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    सुभद्रा कुमारी चौहान थी महादेवी वर्मा की रूममेट, गूगल ने किया आज का दिन उन्हें समर्पित

    उनके माता-पिता दोनों ने अपनी बेटी को अपनी शिक्षा जारी रखने की सलाह दी तो उनकी माता ने महादेवी को संस्कृत औऱ हिंदी में लिखने के लिए प्रेरित किया।

    By Srishti VermaEdited By: Updated: Fri, 27 Apr 2018 12:52 PM (IST)
    सुभद्रा कुमारी चौहान थी महादेवी वर्मा की रूममेट, गूगल ने किया आज का दिन उन्हें समर्पित

    नई दिल्ली (जेएनएन)। "आँधी आई जोर शोर से,डालें टूटी हैं झकोर से। उड़ा घोंसला अंडे फूटे,किससे दुख की बात कहेगी! अब यह चिड़िया कहाँ रहेगी?" कविता की ये पंक्तियां मशहूर हिंदी कवयित्रि महादेवी वर्मा की है।स्वतंत्रता सेनानी, मशहूर हिंदी कवयित्री, महिला अधिकारों की कार्यकर्ता और समाजसेवी महादेवी वर्मा को आज गूगल भी याद कर रहा है।

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    27 अप्रैल 1982 को महादेवी वर्मा को भारतीय साहित्य में अतुलनीय योगदान के लिए 'ग्यानपीठ पुरस्कार' से सम्मानित किया गया था। आज गूगल इसी यादगार दिन को फिर से याद कर रहा है। इस मौके पर गूगल ने आकर्षक डूडल बना कर आज का दिन उन्हें समर्पित किया है। जिसे अतिथि कलाकार सोनाली जोहरा ने बनाया है। इस डूडल के जरिए दिखाने की कोशिश की गई है कि दोपहर के समय में एक पेड़ के नीचे बैठ कर महादेवी अपने विचारों को कविता का रुप दे रही है।

    महादेवी को मॉडर्न मीरा के नाम से भी जाना जाता था। उनका जन्म 26 मार्च 1907 को उत्तर प्रदेश के फर्रुखाबाद में एक रुढ़िवादी परिवार में हुआ था। 1916 में महज 9 साल की उम्र में उनका विवाह हो गया था लेकिन वह अपने माता-पिता के घर पर ही रहकर इलाहाबद से अपनी शिक्षा पूरी की। गूगल ने लिखा है- उनके माता-पिता दोनों ने अपनी बेटी को अपनी शिक्षा जारी रखने की सलाह दी तो उनकी माता ने महादेवी को संस्कृत औऱ हिंदी में लिखने के लिए प्रेरित किया। संस्कृत में स्नातक करने के दौरान उन्होंने अपनी पहली कविता छुपते-छुपाते लिखी जिसे उसकी दोस्त और रुममेट ने सबसे पहले देखा। उनकी य़े दोस्त कोई और नहीं बल्कि सुभद्रा कुमारी चौहान थी जो खुद भी एक जानी-मानी कवयित्रि थीं।

    आज महादेवी वर्मा का नाम हिंदी साहित्य में एक अहम योगदान देने वाले कवयित्रि के रुप में याद किय़ा जाता है। उनकी बायोग्रीफी 'मेरे बचपन के दिन' में महादेवी वर्मा ने लिखा है कि वह दौर जब एक लड़की अपने परिवार के लिए बोझ बन जाती है तो ऐसे समय में वह इस तरह के उदारवादी परिवार में जन्म लेना खुद को भाग्यशाली मानती हैं।

    उनकी महिलावादी सोच काफी पसंद की जाती थी उनके विचारों को किताबों, अखबारों में जगह मिलने लगी थी। उन्होंने छोटी-छोटी कहानियों का एक संग्रह लिखा था जिसका नाम था 'स्केचेज फ्रॉम माय पास्ट'। उन्होंने हमेशा से महिला अधिकारों के लिए आवाज उठाई साथ ही महिलाओं से जुड़े जटिल मुद्दों को समाज के सामने लाने की कोशिश की। उन्हें 1956 में पद्मश्री से नवाजा गया था। इसके अलावा 1979 में साहित्य अकादमी फेलोशिप, 1988 में पद्म विभूषण से भी नवाजा गया। साल 1987 में 11 सितंबर को उनका निधन हो गया था।