US के चलते मिडिल ईस्ट पर छाए युद्ध के बादल, शांति को अहम हो सकती है भारत की भूमिका
अमेरिका ने मिडिल ईस्ट में माहौल बेहद तनावपूर्ण कर दिया है। इसने पूरी दुनिया को भी बांटने का काम किया है। ऐसे में इस क्षेत्र में शांति बहाल करने में भारत अहम भूमिका निभा सकता है।
नई दिल्ली [जागरण स्पेशल]। बगदाद में ईरान के दूसरे सबसे बड़े ताकतवर व्यक्ति और कुद्स फोर्स के चीफ मेजर जनरल कासिम सुलेमानी की अमेरिकी हमले में मौत के बाद पूरे मिडिल ईस्ट में तनाव काफी बढ़ गया है। इस हमले के बाद जहां ईरान ने इसका बदला लेने का एलान कर दिया है वहीं अमेरिका में ही ट्रंप के इस फैसले को लेकर दो गुट बनते दिखाई दे रहे हैं। इनमें एक गुट जहां अमेरिकी राष्ट्रपति के हक में है तो दूसरा गुट इसको हत्या करार देते हुए गैर कानूनी बता रहा है। इस गुट का कहना है कि ट्रंप ने इस फैसले से न सिर्फ अमेरिका और अमेरिकियों को बल्कि पूरी दुनिया को खतरे में डाल दिया है। हालांकि इसके बावजूद ज्यादातर देशों ने दोनों ही पक्षों से संयंम बरतने की अपील की है।
साल की शुरुआत में मिडिल ईस्ट में उभरती इस खतरनाक स्थिति ने कई देशों को हैरत में तो डाला ही है साथ ही उनके सामने मुश्किल भी पैदा कर दी हैं। इनमें भारत के अलावा वो तमाम मुल्क हैं जो तेल के लिए मिडिल ईस्ट पर निर्भर हैं। मिडिल ईस्ट के तनाव के बाद लगातार एक सवाल उठ रहा है कि क्या ये हालात खाड़ी युद्ध या विश्व युद्ध की तरफ तो नही बढ़ रहे हैं। ये सवाल इसलिए भी खास है क्योंकि बगदाद में जो कुछ अमेरिका ने किया है इसके बाद पूरी दुनिया दो धड़ों में बंटती दिखाई दे रही है।
खामियाजा होगा उठाना
इस बाबत दैनिक जागरण से बात करते हुए सीरियाई पत्रकार डाक्टर वईल अवाद ने माना कि अमेरिका ने मिडिल ईस्ट में हालात बेहद खराब कर दिए हैं। उनके मुताबिक अपने निजी हितों के लिए वर्षों से अमेरिका इस पूरे क्षेत्र में अस्थिरता फैलाने मे लगा हुआ है। हालिया हमला इसी तरफ उठाया गया एक दूसरा कदम है। अमेरिकी हमले का जवाब देने का एलान ईरान कर चुका है और वो ऐसा करेगा भी। अवाद के मुताबिक इस हमले के बाद दुनिया के कई देशों की सांत्वना पूरी तरह से ईरान के साथ है। ऐसा तब भी था जब अमेरिका ने परमाणु डील को रद किया था। अब जबकि अमेरिकी कार्रवाई से हर तरफ तनाव व्याप्त है ऐसे में रूस और सीरिया के अलावा दूसरे देश भी ईरान के साथ आकर खड़े हैं। अमेरिका ने जो हालात बिगाड़े हैं उसका खामियाजा भी उसको उठाना होगा।
यूएस का तानाशाही रवैया
अवाद के मुताबिक तेल को लेकर अमेरिका इस पूरे क्षेत्र में पहले से ही तानाशाही रवैया अपनाए हुए है। खाड़ी युद्ध के पीछे भी सबसे बड़ी वजह तेल पर कब्जा करने की थी और वहीं अब ईरान से तनाव को बढ़ाने के पीछे भी यही मंशा काम कर रही है। उनका कहा है कि इस समस्या का केवल एक ही हल है कि अमेरिका यहां से अलग चला जाए। यदि ऐसा नहीं होता है तो तनाव बढ़ेगा और यह एक विकराल रूप ले सकता है, जिससे हर देश प्रभावित होगा। यह पूछे जाने पर कि अमेरिका के ही सांसदों ने ट्रंप के खिलाफ इस हमले के बाद मोर्चा खोल दिया है, तो उनका जवाब था कि ईरान को अमेरिकियों से कोई नफरत नहीं है, न ही वो लड़ाई में विश्वास रखते हैं। लेकिन अमेरिका के तानाशाही रवैये के बाद यहां पर फिलहाल माहौल में शांति नामुमकिन है। आपको बता दें डॉक्टर अवाद की पहचान वार कॉरेसपोंडेंस के रूप में है और एशिया के कई देशों में वह अपनी रिपोर्टिंग बेहद मुश्किल भरे माहौल में कर चुके हैं।
बिगड़ सकते हैं हालात
मिडिल ईस्ट के तनाव पर जहां डॉक्टर अवाद मानते हैं कि यह युद्ध का रूप ले सकता है वहीं विदेश मामलों के जानकार और वरिष्ठ पत्रकार कमर आगा ऐसा नहीं मानते हैं। हालांकि वो इतना जरूर मानते हैं कि इस क्षेत्र में हालात तेजी से बिगड़ रहे हैं। ऐसे में विश्व समुदाय को हालात काबू करने के लिए सामने आना चाहिए। अवाद की तरह ही आगा भी मानते हैं कि अमेरिका अपने निजी हितों के लिए पूरे क्षेत्र को युद्ध भूमि बनाने पर तुला है। उनके मुताबिक अमेरिका इस कार्रवाई के बाद काफी हद तक अलग-थलग पड़ गया है और ईरान के समर्थन में कई बड़े देश हैं। वर्तमान में सभी देशों को सबसे बड़ी चिंता तेल की कीमतों को लेकर है। कोई नहीं चाहता है कि ये मामला तूल पकड़े और युद्ध की नौबत आए।
आतंकी नहीं थे सुलेमानी
सुलेमानी की ताकत के बारे में पूछे गए एक सवाल के जवाब में आगा का कहना था कि उनके समर्थन में शिया ही नहीं कई सुन्नी संगठन भी थे। उन्होंने इराक से आईएसआईएस को खदेड़ने में बड़ी अहम भूमिका निभाई थी। इसमें सबसे खास बात ये भी है कि जब सुलेमानी आईएस के खिलाफ लड़ रहे थे उस वक्त अमेरिका उन्हें एयर कवर देती थी। उनके मुताबिक सुलेमानी आतंकी नहीं थे। वहीं उन्हें सबसे बड़ा खतरा आतंकी गुटों से ही था क्योंकि वही उनके सबसे बड़े दुश्मन थे। इसमें अलावा इजरायल भी सुलमानी को खतरा मानता था।
भारत की अहम भूमिका
आगा के मुताबिक यदि युद्ध हुआ तो इसका खामियाजा हर किसी को उठाना होगा। वह ये भी मानते हैं कि भारत इस मौके पर विश्व समुदाय के साथ मिलकर एक बड़ी भूमिका निभा सकता है। ऐसा इसलिए क्योंकि भारत के ताल्लुक अमेरिका, ईरान, सऊदी अरब, यूएई समेत अन्य कई देशों से काफी बेहतर हैं। इस पूरे क्षेत्र में शांति सभी के हित में है।
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