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    CG News: जशपुर की आदिवासी महिलाओं ने महुआ से बदली किस्मत, 'जशप्योर' बना आत्मनिर्भरता का प्रतीक

    Updated: Sun, 05 Oct 2025 05:45 PM (IST)

    छत्तीसगढ़ के जशपुर जिले में आदिवासी महिलाओं ने महुआ को आर्थिक आत्मनिर्भरता का साधन बनाया है। जशप्योर ब्रांड के तहत वे महुआ लड्डू बिस्कुट और कुकीज जैसे उत्पाद बनाकर ई-कॉमर्स के माध्यम से देश भर में बेच रही हैं। 150 से अधिक महिलाएं स्व-सहायता समूहों के माध्यम से इन पौष्टिक उत्पादों को तैयार कर रही हैं।

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    जशपुर की आदिवासी महिलाओं ने महुआ से बदली किस्मत (फोटो सोर्स- जेएनएन)

    डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। छत्तीसगढ़ के जशपुर जिले की आदिवासी महिलाओं ने महुआ को आर्थिक आत्मनिर्भरता का सहारा बनाया है। नतीजा, अब वह सिर्फ घर की देहरी तक सीमित नहीं हैं, बल्कि ई-कामर्स के माध्यम से पूरे देश के बाजारों पर अपनी छाप छोड़ रही हैं।

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    महिलाओं के साझा प्रयास से शुरू किए गए 'जशप्योर' ब्रांड ने महुआ जैसे स्थानीय वनोपज को एक आकर्षक उत्पाद श्रृंखला जैसे, महुआ लड्डू, बिस्कुट, कुकीज और एनर्जी बार में बदलकर आर्थिक बदलाव की शुरुआत की है।

    कितनी महिलाएं कर रही काम?

    उत्पादन केंद्र में 150 से अधिक महिलाएं स्व-सहायता समूहों के माध्यम से इन पौष्टिक और स्वादिष्ट उत्पादों को तैयार कर रही हैं। 'जशप्योर' केवल एक ब्रांड नहीं, बल्कि इन महिलाओं के आत्मविश्वास, स्व-रोज़गार और आर्थिक आत्मनिर्भरता की कहानी है, जो स्थानीय संसाधनों का उपयोग कर उन्हें बाजार की मुख्यधारा से जोड़ रहा है।

    जशप्योर के उत्पादों की मांग ई कामर्स साइट के साथ खुले बाजार में लगातार बढ़ती जा रही है। राज्य सरकार और जिला प्रशासन मिल कर जशप्योर के नाम से इन उत्पादों की ब्रांडिंग कर रही है। इन उत्पादों में सबसे अधिक मांग महुआ लड्डु की बनी हुई है।

    जशप्योर के मार्गदर्शक कृषि वैज्ञानिक समर्थ जैन ने बताया कि महुआ से तैयार होने वाला लड्डु में देशी घी के साथ काजू, किसमिस, चिरौंजी, नारियल का उपयोग किया जाता है। यह लड्डु स्वादिष्ट होने के साथ पौष्टिक भी होते हैं। शरीर में रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने में यह सहायक होता है। कोरोनाकाल में जशपुर में बने महुआ सैनेटाइजर ने भी राष्ट्रीय स्तर पर खूब सुर्खियां बटोरी थी।

    क्या-क्या किया जा रहा तैयार?

    इस केंद्र में महुआ लड्डु के साथ बांस की टोकरी, बैग, महुआ चाय, हाथ से कूट कर तैयार किए गए जवाफूल चावल, मिलेट्स से तैयार पास्ता जैसे अन्य उत्पाद भी उपलब्ध कराए जा रहे हैं। स्व सहायता समूह द्वारा इन सारे उत्पादों को तैयार करने के लिए शहर के शासकीय बालक उच्चतर माध्यमिक विद्यालय के पास मशीन लगाई गई है।

    इस उत्पाद केंद्र में इस समय 150 महिलाएं जुड़ी हुई है। इन्हें इन सारे उत्पादों को तैयार करने के साथ ही इनकी पैकिंग इत्यादि प्रक्रिया का प्रशिक्षण भी महिलाओं को दिया गया है। खनिज न्यास निधि से इन महिलाओं को आर्थिक सहायता उपलब्ध कराई गई है।

    वनोपज पर आश्रित ग्रामीणों को आर्थिक लाभ

    कृषि वैज्ञानिक समर्थ जैन ने बताया कि स्थानीय स्तर पर तैयार हो रहे इन उत्पादों से वनोपज पर आश्रित ग्रामीणों को भी आर्थिक लाभ मिल रहा है। उन्होनें बताया कि लड्डु, चाय तैयार करने के लिए महुआ की स्थानीय स्तर पर खरीद की जाती है।

    इससे ग्रामीणों को सीधा लाभ मिल रहा है। इसी तरह देशी चावल, रागी, बांस की खरीदी भी जशप्योर द्वारा ग्रामीणों से की जा रही है। जशप्योर ने जिले के आदिवासी महिलाओं को स्व रोजगार और आर्थिक आत्मनिर्भरता का एक नया रास्ता दिखाया है।

    लगातार बढ़ रही है मांग

    आदिवासी महिलाओं द्वारा तैयार किये जा रहे इन उत्पादों को बाजार उपलब्ध कराने के लिए राज्य सरकार ने जशप्योर नाम से आनलाइन वेबसाइट तैयार की है। इसके अलावा विभिन्न ई कामर्स वेबसाइट में भी ये उत्पाद उपलब्ध है। संजीवनी, सी मार्ट जैसे सरकारी आउटलेट के माध्यम से भी इन उत्पादों को उपभोक्ताओं तक पहुंचाया जा रहा है।

    जशप्योर की बढ़ती हुई लोकप्रियता का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि वित्त वर्ष 2024-25 और 2025-26 में अब तक 72 लाख रूपये का व्यापार इन आदिवासी महिलाओं द्वारा किया जा चुका है।

    जशप्योर के अंर्तगत महुआ लड्डु, महुआ चाय के साथ पास्ता, बांस की टोकरी, बैग जैसे उत्पाद तैयार किये जा रहे हैं। इन्हें आनलाइन और आफ लाइन बाजार में उपलब्ध कराया गया है। बाजार में इन उत्पादों की मांग लगातार बढ़ रही है- समर्थ जैन, कृषि वैज्ञानिक, जशपुर।

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