मिडिल क्लास के लिए घर खरीदना क्यों हो रहा मुश्किल? आमदनी बढ़ी लेकिन नहीं बना पा रहे सपनों का आशियाना
भारत में मिडिल क्लास के लिए घर खरीदना मुश्किल होता जा रहा है। सैलरी बढ़ने के बावजूद, वे अपने सपनों का आशियाना बनाने में असमर्थ हैं। बढ़ती प्रॉपर्टी की ...और पढ़ें

मिडिल क्लास को घर खरीदने में क्यों हो रही परेशानी। (फोटो AI से जेनेरेट की गई है।)
डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। भारतीय मिडिल क्लास के लोगों का पहला सपना होता है कि उनका एक घर हो। हालांकि, अधिक महंगाई और बदलती जीवनशैली के कारण कई मिडिल-क्लास भारतीयों के लिए घर खरीदना पहले से कहीं ज्यादा मुश्किल हो गया है।
दरअसल, घर खरीदना इसलिए मुश्किल नहीं है कि वह कम कमाते हैं, बल्कि इसलिए क्योंकि पिछले कुछ दशकों में घर बनाने से जुड़े सामानों की कीमतें सैलरी की बढ़ोतरी से कहीं ज्यादा बढ़ी है।
क्यों घर नहीं खरीद पा रहा मिडिल क्लास?
एनडीटीवी की एक रिपोर्ट में हेज फंड मैनेजर और फाइनेंशियल एजुकेशन प्लेटफॉर्म विजडम हैच के फाउंडर अक्षत श्रीवास्तव के हवाले से बताया गया कि साल 1990 की 3,500 रुपये की मासिक तनख्वाह की तुलना आज की औसत सैलरी 27,000-29,400 रुपये से की जा सकती है।

सामान्य तौर पर देखने में लग रहा है कि यह एक बड़ी ग्रोथ हो सकती है, लेकिन 6 प्रतिशत के हिसाब से सालाना महंगाई दर के हिसाब से एडजस्ट करने पर 1990 के 3,500 रुपये की खरीदने की ताकत आज के 27,000 रुपये के बराबर है।
तनख्वाह बढ़ने के बाद भी घर नहीं खरीद पा रहा मिडिल क्लास
जानकार तर्क देते हैं कि समस्या की सबसे बड़ी जड़ यही है। अमूमन देखा जाए तो लोगों की तनख्वाह आम तौर पर महंगाई के साथ बढ़ी हैं, लेकिन रियल एस्टेट के सामानों की कीमतों की रफ्तार से मेल नहीं खातीं।
जानकार मानते हैं कि नौकरी करने वालों की तनख्वाह भारत में काफी धीरे-धीरे बढ़ रही है। वहीं, एसेट की कीमतें काफी तेजी से बढ़ रही हैं, जिसमें घर, जमीन, सोना, स्टॉक शामिल हैं। इस ट्रेंड को एसेट प्राइस एप्रिसिएशन के तौर पर जाना जाता है। यही मिडिल क्लास की पारंपरिक आर्थिक लक्ष्यों, विशेषकर घर खरीदने की क्षमता को कम कर रहा है।

क्या कहते हैं आंकड़े
- पिछले कुछ दशकों के आकंड़ों पर नजर डालें, तो वह भी इस प्रक्रिया की पुष्टि करते हैं। नो ब्रोकर और पीडब्ल्यूसी के अनुसार, भारत के टॉप मेट्रो शहरों के कुछ हिस्सों में घरों की कीमतें 2000 से 2020 के बीच सालाना 10-11% बढ़ी हैं।
- राष्ट्रीय स्तर पर घरों की औसत कीमत में बढ़ोतरी सालाना लगभग 6% रही है। आंकड़ों से पता चलता है कि जिस हिसाब से एसेट की कीमतें बढ़ी हैं, उस हिसाब से इनकम में बढ़ोतरी देखने को नहीं मिली है।
- आंकड़ों पर नजर डालें तो भारत की नॉमिनल प्रति व्यक्ति जीडीपी साल 2013 में करीब 1,450 डॉलर थी, जो 2023 में बढ़कर 2,256 डॉलर हो गई। अगर इस आंकड़े को प्रतिवर्ष के लिहाज से देखें, तो करीब सालाना 4-5% की ग्रोथ रेट दिखती है।
- रुपये के हिसाब से आय बढ़ोतरी थोड़ी अधिक है, फिर भी यह कई टियर-1 शहरों में देखी गई दोहरे अंकों की संपत्ति मूल्य मुद्रास्फीति से कम है।
क्या है इस समस्या की जड़?
जानकार बताते हैं कि इस समस्या का एक हिस्सा साल 2008 के बाद ग्लोबल फाइनेंस में हुए बदलावों से भी जुड़ा हुआ है। चूंकि कर्ज लेना आसान हो गया है और कंज्यूमर लोन में तेजी आई। कहा जा रहा है कि कर्ज को बढ़ावा दिया जा रहा है।

आम तौर पर माना जाता है कि जब लोग अधिक कर्ज लेते हैं और किसी एसेट में ज्यादा ट्रेड करते हैं, तो कीमतें बढ़ जाती हैं। जैसे-जैसे ज्यादा खरीदार उधार के पैसे लेकर मार्केट में आते हैं, कीमतें और बढ़ जाती हैं, जिससे घर खरीदना मुश्किल होता जा रहा है।
किन जगहों पर दिख रहा ऐसा ट्रेंड?
उल्लेखनीय है कि यह ट्रेंड पूरे भारत में या समय के साथ एक जैसा नहीं है, लेकिन अधिकांश शहरी केंद्रों, खासकर मेट्रो शहरों में लोगों की कमाई और घरों की कीमतों के बीच अंतर लगातार बढ़ रहा है, जिससे मिडिल क्लास के लिए आर्थिक स्थिरता का मतलब बदल गया है।

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