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    भाषा विवाद के बीच महाराष्ट्र में उठा एक और सियासी तूफान, विशेष सार्वजनिक सुरक्षा विधेयक पर छिड़ी रार

    Updated: Fri, 11 Jul 2025 06:34 PM (IST)

    महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने वामपंथी उग्रवादी संगठनों पर अंकुश लगाने वाले विधेयक को मंजूरी मिलने पर खुशी जताई। उन्होंने कहा कि यह राज्य में सक्रिय ऐसे समूहों पर नकेल कसने के लिए ज़रूरी था क्योंकि कई संगठन अन्य राज्यों में प्रतिबंधित हैं। मुख्यमंत्री ने दुरुपयोग की आशंकाओं को दूर करते हुए कहा कि कानून में पर्याप्त सुरक्षा उपाय हैं।

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    मुख्यमंत्री ने विशेष विधेयक की आवश्यकता पर बल दिया (फोटो: पीटीआई)

    राज्य ब्यूरो, मुंबई। महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने वामपंथी उग्रवादी संगठनों की गतिविधियों पर अंकुश लगाने संबंधी विधेयक को विधानमंडल के दोनों सदनों की मंजूरी मिलने की सराहना करते हुए कहा कि राज्य में सक्रिय ऐसे समूहों पर नकेल कसने के लिए यह आवश्यक था।

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    उनके अनुसार ये संगठन अन्य राज्यों में पहले से प्रतिबंधित हैं। उन्होंने इसके दुरुपयोग की आशंकाओं को दूर करने का भी प्रयास किया। दूसरी ओर पूर्व मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे ने विधान परिषद में तो इस विधेयक का समर्थन किया, लेकिन सदन से बाहर पत्रकारों से बात करते हुए कहा कि यह सार्वजनिक सुरक्षा नहीं भाजपा सुरक्षा विधेयक है।

    दुरुपयोग की आशंकाओं पर बोले सीएम

    फडणवीस ने शुक्रवार को इस कानून के दुरुपयोग की आशंकाओं को दूर करने का प्रयास करते हुए बताया कि कम से कम छह ऐसे संगठन हैं जो अन्य राज्यों में प्रतिबंधित हैं, लेकिन महाराष्ट्र में अभी भी सक्रिय हैं। उनके अनुसार इन संगठनों से निपटने के लिए ‘विशेष सार्वजनिक सुरक्षा विधेयक' में पर्याप्त कानूनी सुरक्षा उपाय शामिल हैं।

    गृह विभाग का भी प्रभार संभाल रहे मुख्यमंत्री ने विशेष विधेयक की आवश्यकता पर बल दिया, जो शहरी नक्सलवाद और परोक्ष उग्रवाद पर अंकुश लगाने पर केंद्रित है, और उन्होंने उग्रवादी संगठनों से निपटने में गैरकानूनी गतिविधियां (रोकथाम) अधिनियम और महाराष्ट्र संगठित अपराध नियंत्रण अधिनियम (मकोका) जैसे कड़े कानूनों की सीमाओं के बारे में भी बताया।

    महाराष्ट्र में 64 माओवादी संगठन कार्यरत

    • महाराष्ट्र विधानमंडल के दोनों सदनों में इस विधेयक के पारित हो जाने के बाद मुख्यमंत्री ने कहा कि महाराष्ट्र में 64 माओवादी संगठन कार्यरत हैं, जिनमें से छह को पहले से ही इसी तरह के कानूनों के तहत अन्य राज्यों में प्रतिबंधित किया गया है। यह विधेयक सरकार को उन संगठनों के खिलाफ कार्रवाई करने का अधिकार देगा जो डॉ. बाबासाहेब अंबेडकर द्वारा तैयार संवैधानिक ढांचे को चुनौती दे रहे हैं।
    • फडणवीस ने कहा कि मुझे खुशी है कि किसी ने भी विधेयक का सीधे तौर पर विरोध नहीं किया। कई सुझाव आए और उनमें से कई को शामिल कर लिया गया है। मुख्यमंत्री ने गुरुवार को विधानसभा में बोलते हुए कहा था कि यह विधेयक कुछ ऐसे संगठनों के खिलाफ कार्रवाई करने के लिए कानूनी ढांचा प्रदान करता है जो खुद को संवैधानिक और लोकतांत्रिक बताने के बावजूद संविधान को अस्वीकार करना चाहते हैं।
    • फडणवीस के अनुसार केंद्र ने नक्सल गतिविधियों से प्रभावित सभी राज्यों से ऐसा कानून पारित करने को कहा है। उन्होंने आगे कहा कि हमने धीरे-धीरे नक्सल आंदोलन को ख़त्म कर दिया है, जो जंगलों और ग्रामीण इलाकों में हथियारों का इस्तेमाल करते थे। इसके बाद इन समूहों ने शहरी मोर्चे बनाने शुरू कर दिए। इन संगठनों के नाम संवैधानिक लगते हैं, लेकिन उनका असली मकसद संविधान को नकारना है। अब तक उनके ख़िलाफ़ कार्रवाई करने के लिए कोई क़ानूनी ढाँचा नहीं था। इस विधेयक के साथ, अब हमारे पास साधन हैं।

    फडणवीस ने विधेयक का कानूनी तर्क बताया

    यूएपीए और मकोका जैसे मौजूदा कानूनों के बारे में पूछे गए एक सवाल पर मुख्यमंत्री ने महाराष्ट्र में वामपंथी उग्रवादी संगठनों की गतिविधियों पर अंकुश लगाने में पहले से मौजूद इन कानूनों की सीमाओं के बारे में बताया। फडणवीस ने कहा कि जब तक आतंकवाद का पहलू स्थापित न हो जाए, यूएपीए लागू नहीं किया जा सकता। एमसीसीओए भी ऐसे मामलों को नहीं संभाल सकता क्योंकि यह व्यक्तियों से संबंधित है, संगठनों से नहीं। मैंने इस विधेयक का कानूनी तर्क प्रस्तुत किया है और बताया है कि इसका दुरुपयोग कैसे नहीं किया जा सकता। फडणवीस ने आश्वस्त किया कि इस कानून के तहत, किसी संगठन के खिलाफ कोई भी कार्रवाई करने से पहले न्यायाधीश से अनुमति लेनी होगी।

    अन्य मौजूदा कानूनों में, अक्सर पहले कार्रवाई की जाती है और फिर मामला न्यायाधीश के सामने लाया जाता है। इस मामले में, एक डीआईजी स्तर के अधिकारी को एक बोर्ड के सामने मामला पेश करना होता है, जिसमें एक वर्तमान या सेवानिवृत्त उच्च न्यायालय के न्यायाधीश, एक जिला न्यायाधीश और अन्य शामिल होते हैं। बोर्ड की मंजूरी के बाद ही कार्रवाई की जा सकती है। उन्होंने जोर देकर कहा कि यह विधेयक प्राधिकारियों को संविधान के समक्ष आने वाली किसी भी चुनौती से बचने में मदद करेगा।

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