अमित शाह ने दी थी 30 नवंबर की डेडलाइन... 12 दिन पहले ही सुरक्षा बलों ने मारा गिराया माओवादी हिड़मा
केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह द्वारा तय की गई समय सीमा से 12 दिन पहले ही सुरक्षा बलों ने मोस्ट वांटेड माओवादी हिड़मा को मार गिराया। अमित शाह ने माओवादी हिंसा को खत्म करने के लिए 31 मार्च 2026 तक का लक्ष्य रखा है। सुरक्षा एजेंसियों के अनुसार, हिड़मा छत्तीसगढ़ में माओवाद का सबसे बड़ा चेहरा था। अमित शाह ने माओवादियों से समर्पण करने की अपील की थी।

तय समय से पहले ही मार गिराया हिड़मा। (फाइल फोटो)
जागरण ब्यूरो, नई दिल्ली। केंद्रीय गृह व सहकारिता मंत्री अमित शाह द्वारा दी गई समय सीमा से 12 दिन पहले ही सुरक्षा बलों ने मोस्ट वांटेड माओवादी हिड़मा को मार गिराया। माओवादी प्रभावित इलाकों के सुरक्षा के हालात की समीक्षा के दौरान शाह ने हिड़मा का पता लगाकर एनकाउंटर करने के लिए 30 नवंबर की डेडलाइन तय कर दी थी। लेकिन सुरक्षा बलों ने इससे 12 दिन पहले ही यह कर दिखाया।
अमित शाह ने 31 मार्च 2026 तक माओवादी हिंसा के मुक्त करने का ऐलान किया है। लेकिन हिड़मा के मारे जाने के बाद उससे पहले यह लक्ष्य हासिल कर लिया जाएगा। सूत्रों के अनुसार बैठक के दौरान सुरक्षा एजेंसियों ने छत्तीसगढ़ के लिए हिड़मा को माओवाद का सबसे बड़ा चेहरा बताया था।
माओवादियों के सामने समर्पण के अलावा नहीं कोई चारा
एजेंसियों का कहना था कि हिड़मा के मारे जाने के बाद बचे-खुचे माओवादियों के सामने समर्पण करने के अलावा कोई चारा नहीं रहेगा। माओवादी संगठन में छत्तीसगढ़ मूल का सबसे बड़ा चेहरा होने और लंबे समय तक उसका प्रमुख रहने के कारण स्थानीय माओवादियो कैडर का हिड़मा से स्वाभाविक जुड़ाव है। हिड़मा के मारे जाने के बाद नेतृत्व के अभाव में स्थानीय माओवादियों के पास समर्पण के अलावा कोई चारा नहीं रहेगा।
अमित शाह ने क्या कहा था?
सुरक्षा एजेंसियों की ओर से दिये गए प्रजेंनटेशन देखने के बाद अमित शाह ने कहा कि माओवाद को खत्म करने की तय समय सीमा बढ़ाई नहीं जा सकती है। इसके पहले उसके सभी कमांडरों को समर्पण या फिर मार गिराना होगा। इसी सिलसिले में उन्होंने हिड़मा को खत्म करने के लिए 30 नवंबर की डेडलाइन तय कर दी थी और इसके लिए एजेंसियों को पूरी ताकत झोंकने का निर्देश दिया था।
ध्यान देने की बात है कि अमित शाह ने सभी माओवादियों से समर्पण की सार्वजनिक अपील करते हुए साफ कर दिया था कि ऐसा नहीं करने की स्थिति में सुरक्षा बलों के हाथों उन्हें मरना होगा।
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