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    नक्सली माडवी हिड़मा के खात्मे से पंगु हो जाएगी हमलावर यूनिट बटालियन नंबर 1, क्या हैं इसके मायने?

    Updated: Tue, 18 Nov 2025 08:46 PM (IST)

    सुरक्षाबलों ने माओवादी कमांडर माडवी हिड़मा को मार गिराया, जो नक्सलियों के लिए एक बड़ा झटका है। हिड़मा, जो सीपीआई (माओवादी) की सेंट्रल कमेटी का सदस्य था, बस्तर क्षेत्र से था और नक्सलियों की सैन्य रणनीति में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता था। उसकी मौत से बटालियन नंबर 1 कमजोर होगी और नक्सल विरोधी अभियानों को बढ़ावा मिलेगा, जिससे नक्सलियों के आत्मसमर्पण की संभावना बढ़ेगी।

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    मारा गया एक करोड़ के इनाम वाला हिडमा। (फाइल फोटो)

    डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। इसी साल मई महीने में सीपीआई-माओवादी के महासचिव बसवराजू को सुरक्षाबलों ने एक मुठभेड़ में मार गिराया था। बसवराजू को नक्सल आंदोलन की रीढ़ माना जाता था। उसके एनकाउंटर का ऐलान खुद केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने किया लेकिन तब भी ये सवाल पूछा गया था कि ये तो ठीक है लेकिन माडवी हिड़मा कब मारा जाएगा या वो सरेंडर कब करेगा।

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    जाहिर है इससे नक्सल आंदोलन में हिड़मा की अहमियत का पता चलता है। मतलब समझ सकते हैं। मार्च 2026 तक नक्सलियों के खात्मे के लक्ष्य की राह में सबसे बड़ा रोड़ा था माडवी हिड़मा। अब वह मारा जा चुका है। आइये जानते हैं उसके न होने के मायने?

    लाल आतंक के खात्मे की दिशा में निर्णायक मोड़

    मंगलवार यानि 18 नवंबर को देश के सबसे खतरनाक, 1 करोड़ रुपये के इनामी नक्सली कमांडर माडवी हिड़मा को सुरक्षाबलों ने एक संयुक्त आपरेशन में ढेर कर दिया। आंध्र प्रदेश, छत्तीसगढ़ और तेलंगाना के ट्राय-जंक्शन के पास मारेदुमिल्ली के घने जंगलों में हुई इस मुठभेड़ में हिड़मा के साथ उसकी पत्नी राजे (राजक्का) समेत छह अन्य नक्सली भी मारे गए हैं। हिड़मा का मारा जाना 'लाल आतंक' के खात्मे की दिशा में एक अत्यंत निर्णायक मोड़ माना जा रहा है।

    इसलिए खास था माडवी हिड़मा

    हिड़मा (असली नाम: संतोष) मात्र 43 वर्ष की उम्र में सीपीआई (माओवादी) की सेंट्रल कमेटी का सबसे युवा सदस्य बन गया था और बस्तर क्षेत्र से सेंट्रल कमेटी में शामिल होने वाला इकलौता आदिवासी था। बसवराजू के जिंदा रहते नक्सलियों की सबसे खतरनाक और घातक विंग, पीपल्स लिबरेशन गुरिल्ला आर्मी (पीएलजीए) की बटालियन नंबर वन की कमान हिड़मा के ही हाथ में थी।

    हमलावर यूनिट है बटालियन नंबर 1

    दरअसल बटालियन नंबर वन का गठन साल 2004-05 में सलवा जुड़ुम अभियान के आसपास हुआ था। सलवा जुडुम के समय बस्तर के आदिवासी दो हिस्सों में बंट गए थे। एक हिस्सा सरकार के अभियान में शामिल हो गया था जबकि दूसरा हिस्सा नक्सलियों के साथ जुड़ गया था। बाद में बटालियन नंबर 1 ही माओवादियों की हमलावर यूनिट बन गई।

    बटालियन के लड़ाकों को जंगलों की जानकारी के साथ ही इस तरह से प्रशिक्षित किया जाता है कि वो जंगलों में सुरक्षाबलों के चार जवानों पर भारी पड़ सकें। इसी विंग के पास लूटे गए सारे हथियार और कारतूस रखे जाते थे। इसी वजह से नक्सलियों के हर बड़े हमले के पीछे बटालियन नंबर वन का हाथ होता था।

    हिड़मा इसी का मुख्य कमांडर था। हर वक्त उसके साथ करीब 200 से अधिक लड़ाके मौजूद रहते थे। इसी ताकत के बल पर हिड़मा ने कई बड़े हमलों को अंजाम दिया।

    कमजोर हो जाएगी बटालियन नंबर 1

    बसवराजू और अब हिड़मा, दोनों नक्सलियों की सैन्य और वैचारिक रीढ़ माने जाते थे। हिड़मा का मारा जाना बटालियन नंबर वन के सैन्य नेतृत्व को पंगु बना देगा। अब बटालियन का महत्वपूर्ण नेतृत्व खत्म हो गया है और संगठन में देवजी और पतिराम जैसे नेताओं को कमान संभालने के लिए आगे आना होगा, जिनकी क्षमता हिड़मा जैसी नहीं मानी जाती है। ये माओवादियों के मनोबल पर भी गंभीर चोट है।

    हिड़मा बस्तर का आदिवासी चेहरा था, जो स्थानीय लड़ाकों को संगठन से जोड़े रखने में अहम भूमिका निभाता था। उसके मारे जाने से नक्सलियों में यह संदेश जाएगा कि जब सबसे खूंखार और मोस्ट वांटेड कमांडर हिड़मा मारा जा सकता है, तो फिर कोई भी सुरक्षित नहीं है।

    उसकी मौत से नक्सल-विरोधी अभियानों में और तेजी आएगी और सुरक्षाबल बस्तर के दूरदराज के इलाकों में अपनी पकड़ मजबूत कर पाएंगे। इससे नक्सलियों के आत्मसमर्पण की दर में तेजी आ सकती है।

    (स्त्रोत: जागरण रिसर्च)

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