पीएम मोदी की कारगर पहल: माइक्रो इरिगेशन से खेती की घटेगी लागत और बढ़ेगी फसलों की पैदावार
असम पंजाब हरियाणा मध्य प्रदेश केरल और पश्चिम बंगाल में नहरों से सिंचाई औसत से अधिक होती है। गुजरात उत्तर प्रदेश और राजस्थान में नलकूपों का प्रयोग ज्यादा होता है। दक्षिण के राज्यों आंध्र प्रदेश तमिलनाडु कर्नाटक और ओडिशा में तालाब के पानी का उपयोग किया जाता है।

सुरेंद्र प्रसाद सिंह, नई दिल्ली। खेती की लागत को कम करने और फसलों की उत्पादकता बढ़ाने की दिशा में कई कारगर पहल की गई है, जिनमें सिंचाई के आधुनिक संसाधनों का प्रयोग सबसे प्रमुख है। इसी क्रम में माइक्रो इरिगेशन (सूक्ष्म सिंचाई) पर विशेष बल देते हुए बजट आवंटन दोगुना कर दिया गया है। अगले पांच साल में सूक्ष्म सिंचाई का रकबा एक करोड़ हेक्टेयर बढ़ाने का लक्ष्य है। 'पर ड्रॉप, मोर क्रॉप' के लक्ष्य के साथ हर खेत तक पानी पहुंचाने की योजना परवान चढ़ने लगी है, जिससे फसलों की उत्पादकता बढ़ाने में मदद मिल रही है। सिंचाई की इस टेक्नोलॉजी से जल संरक्षण के साथ खेती की तस्वीर बदल सकती है। देश में फिलहाल 1.23 करोड़ हेक्टेयर खेती वाली जमीन में माइक्रो इरिगेशन प्रणाली का उपयोग होने लगा है।
सूक्ष्म सिंचाई योजना के लिए आम बजट में आवंटन बढ़ाकर दोगुना कर दिया
आगामी वित्त वर्ष 2021-22 के आम बजट में सूक्ष्म सिंचाई योजना के लिए सरकार ने आवंटन बढ़ाकर दोगुना कर दिया है। 10 हजार करोड़ रुपये के आवंटन में नाबार्ड की हिस्सेदारी 50 फीसद रहेगी। आगामी वित्त वर्ष में कुल 20 लाख हेक्टेयर भूमि में सूक्ष्म सिंचाई के साधन मुहैया कराने का लक्ष्य है। इसके लिए किसानों को कुल लागत का 50 फीसद हिस्सा देना होगा। तमिलनाडु, कर्नाटक, महाराष्ट्र और गुजरात जैसे राज्यों में इसका प्रसार और तेजी से होगा, जहां यह प्रणाली पहले से ही बहुत लोकप्रिय है। उत्तर प्रदेश, बिहार और झारखंड जैसे राज्यों में भी इस योजना को बढ़ाने में मदद मिलेगी।
खेत में पानी भर देने से पानी ज्यादा लगता है और खाद भी नीचे चली जाती है
देश के विभिन्न हिस्सों में सूखा और पानी की किल्लत बनी रहने से खेती बुरी तरह प्रभावित होती है। ऐसे क्षेत्रों के लिए यह प्रणाली काफी मुफीद साबित होगी। खेत में पानी भर देने (फ्लड इरिगेशन) वाली प्रणाली से पानी ज्यादा लगता है और मिट्टी में डाली गई खाद भी नीचे चली जाती है।
प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना: माइक्रो इरिगेशन की सुविधा पहुंचाने में सफलता मिली
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 2015 में 'पर ड्रॉप मोर क्रॉप' का नारा देते हुए प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना का शुभारंभ किया था। सरकारी आंकड़ों के मुताबिक 2019-20 में 20 लाख हेक्टेयर के लक्ष्य में से 11.72 लाख हेक्टेयर भूमि में माइक्रो इरिगेशन की सुविधा पहुंचाने में सफलता मिली थी।
फायदों की भरमार
माइक्रो इरिगेशन टेक्नोलॉजी के उपयोग से जहां 48 फीसद तक पानी की बचत होगी, वहीं ऊर्जा की खपत में भी कमी आएगी। इस प्रणाली का ढांचा एक बार तैयार हो गया तो इसमें मजदूरी 40 फीसद तक घट जाएगी। पानी के साथ फर्टिलाइजर का घोल मिला देने से 20 फीसद तक की बचत होगी। खेती की लागत में आने वाली इस कमी के साथ-साथ उत्पादन में 40 फीसद तक की वृद्धि हो सकती है।
ऐसे हैं सिंचाई के हालात
देश में कुल 15.60 करोड़ हेक्टेयर खेती वाली भूमि में से लगभग 50 फीसद में सिंचाई की कोई विधिवत व्यवस्था नहीं है। सिंचाई के साधनों में सर्वाधिक 40 फीसद ¨सचाई नहरों से होती है, जबकि 38 फीसद नलकूप, 15 फीसद तालाब और बाकी अन्य साधनों से की जाती है। ¨सचाई के लिए कुल उपलब्ध पानी का 60 फीसद गन्ना व धान की खेती में जाता है। इन फसलों की खेती को भी सूक्ष्म ¨सचाई योजना से जोड़ने के लिए कई तरह के प्रोत्साहन दिए जाएंगे।
माइक्रो इरिगेशन प्रणाली
माइक्रो इरिगेशन प्रणाली में ड्रिप इरिगेशन (बूंद-बूंद सिंचाई), माइक्रो स्प्रिंकल (सूक्ष्म फव्वारा), लोकलाइज इरिगेशन (पौधे की जड़ को पानी देना) आदि जैसे तरीके आते हैं
राज्यों में सिंचाई की स्थिति
असम, पंजाब, हरियाणा, मध्य प्रदेश, केरल और पश्चिम बंगाल में नहरों से सिंचाई औसत से अधिक होती है। गुजरात, उत्तर प्रदेश और राजस्थान में नलकूपों का प्रयोग ज्यादा होता है। दक्षिण के राज्यों आंध्र प्रदेश, तमिलनाडु, कर्नाटक और ओडिशा में तालाब के पानी का उपयोग किया जाता है।
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