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    Mahatma Gandhi birth anniversary: इन समस्‍याओं पर आज भी सच साबित हो रहीं बापू की बातें

    By Krishna Bihari SinghEdited By:
    Updated: Wed, 02 Oct 2019 10:04 AM (IST)

    चाहे बात सच्चाई की हो अहिंसा की हो या साफ-सफाई की। पर्यावरण जीवनशैली समानता आदि मामलों में उनकी कही बातें आज अक्षरश सही साबित हो रही हैं। 

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    Mahatma Gandhi birth anniversary: इन समस्‍याओं पर आज भी सच साबित हो रहीं बापू की बातें

    नई दिल्‍ली [जागरण स्‍पेशल]। गांधी एक व्यक्ति का नहीं, बल्कि एक विचारधारा का नाम है। उन्होंने देखा कि समाज का एक बड़ा वर्ग अपने ऊपर हो रहे अत्याचार पर पलटवार नहीं कर सकता। परिवार से स्नेह करने के कारण वह हिंसक न होकर खुद को सुरक्षित रखने के लिए भीरू बन गया है।  आज हमारे सामने जो समस्‍याएं हैं, उनके बारे में महात्‍मा गांधी ने जो विचार रखे थे, वो आज भी प्रासंगिक हैं। चाहे बात सच्चाई की हो, अहिंसा की हो या साफ-सफाई की। पर्यावरण, जीवनशैली, समानता आदि मामलों में उनकी कही बातें आज अक्षरश: सही साबित हो रही हैं। 

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    नारी सशक्तिकरण

    महात्‍मा गांधी कहते थे कि पुरुष को चाहिए स्त्री को उचित स्थान दे। जिस देश अथवा समाज में स्त्री का आदर नहीं होता उसे सुसंस्कृत नहीं कहा जा सकता। त्याग, नम्रता, श्रद्धा, विवेक और स्वेच्छा से कष्ट सहने की सामर्थ रखने वाली औरत कभी अबला नहीं हो सकती। भाषाएं घोषित करती हैं कि महिला पुरुष की अर्धांगिनी है। इसी प्रकार पुरुष भी महिला का अर्धांग है।

    राष्ट्र निर्माण में महत्वपूर्ण है शिक्षा 

    महात्‍मा गांधी ने कहा था कि मैं पाश्चात्य संस्कृति का विरोधी नहीं हूं। मैं अपने घर के खिड़की दरवाजों को खुला रखना चाहता हूं , जिससे बाहर की स्वच्छ हवा आ सके, लेकिन विदेशी भाषाओं की ऐसी आंधी न आ जाए कि मैं औंधे मुंह गिर पडूं। भारतीय अंग्रेजी ही क्यों, अन्य भाषाएं भी पढ़ें, परंतु जापान की तरह उनका उपयोग स्वदेश हित में किया जाए।

    राष्ट्रीय पतन की निशानी है बाल मजदूरी

    बापू कहते थे कि कारखानों में मजदूरों के तौर पर लिए जाने वाले बालकों की उम्र बढ़ा दी जाए। छोटे-छोटे बालक स्कूलों से उठा लिए जाएं और उन्हें पैसा कमाने के लिए मजदूरी के काम में लगा दिया जाए तो यह कार्य राष्ट्रीय पतन की निशानी है। कोई भी राष्ट्र अपने बालकों का ऐसा दुरुपयोग नहीं कर सकता।

    सामाजिक विषमता

    समाज में जब तक विषमता रहेगी, हिंसा भी रहेगी। हिंसा को खत्म करने केलिए पहले विषमता को समाप्त करना होगा। विषमता के कारण समृद्ध अपनी समृद्धि के कारण और गरीब अपनी गरीबी में मारा जाएगा। इसलिए ऐसा स्वराज हासिल करना होगा, जिसमें अमीर-गरीब के बीच कोई भेद न रहे। अहिंसा तो शौर्य का शिखर है मेरी अहिंसा प्रियजनों को असुरक्षित छोड़कर खतरों से दूर भागने की बात नहीं करता। हिंसा और कायरतापूर्ण लड़ाई में मैं कायरता की बजार्य हिंसा को पसंद करूंगा। मैं किसी कायर को अहिंसा का पाठ नहीं पढ़ा सकता वैसे ही जैसे किसी अंधे को लुभावने दृश्यों की ओर प्रलोभित नहीं कर सकता। 

    पहले खुद पर किया प्रयोग फ‍िर दी अमल की सलाह 

    गांधी जी विचारों को लेकर समावेशन के पक्षधर थे। यही वजह है कि उन्होंने जन आंदोलन से लेकर शिक्षा-स्वास्थ्य और आर्थिक पहल में भी समाज के सबसे निचले तबके को भागीदार बनाने पर जोर दिया। ऐसा इसलिए ताकि विकास में वह अपनी भागीदारी सुनिश्चित कर सकें। यही नहीं किसी को भी अमल करने की सलाह देने से पहले उन्‍होंने खुद पर प्रयोग करके देखा।  

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