बौखालाया ड्रैगन! हांगकांग, कोविड-19 और SCS पर चीन के खिलाफ मैदान में उतरे ये देश
दक्षिण चीन सागर कोविड-19 और हांगकांग का इश्यू चीन के लिए गले की फांस बन गया है। इन मुद्दों पर कई देश चीन के खिलाफ हैं।
नई दिल्ली (ऑनलाइन डेस्क)। चीन के लिए हांगकांग, कोविड-19 और दक्षिण चीन सागर ऐसे मुद्दे बनते जा रहे हैं जो उसकी परेशानी का सबसे बड़ा कारण बने हुए हैं। हालांकि वो इन्हें छोड़ भी नहीं सकता है और इनकी वजह से परेशान होने से रह भी नहीं सकता है। आलम ये है कि इन मुद्दों की वजह से आज दुनिया के कई बड़े देश उसकेाखिलाफ हो चुके हैं। आज हम आपको इन्ही मुद्दों पर उसके खिलाफ मोर्चा खोलने वाले देशों के बारे में बताएंगे।
दक्षिण चीन सागर
इस मुद्दे पर काफी समय से चीन का टकराव एक नहीं बल्कि कई देशों से है। दक्षिण चीन सागर दुनिया के सबसे व्यस्त जलमार्गों में से एक है। इतना ही दुनिया में समुद्री मार्ग से होने वाला व्यापार सबसे अधिक इसी मार्ग से होता है। चीन जहां इसको अपना बताया है वहीं अमेरिका, ब्रिटेन, भारत, आस्ट्रेलिया समेत अनेक देश इसको दूसरे जलमार्गों की ही तरह सामूहिक मानते हैं। सभी देश इस पर चीन के दावे को खारिज करते आए हैं। इसके बाद भी चीन हमेशा से ही इसको लेकर आक्रामक रुख अपनाता रहा है। दक्षिण चीन सागर में स्थित विभिन्न देशों के बीच इस क्षेत्र में अपना वर्चस्व स्थापित करने को लेकर तनाव व्याप्त है। इसकी एक वजह यहां पर प्राकृतिक गैस का अपार भंडार भी है।
दक्षिण चीन सागर पर चीन, फिलीपींस, वियतनाम, मलेशिया, ताईवान और ब्रुनेई भी अपना-अपना अधिकार जताते रहे हैं। इस मुद्दे पर चीन और अमेरिका कई बार टकराव तक पहुंच चुके हैं। इतना ही नहीं यहां पर तैनात चीनी नौसेना के जहाज और लड़ाकू विमान यहां पर आने वाली अन्य देशों की नौकाओं या लड़ाकू विमानों पर लगातार धमकी भी देते रहते हैं। यहां से गुजरने वाले आस्ट्रलियाई पायलटों के साथ इस तरह की घटना सामने आ चुकी है जिसमें उनके विमान पर लेजर से हमला किया गया था। हालही में अमेरिका और ब्रिटेन ने अपने जंगी जहाजी बेड़ों को यहां पर तैनात करने का एलान किया है। ब्रिटेन का एचएमएस एलिजाबेथ यहां पर जापान की नेवी के साथ तैनात होगा। ब्रिटेन के इस नौसना के बेड़े में करीब डेढ़ दर्जन से अधिक जहाज शामिल हैं। हाल ही में भारत-अमेरिका और आस्ट्रेलिया ने हिंद महासागर में सैन्य अभ्यास कर चीन को संकेत भी दिया है।
हांगकांग का मुद्दा
हांगकांग के मुद्दे पर दुनिया के कई बड़े देश चीन के खिलाफ मुखर हो चुके हैं। आस्ट्रेलिया और ब्रिटेन खुलेतौर पर हांगकांग के नागरिकों को अपने यहां की नागरिकता देने की बात कर चुके हैं। इसकी वह चीन बुरी तरह से झल्लाया और बौखलाया हुआ है। वहीं अमेरिका भी इस मुद्दे पर भी चीन से काफी नाराज है। उसने हांगकांग को दिया गया स्पेशल स्टेटस का दर्जा भी वापस ले लिया है। हांगकांग के मुद्दे पर अमेरिका ने चीन पर कई तरह के प्रतिबंध लगाए हैं। इन के शिकार चीन की सत्ताधारी कम्यूनिस्ट पार्टी से जुड़े कुछ बड़े नेता हुए हैं। हालांकि चीन ने भी इसके जवाब में अमेरिकी सिनेटरों पर प्रतिबंध लगाया है। इसके अलावा अमेरिका ने चीन की कंपनी हुआवेई और उसके कुछ कर्मचारियों पर भी प्रतिबंध लगा दिया है।
ब्रिटेन इस तरह की कार्रवाई पहले ही कर चुका है। जब से चीन ने हांगकांग में अपना राष्ट्रीय सुरक्षा कानून लागू किया है तब से कई देश उसके खिलाफ हो गए हैं। इन देशों का कहना है कि चीन इस तरह की कार्रवाई से वहां रहने वालों की आजादी को छीन रहा है और लोगों पर जुल्म ढहा रहा है। वहीं चीन का कहना है कि हांगकांग पूरी तरह से उसका आंतरिक मुद्दा है लिहाजा इस मसले पर उसका बोलना जायज नहीं है। इस मुद्दे पर कनाडा समेत ताइवान, भारत और कुछ यूरोपीय देश भी चीन के खिलाफ हैं। ताइवान ने भी हांगकांग के नागरिकों की मदद करने का वादा किया है जिसकी वजह से भी चीन बौखलाया हुआ है। वहीं अमेरिका से होने वाले सैन्य करार से भी चीन ताइवान से चिढ़ा हुआ है।
कोविड-19
दिसंबर 2019 से शुरू होकर मार्च तक इस महामारी ने आधी दुनिया को अपनी चपेट में ले लिया था। इस मुद्दे पर चीन के खिलाफ एक या दो नहीं बल्कि साठ से अधिक देश हैं। इन देशों के एक मसौदे पर हस्ताक्षर करने के बाद ही विश्व स्वास्थ्य संगठन कोरोना वायरस के स्रोत का पता लगाने के लिए राजी हुआ और अपने विशेषज्ञों की टीम को चीन भेजा। इस मुद्दे पर विश्व स्वास्थय संगठन को अमेरिका के कोप का भी भागीदार बनना पड़ा। अमेरिका ने आरोप लगाया कि ये वैश्विक संस्था चीन के सुर में सुर मिला रही है। अमेरिका का आरोप है कि चीन ने इससे जुड़ी कई सारी जानकारियों को छिपाया और डब्ल्यूएचओ भी उसके बहकावे में आता रहा। इतना ही नही अमेरिका ने काफी समय पहले चीन पर खुला आरोप लगाया था कि ये वायरस चीन की लैब में तैयार किया गया था। अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने खुद एक प्रेस कांफ्रेंस में इसको चीनी वायरस का नाम दिया था। वहीं चीन ने भी ऐसा ही आरोप अमेरिका के ऊपर मढ़ दिया था। बहरहाल, इस मुद्दे पर लगातार चीन कई देशों के निशाने पर है।
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