कोविड-19 ने दुनियाभर के लोगों को समझा दिया है नमस्कार करने का महत्व, पूरी दुनिया कायल
कोरोना वायरस की वजह से पूरी दुनिया नमस्ते का महत्व समझ चुकी है। भारत में ये परंपरा सदियों पुरानी है।
नई दिल्ली (रेणु जैन)। मेल-मुलाकात और सम्मान व्यक्त करने में नमस्कार का प्रयोग भारत में सदियों से होता आ रहा है और अब दुनिया के कई देश भी समझने लगे हैं इसके मायने। दरअसल कोविड-19 ने दुनियाभर के लोगों को समझा दिया है इसका महत्व...
कोविड-19 ने बीते पांच माह में लोगों को शारीरिक तौर पर दूर कर दिया। आपसी मेल मुलाकात के तरीके बदल दिए और तब सभी ने भारतीय परंपरा में अनुपालित नमस्ते को अपनाया। अब इसकी पहुंच दुनिया के कई देशों में हो गई है। इन देशों में इस शब्द का अर्थ पूरी गहराई से समझा गया है इसलिए वहां भी इसका प्रचलन आम होता जा रहा है। अब तो तमाम शोध बता रहे हैं कि नमस्ते की मुद्रा से मिलती है कई बीमारियों पर अंकुश लगाने में मदद।
सब आपको समर्पित
दरअसल, नमस्ते शब्द संस्कृत व्याकरण से निकला है। यह दो शब्दों ‘नम:’ और ‘अस्ते’ से मिलकर बना है। जिनका मतलब है आपको प्रणाम। इस शब्द में आध्यात्मिकता का भी पुट है। नमस्ते कहने या करने से सामने वाले के प्रति सम्मान का भाव तो जाहिर होता ही है, साथ ही यह शब्द हमारे व्यक्तित्व में कृतज्ञता तथा नम्रता के भाव लाता है। इससे हम व्यवहारकुशल तो बनते ही हैं साथ ही हमें मानसिक शांति भी मिलती है।
समझें इनके बीच का अंतर
नमस्ते की तरह नमस्कार शब्द भी संस्कृत व्याकरण से लिया गया है। संस्कृत व्याकरण में इस शब्द को ‘नम:’ कहा जाता है, जिससे मतलब निकलता है नमन करना। खास बात यह है कि नमस्ते और नमस्कार, दोनों शब्दों से भावनात्मक रूप से भले ही समान भाव प्रकट होता हो मगर प्रयोग की दृष्टि से दोनों में अंतर है। दोनों शब्दों में नमन का आशय तो है मगर ‘ते’ तथा ‘कार’ में अंतर आ जाता है। ध्यान देने की बात है कि माता-पिता या उनकी आयु वाले व बुजुर्ग व्यक्ति को नमस्ते किया जाता है लेकिन नमस्कार शब्द का उपयोग दो समान व्यक्तियों, सहयोगियों, दोस्त, भाषण की शुरुआत में तथा साथ रहने वाले लोगों के बीच किया जाता है। नमस्ते करते वक्त दोनों हाथों को शरीर के अनाहत चक्र पर रखा जाता है और सिर झुकाकर आंखें बंद कर ली जाती हैं।
तरीके हैं कई
हमारे देश में अभिवादन तथा आदर प्रकट करने की दूसरी विधियां भी हैं। इनमें साष्टांग, प्रत्युथान, प्रत्याभिवादन एवं उपसंग्रहण शामिल हैं। व्यक्ति किसी को लेटकर प्रणाम करे तो उसे साष्टांग प्रणाम कहा जाता है। यदि किसी के स्वागत में खड़े हों तो उसे प्रत्युत्थान कहा जाता है। यदि कोई मेहमान विदा ले रहा हो तो उसके साथ थोड़ी दूर तक जाने को प्रत्याभिवादन कहते हैं। उपसंग्रहण में पांव छुए जाते हैं। इन सबके अलावा राम-राम कहने का प्रचलन भी कोई कम नहीं है। इस अभिवादन से सबसे पहले प्रभु श्रीराम का स्मरण होता है। राम-राम कहने का सीधा अर्थ यह है कि एक भगवान राम मुझमें हैं और एक भगवान राम आपके अंदर विराजमान हैं। इस अभिवादन पद्धति में जो व्यक्ति राम-राम बोलता है, उसका आशय यह है कि मैं भगवान राम के जैसा आचरण तथा व्यवहार करता हूं और यही अपेक्षा आपसे भी करता हूं।
बीमारियों पर अंकुश
कई शोध बताते हैं कि नमस्ते की मुद्रा से कई बीमारियों पर अंकुश लगाने में सफलता मिलती है। यदि आप हाथ न मिलाएं और सिर्फ नमस्ते कह दें तो कोरोना संक्रमण ही नहीं बल्कि सर्दी-जुकाम, हैजा, आंखों की बीमारी, टॉयफाइड, डायरिया जैसी संक्रामक बीमारियों से बच सकते हैं। नमस्ते के इस असर के कारण पिछले कुछ सालों से भारतीय डॉक्टर हाथ मिलाने के स्थान पर नमस्ते करने की आदत अपना रहे हैं। उनके लिए नमस्ते शब्द इसलिए भी बहुत ज्यादा उपयोगी है, क्योंकि वे रोज ही कई रोगियों के संपर्क में आते हैं और विभिन्न बीमारियों से संक्रमित होने का डर बना रहता है। ऐसे में जरूरी है कि कोरोना फाइटर्स समेत हम सभी आपस में मिलने के दौरान नमस्ते शब्द को व्यावहारिक तौर पर अपनाएं ताकि स्वयं भी सुरक्षित रहें और समाज को भी सुरक्षित कर सकें।