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दूध कंपनियों के भ्रामक दावों से बच्चों के स्तनपान पर पड़ता है असर, लैंसेट के अध्ययन में किया गया दावा

डब्ल्यूएचओ के अनुसार विश्व स्तर पर लगभग दो में से एक नवजात शिशु को जीवन के पहले घंटे के भीतर स्तनपान कराया जाता है जबकि छह महीने से कम उम्र के आधे से कम शिशुओं को स्तनपान कराया जाता है। (जागरण-फोटो)

By Jagran NewsEdited By: Ashisha Singh RajputPublished: Mon, 13 Feb 2023 08:44 PM (IST)Updated: Mon, 13 Feb 2023 08:44 PM (IST)
अध्ययन में मातृत्व सुरक्षा को मजबूत कर राजनीतिक हस्तक्षेप से निपटने की मांग

नई दिल्ली, पीटीआई। लैंसेट के अध्ययन में दावा किया गया है कि बच्चों के स्तनपान को कमजोर करने के लिए फार्मूला दूध उद्योग शोषणकारी मार्केटिंग रणनीति अपनाता है। लैंसेट में प्रकाशित तीन पेपरों की श्रृंखला में उद्योग के भ्रामक दावों और राजनीतिक हस्तक्षेप से निपटने की मांग की गई है।

वाणिज्यिक दुग्ध उत्पाद बच्चे के रोने को कम करते हैं

लैंसेट श्रृंखला के पहले पेपर के अनुसार, भ्रामक मार्केटिंग दावे सीधे शिशु के सामान्य व्यवहार के बारे में माता-पिता की चिंताओं का फायदा उठाते हैं। ये सुझाव देते हैं कि वाणिज्यिक दूध उत्पाद बच्चे के रोने को कम दूध करते हैं, क्योंकि वे पेट दर्द को कम करने के साथ रात की नींद को लंबा करते हैं। पेपर में कहा गया है कि फार्मूला  उद्योगों की ऐसी पैरवी महिलाओं और बच्चों के स्वास्थ्य और अधिकारों को गंभीर रूप से खतरे में डालता है।

नवजात शिशु को जीवन के पहले घंटे के भीतर कराया जाता है स्तनपान

डब्ल्यूएचओ के वैज्ञानिक व फार्मूला मिल्क मार्केटिंग पर प्रकाशित एक पेपर के लेखक प्रोफेसर निगेल रालिन्स ने कहा कि यह लाखों महिलाओं को अपने बच्चों को स्तनपान कराने से रोकता है। डब्ल्यूएचओ के अनुसार, विश्व स्तर पर लगभग दो में से एक नवजात शिशु को जीवन के पहले घंटे के भीतर स्तनपान कराया जाता है, जबकि छह महीने से कम उम्र के आधे से कम शिशुओं को स्तनपान कराया जाता है।

पेपर नोट के अनुसार, वर्तमान में लगभग 6.5 करोड़ महिलाओं के पास पर्याप्त मातृत्व सुरक्षा का अभाव है। लेखक महिलाओं के मातृत्व सुरक्षा को कानून के अनुसार और मजबूत करने की जरूरत बताते हैं।

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