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Mahatma Gandhi 150th Birth Anniversary: बापू के नकली दांतों की कहानी जानते हैं आप? जानें और भी रोचक बातें...

Mahatma Gandhi 150th Birth anniversary 2019 द.अफ्रीका में वकालत के दौरान इनकी सालाना आय 15 हजार डॉलर तक पहुंच गई थी। उन दिनों में अधिकांश भारतीयों के लिए यह आय एक सपना थी।

By Sanjay PokhriyalEdited By: Published: Wed, 02 Oct 2019 09:17 AM (IST)Updated: Wed, 02 Oct 2019 11:12 AM (IST)
Mahatma Gandhi 150th Birth Anniversary: बापू के नकली दांतों की कहानी जानते हैं आप? जानें और भी रोचक बातें...
Mahatma Gandhi 150th Birth Anniversary: बापू के नकली दांतों की कहानी जानते हैं आप? जानें और भी रोचक बातें...

नई दिल्‍ली [जागरण स्‍पेशल]।  Mahatma Gandhi 150th Birth Anniversary आज दुनिया के किसी कोने में चले जाइए और किसी भी व्यक्ति से पूछिए कि क्या वह किसी दो भारतीय विभूतियों का नाम बता सकता है? उत्तर में संभवतया वह गौतम बुद्ध और महात्मा गांधी के नामों का उल्लेख करे।

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पिछले 2600 वर्षों की समयावधि के दौरान पैदा हुए सभी भारतीयों में से ये दोनों हस्तियां सर्वाधिक लोकप्रिय रहीं। इन्हें सर्वाधिक सम्मान मिला। इसका सर्वाधिक प्रमुख कारण माना जा सकता है कि इनकी नीतियां एवं सिद्धांत काफी कुछ मिलते-जुलते हैं और वर्तमान परिवेश में भी लागू होते हैं। गांधी जयंती के अवसर पर आइए बापू के जीवन से जुड़े कुछ अनछुए तथ्यों पर डालें एक नजर:

  • महात्मा गांधी के पास कृत्रिम दांतों का एक सेट हमेशा मौजूद रहता था। इसे वे अपनी लंगोटी में लपेटकर चलते थे। जब उन्हें भोजन करना होता था, तभी उनका उपयोग करते थे। भोजन करने के बाद उन्हें अच्छी तरह से धोकर, सुखाकर फिर से लंगोटी में लपेटकर रख लेते थे।
  • ये आयरिश उच्चारण वाली अंग्रेजी बोलते थे। इसका एक मात्र कारण था कि शुरुआती दिनों में गांधीजी को अंग्रेजी पढ़ाने वाले अध्यापकों में से एक आयरिश व्यक्ति भी था।
  • लंदन यूनिवर्सिटी में पढ़ाई करके अटार्नी बने, लेकिन कोर्ट में पहली बार बोलने के प्रयास के दौरान उनकी टांगें कांप गईं। वे इतना डर गए कि निराशा और हताशा के बीच उन्हें बैठने पर विवश होना पड़ा। लंदन में उनकी वकालत बहुत ज्यादा नहीं चली। बाद में वे अफ्रीका चले गए। वहां उन्हें बड़ी संख्या में मुवक्किलों का मिलना शुरू हुआ। गांधीजी अपने कई मुवक्किलों के मामलों को अदालत से बाहर ही शांतिपूर्ण तरीके से सुलझा देते थे। इससे लोगों का समय के साथ आर्थिक बचत भी होती थी।
  • महात्मा गांधी कभी अमेरिका नहीं गए, लेकिन वहां उनके कई प्रशंसक और अनुयायी बन गए थे। इन्हीं में से एक उनके असाधारण प्रशंसक प्रसिद्ध उद्योगपति और फोर्ड मोटर के संस्थापक हेनरी फोर्ड भी थे। गांधीजी ने उन्हें एक स्वहस्ताक्षरित चरखा भेजा था। द्वितीय विश्व युद्ध के भयावह समय के दौरान फोर्ड इस चरखे से सूत काता करते थे।
  • द.अफ्रीका में वकालत के दौरान इनकी सालाना आय 15 हजार डॉलर तक पहुंच गई थी। उन दिनों में अधिकांश भारतीयों के लिए यह आय एक सपना थी।
  • सविनय अवज्ञा (नाफरमानी) की प्रेरणा उन्हें अमेरिकी व्यक्ति की एक किताब से मिली। हार्वर्ड यूनिवर्सिटी से ग्रेजुएट डेविड थोरियू नामक यह व्यक्ति मैसाचुसेट्स में एक संन्यासी की तरह जीवन बिताता था। उसने सरकार को टैक्स अदा करने से मना कर दिया, जिसके चलते उसे जेल भेज दिया गया। वहीं पर डेविड ने सविनय अवज्ञा पर एक किताब लिखी और लोगों को टैक्स न चुकाने की शिक्षा देने लगा। वहां पर लोगों ने उसकी किताब को गंभीरता से नहीं लिया, लेकिन भारत में वह किताब गांधीजी के हाथ लग गई।
  • उन्होंने इस रणनीति को आजमाने का विचार किया। उन्होंने देखा कि अंग्रेज अपने वायदे के खिलाफ भारत को आजादी नहीं दे रहे हैं, लिहाजा अंग्रेजी हुकूमत को सबक सिखाने के लिए उन्होंने लोगों से टैक्स देने के बजाय जेल जाने का आह्वान किया। इसके साथ उन्होंने विदेशी सामान के बहिष्कार का भी आंदोलन चलाया। जब ब्रिटिश हुकूमत ने नमक पर टैक्स लगा दिया तो गांधीजी ने दांडी यात्रा के तहत समुद्र तट पर जाकर खुद का नमक बनाया।
  • अपने अहिंसा और सविनय अवज्ञा जैसे सिद्धांतों से राष्ट्रपिता ने दुनिया के लाखों लोगों को प्रेरित किया। शांति के नोबेल पुरस्कार विजेता कई विश्व नेताओं ने गांधीजी के विचारों से प्रभावित होने की बात स्वीकारी है। मार्टिन लूथर किंग जूनियर (अमेरिका), दलाईलामा (तिब्बत), आंग सान सू की (म्यांमार), नेल्सन मंडेला (दक्षिण अफ्रीका), एडोल्फो पेरेज इस्क्वीवेल (अर्जेंटीना) और अमेरिका के मौजूदा राष्ट्रपति बराक ओबामा ने इस सत्य को स्वीकारा है कि वे गांधी के विचारों एवं दर्शन से प्रभावित हैं। ये बात और है कि अपने विचारों और सिद्धांतों से नोबेल पुरस्कार विजेताओं को प्रभावित करने वाले महात्मा गांधी को इस पुरस्कार से वंचित रहना पड़ा।
  • महान भौतिक विज्ञानी अल्बर्ट आइंसटीन ने गांधीजी के बारे में एक बार कहा था, ‘ हमारी आने वाली पीढ़ियां शायद ही यकीन कर पाएं कि कभी हांड़-मांस का ऐसा इंसान (गांधीजी) इस धरती पर मौजूद था।
  • प्रसिद्ध पत्रिका ‘टाइम’ ने राष्ट्रपिता महात्मा गांधी को तीन बार अपने कवर पेज पर स्थान दिया है। 1930 में गांधीजी को ‘मैन ऑफ द ईयर’ घोषित किया था। 1999 में पत्रिका द्वारा मशहूर भौतिक विज्ञानी अल्बर्ट आइंसटीन को ‘पर्सन ऑफ द सेंचुरी ’ चुना गया तो महात्मा गांधी दूसरे स्थान पर रहे।

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