महाराज हनवंत सिंह और जुबैदा की प्रेम कहानी, प्लेन क्रैश में मौत फिर बेटे की हत्या; जोधपुर के इतिहास का 'काला सच'
भारत की आजादी के बाद जोधपुर के महाराज हनवंत सिंह और अभिनेत्री जुबैदा की प्रेम कहानी चर्चा में आई। सामाजिक बंधनों को तोड़कर दोनों ने विवाह किया, पर एक विमान दुर्घटना में उनकी मृत्यु हो गई। जुबैदा के बेटे खालिद मोहम्मद ने इस कहानी को फिल्म 'जुबैदा' के रूप में प्रस्तुत किया। इस घटना के बाद उनके बेटे हुकम सिंह की रहस्यमय परिस्थितियों में हत्या हो गई, जो आज भी एक अनसुलझा रहस्य है।

महाराज हनवंत सिंह और जुबैदा की प्रेम कहानी (फाइल फोटो)
डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। भारत की आजादी के बाद राजघरानों की कई कहानियां सुर्खियों में आईं, लेकिन जोधपुर के महाराज हनवंत सिंह और अभिनेत्री जुबैदा की प्रेम कहानी जितनी भावनात्मक और दुखद थी, उतनी शायद ही कोई और रही हो।
यह रिश्ता समाज की सीमाओं और परंपराओं को तोड़ते हुआ आगे बढ़ा, लेकिन एक विमान हादसे ने इस प्रेम कहानी का अंत कर दिया। यह वही कहानी है, जिस पर फिल्म 'जुबैदा' बनी जिसे जुबैदा के बेटे और पत्रकार-फिल्मकार खालिद मोहम्मद ने लिखा और श्याम बेनेगल ने निर्देशित किया।
किससे हुई थी हनवंत सिंह की पहली शादी?
हनवंत सिंह का जन्म 16 जून 1923 को राठौड़ वंश में हुआ था। वे 1947 में जोधपुर के महाराजा बने, जब भारत स्वतंत्र हुआ और रियासतों के भारत में विलय की प्रक्रिया चल रही थी। उन्होंने 1943 में राजकुमारी कृष्णा कुमारी (ध्रांगधरा राज्य) से शादी की और उनके तीन बच्चे हुए, जिनमें गज सिंह बाद में महाराज बने।
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हनवंत सिर्फ परंपरागत राजा नहीं थे वे पोलो के खिलाड़ी, महत्वाकांक्षी नेता और राजनीति में उतरने वाले शाही शासकों में से एक थे। उन्होंने 1952 के लोकसभा और विधानसभा चुनाव में भाग लेने का फैसला किया।
जुबैदा बेगम, 1926 में मुंबई में एक मुस्लिम परिवार में जन्मीं। उनकी मां फातिमा बेगम भारत की पहली महिला निर्देशक थीं और बहन सुल्ताना शुरुआती सिनेमा की लोकप्रिय अभिनेत्री थीं। जुबैदा खुद भी 1931 की एतिहासिक फिल्म 'आलम आरा' की नायिका रहीं जो भारत की पहली बोलती फिल्म थी।
कैसे जुबैदा और हनवंत सिंह हुए एक?
एक असफल विवाह और बेटे खालिद मोहम्मद के जन्म के बाद जुबैदा की मुलाकात महाराज हनवंत सिंह से हुई। दोनों के बीत प्यार हुआ और तमाम सामाजिक विरोधों के बावजूद जुबैदा ने आर्य समाज रीति से हिन्दू धर्म अपनाया और 17 दिसंबर 1950 को 'विद्या रानी' नाम से शादी की।
1951 में देश के पहले आम चुनाव हो रहे थे। हनवंत सिंह लगातार रैलियों में व्यस्त थे और नींद तक नहीं ले पा रहे थे। 25 जनवरी 1952 की रात वे अपनी पत्नी जुबैदा के साथ बीचक्राफ्ट बोनांजा विमान से उदयपुर जाने के लिए निकले। लेकिन 26 जनवरी की सुबह जब देश गणतंत्र दिवस मना रहा था, उनका विमान राजस्थान के सुमेरपुर के पास दुर्घटनाग्रस्त हो गया।
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इस घटना में दोनों की मौके पर ही मौत हो गई। हनवंत सिंह सिर्फ 28 साल के थे। वह सीट जो उन्होंने चुनाव में लड़ी थी, बाद में घोषित नतीजों में उनके नाम से जीती हुई पाई गई। जुबैदा और हनवंत सिंह के बेटे हुकम सिंह (तुतू बाना) को राजमाता कृष्णा कुमारी ने पाला और उमैद भवन पैलेस में बड़ा किया।
हुकम सिंह की रहस्यमयी मौत
उन्होंने मायो कॉलेज अजमेर में पढ़ाई की और जोधपुर के सामाजिक जीवन में सक्रिय रहे। लेकिन 1981 में उनकी हत्या रहस्यमयी हालात में हो गई और यह केस आज भी अनसुलझा है। 1952 की दुर्घटना और 1981 की हत्या, दोनों ने जोधपुर के इतिहास में शापित प्रेम कहानी की तरह जगह बना ली। वर्ष 2021 में विमान का कुछ मलबा फिर से बरामद हुआ और बाद में मेहरानगढ़ संग्रहालय में रखने की योजना बनी।
क्या था हादसे का कारण?
हालांकि, कोई आधिकारिक रिपोर्ट सार्वजनिक नहीं हुई। लेकिन विशेषज्ञों के अनुसार थकान और भ्रम इसकी वजह रही। हनवंत सिंह खुद विमान उड़ा रहे थे और संभवत: सुबह की रोशनी में दिशा खो बैठे। किसी साजिश या तकनीकी गड़बड़ी के सबूत नहीं मिले।
2001 में आई फिल्म 'जुबैदा' ने इस सच्ची कहानी को फिर से जीवंत किया। करिश्मा कपूर ने जुबैदा का किरदार निभाया और मनोज बाजपेयी महाराज हनवंत सिंह की भूमिक में नजर आए थे।
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