क्रूर शासक था औरंगजेब
पानीपत के मैदान में जब इब्राहिम लोदी को हराकर बाबर ने मुगल साम्राज्य की नींव रखी, तो शायद किसी से सोचा भी नहीं होगा कि इस वंश में औरंगजेब जैसा कोई अत्यधिक क्रूर शासक भी जन्म लेगा। बाबर, हुमायूं, अकबर, जहांगीर और शाहजहां की तरह औरंगजेब को न तो कला और शान-ओ-शौकत का कोई लोभ था और न ही विलासिता का।
अपने भाइयों का कत्ल कर औरंगजेब 1658 में मुगल सिंहासन पर बैठा। उसने अपने शासनकाल में सख्त इस्लामी नीतियों, विस्तारवादी युद्ध और शरिया कानून लागू किया। हिंदुओं पर जजिया कर लगाया, मंदिरों तोड़े और लाखों लोगों का कत्ल-ए-आम किया। यही कारण है कि औरंगजेब के शासनकाल को मुगलिया सल्तनत का सबसे बुरा दौर कहा जाता है।
नमाज की टोपियां बुनता था
- औरंगजेब अपनी निजी जिदंगी में भी पूर्वजों से काफी अलग था। उसने अत्यधिक खर्च को कम करने के लिए दरबार में संगीत और उत्सवों पर प्रतिबंध लगा दिया। वह शारीरिक श्रम के जरिए अपनी आजीविका कमाने पर जोर देता था।
- ऐतिहासिक विवरणों के अनुसार, औरंगजेब ने अपना कुछ समय नमाज की टोपियां (तकियाह) बुनने और हाथ से कुरान लिखने में बिताया। औरंगजेब अपने निजी खर्च के लिए शाही खजाने के इस्तेमाल के सख्त खिलाफ था। इसलिए वह अपनी बुनी हुई टोपियों को बेचता था और इससे मिलने वाले धन का इस्तेमाल निजी खर्च के लिए करता था।
इतिहासकार देते हैं कई तर्क
हालांकि औरंगजेब द्वारा हर रोज टोपी बुनने की आदत को इतिहासकार अलग-अलग तरीके से देखते हैं। कुछ का मानना है कि इस्लामी शिक्षाओं के अनुरूप औरंगजेब सादा जीवन जीने की परंपरा का पालन करता था। वहीं कुछ का तर्क है कि ऐसा करके वह खुद को एक धर्मनिष्ठ और विनम्र शासक के रूप में पेश करना चाहता था।
औरंगजेब में भले ही अपने शासनकाल में क्रूरता का कोई पैमाना शेष न छोड़ा हो, लेकिन उसकी टोपी बुनने की आदत भी उसके चरित्र के साथ ही नत्थी हो गई है। कहते हैं कि अपने अंतिम दिनों में भी, औरंगजेब अपने सिद्धांतों पर चलता रहा। जब 1707 में उसकी मृत्यु हुई, तो उसने अपने वंशजों के लिए कोई भव्य मकबरा या विशाल संपत्ति नहीं छोड़ी। महाराष्ट्र में उसकी बेहद साधारण कब्र है।
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