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    अध्ययन: लंबे समय तक गोद में लैपटॉप और जेब में मोबाइल रखना खतरनाक, पुरुषों में नपुंसकता का खतरा

    Updated: Thu, 07 Aug 2025 07:07 AM (IST)

    कलकत्ता विश्वविद्यालय (सीयू) के प्राणि विज्ञान विभाग की आनुवंशिकी अनुसंधान इकाई और कोलकाता स्थित प्रजनन चिकित्सा संस्थान (आइआरएम) द्वारा किए गए एक संयुक्त अध्ययन में दावा किया गया है कि पैंट की जेब में लंबे समय तक मोबाइल रखने और लैपटाप को गोद में रखकर काम करने से पुरुष की प्रजनन क्षमता पर नकारात्मक असर होता है और यहां तक उनके नपुंसक होने का खतरा भी बढ़ जाता है।

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    लंबे समय तक गोद में लैपटॉप और जेब में मोबाइल रखने से पुरुषों में नपुंसकता का खतरा (सांकेतिक तस्वीर)

     राज्य ब्यूरो, जागरण, कोलकाता। कलकत्ता विश्वविद्यालय (सीयू) के प्राणि विज्ञान विभाग की आनुवंशिकी अनुसंधान इकाई और कोलकाता स्थित प्रजनन चिकित्सा संस्थान (आइआरएम) द्वारा किए गए एक संयुक्त अध्ययन में दावा किया गया है कि पैंट की जेब में लंबे समय तक मोबाइल रखने और लैपटाप को गोद में रखकर काम करने से पुरुष की प्रजनन क्षमता पर नकारात्मक असर होता है और यहां तक उनके नपुंसक होने का खतरा भी बढ़ जाता है।

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    अंडकोषों के भीतर नाजुक ऊतकों को पहुंचता है नुकसान

    अध्ययन में पाया गया कि लैपटाप को गोद में रखने या मोबाइल को पैंट की जेब में रखने से उच्च-तीव्रता वाला विद्युत चुम्बकीय क्षेत्र बनता है। ऐसे क्षेत्रों में अंडकोषों के लंबे समय तक संपर्क में रहने से और उससे जुड़ी गर्मी से अंडकोषों के भीतर नाजुक ऊतकों को काफी नुकसान पहुंचता है, जिससे शुक्राणु-उत्पादक कोशिकाएं क्षतिग्रस्त हो जाती हैं।

    शुक्राणु-उत्पादक कोशिकाएं हो जाती हैं क्षतिग्रस्त

    यह क्षति विशिष्ट जीन उत्परिवर्तन वाले व्यक्तियों में अधिक गंभीर प्रतीत होती है और विशेष रूप से युवा पुरुषों के लिए चिंताजनक है, जो ऐसे इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों का सबसे अधिक उपयोग करते हैं। जिन पुरुषों के नमूनों का विश्लेषण किया गया, वे 20-40 वर्ष की आयु के थे।

    लोगों को एक स्वस्थ जीवन शैली अपनानी चाहिए

    अध्ययन टीम ने उनकी जीवनशैली, आहार, कार्यस्थल के जोखिम और किसी भी नशे की लत का अध्ययन किया। प्रो. घोष ने कहा कि हमें इलेक्ट्रानिक उपकरणों का विवेकपूर्ण उपयोग करना चाहिए और एक स्वस्थ जीवन शैली अपनानी चाहिए।

    इस अध्ययन की शुरुआत 2019 में प्रोफेसर सुजय घोष (कलकत्ता विश्वविद्यालय) के नेतृत्व में हुई थी और पांच साल तक हुए अध्ययन में डॉ रत्ना चट्टोपाध्याय (आइआरएम), डा समुद्र पाल (कलकत्ता विश्वविद्यालय), डॉ पर्णब पलाधी (आइआरएम) और डॉ सौरव दत्ता (कलकत्ता विश्वविद्यालय) ने सहयोग किया।

    पुरुष बांझपन के इलाज के लिए हुई बैठक

    अनुसंधान पत्र के मुताबिक पुरुष बांझपन के इलाज के लिए आइआरएम आने वाले लोगों को अध्ययन में हिस्सा लेने के लिए आमंत्रित किया गया था।

    अध्ययन में विशेष रूप से अज्ञात कारणों से होने वाले पुरुष बांझपन के मामलों पर ध्यान केंद्रित किया गया, विशेष रूप से एजोस्पर्मिया (वीर्य में शुक्राणुओं की अनुपस्थिति) या ओलिगोजोस्पर्मिया (शुक्राणुओं की कम संख्या) वाले मामलों पर।

    1,200 मरीजों को अध्ययन में शामिल किया गया

    अध्ययन का नेतृत्व करने वाले डॉ. घोष ने बताया कि अध्ययन में उन मरीजों को भी शामिल नहीं किया गया जिनमें आनुवंशिक निदान परीक्षणों से ज्ञात संक्रामक रोगों की जानकारी मिली। उन्होंने बताया कि उपरोक्त मरीजों से इतर कुल करीब 1,200 मरीजों को अध्ययन में शामिल किया गया।