बदलेगा GDP और IIP को मापने का तरीका, आधार वर्ष 2011-12 से बदलकर 2022-23 करने की तैयारी
नए साल में जीडीपी, आइआइपी और खुदरा महंगाई दर का आधार वर्ष बदलने जा रहा है। जीडीपी और आइआइपी का आधार वर्ष 2011-12 से बदलकर 2022-23 किया जा रहा है, जबकि ...और पढ़ें
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सीपीआइ की नई बास्केट में मोबाइल फोन को किया जा सकता है शामिल (फाइल फोटो)
राजीव कुमार, नई दिल्ली। नए साल में सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी), आइआइपी (औद्योगिक उत्पादन सूचकांक) से लेकर खुदरा महंगाई दर का आधार वर्ष बदलने जा रहा है। चालू वित्त वर्ष 2025-26 की तीसरी तिमाही (अक्टूबर-दिसंबर) के जीडीपी का आंकड़ा आगामी 27 फरवरी को जारी होगा, जो नए आधार वर्ष पर आधारित होगा।
अभी जीडीपी और आइआइपी के आंकड़ों का आधार वर्ष 2011-12 है, जिसे बदलकर 2022-23 किया जा रहा है। दूसरी तरफ खुदरा महंगाई सूचकांक या दर (सीपीआइ) जिसका आधार वर्ष अभी 2012 है, उसे बदलकर 2024 किया जा रहा है। सीपीआइ को काफी महत्वपूर्ण इसलिए भी माना जाता है, क्योंकि आरबीआइ के रेपो रेट के बदलाव में इसकी महत्वपूर्ण भूमिका होती है। खुदरा महंगाई दर को नियंत्रित करने की जिम्मेदारी आरबीआइ की है।
पिछले 10 सालों में खपत के पैटर्न से लेकर उत्पादन और सेवा सृजन के तरीके में बड़े बदलाव को देखते हुए सरकार जीडीपी, आइआइपी व सीपीआइ के आधार वर्ष में बदलाव कर रही है। सरकारी आंकड़ों के मुताबिक पिछले कुछ सालों से लोगों की खपत के पैटर्न में बदलाव हुआ है। अनाज की खरीदारी कम हुई है तो प्रोसेस्ड फूड, फल और सब्जी की खरीदारी बढ़ी है।
मोबाइल फोन जीवन का अहम हिस्सा बन गया है। इसलिए सीपीआइ के नए बास्केट में मोबाइल फोन को शामिल किया जा सकता है। अभी सीपीआइ बास्केट में 299 उत्पाद शामिल हैं जिसे बढ़ाकर 350 से अधिक किया जा सकता है। सीपीआइ के मापने में अनाज का वेटेज कम किया जा सकता है। अभी सीपीआइ को मापने में अनाज और संबंधित उत्पाद का वेटेज 12.35 प्रतिशत है। सीपीआइ में अभी 47 प्रतिशत वेटेज खाद्य वस्तुओं का है। इसे भी कम किया जा सकता है।
जीडीपी मापने के लिए जीएसटी नेटवर्क का भी किया जाएगा इस्तेमाल
जीडीपी से लेकर सीपीआइ के मापने के लिए एकत्र किए जाने वाले डाटा में नए माध्यम को शामिल किया जा रहा है। सीपीआइ के लिए अब ई-कामर्स के मूल्य को भी शामिल किया जाएगा, क्योंकि पिछले दस सालों में ई-कामर्स पर होने वाली खरीदारी में लगातार बढ़ोतरी हो रही है।
वैसे ही जीडीपी को मापने के लिए जीएसटी नेटवर्क, नेशनल पेमेंट कारपोरेशन आफ इंडिया (एनपीसीआइ) तो सार्वजनिक वित्तीय प्रबंधन प्रणाली (पीएफएमएस) जैसे माध्यम का इस्तेमाल किया जाएगा। जीएसटी डाटा से मैन्यूफैक्च¨रग व सेवा सेक्टर से जुड़ी विभिन्न प्रकार की औद्योगिक गतिविधियों और उनकी सटीक जानकारी मिलेगी। एनपीसीआइ से डिजिटल भुगतान का सटीक आंकड़ा मिलेगा जिससे छोटे-छोटे वित्तीय खर्च को भी जीडीपी में शामिल किया जा सकेगा।
जीएसटी फाइलिंग जीडीपी डाटा के लिए बड़ा माध्यम बनेगा
जीडीपी को मापने में आइटी और डिजिटल कामर्स का वेटेज या भार बढ़ाया जाएगा तो कुछ पारंपरिक सेक्टर के वेटेज को कम किया जाएगा। जीएसटी फाइलिंग जीडीपी डाटा के लिए बड़ा माध्यम बनेगा। वहीं एक आदमी वाली कंपनी के डाटा को भी जीडीपी में शामिल किया जाएगा।
जोमैटो, स्विगी से जुड़े गिग वर्कर्स के उत्पादन डाटा अभी जीडीपी में शामिल नहीं होते हैं। नए डाटा में इन जैसे गिग वर्कर्स के उत्पादन को भी जीडीपी में शामिल किया जाएगा। इससे पहले वर्ष 2015 में जीडीपी के आधार वर्ष में बदलाव किया गया था।

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