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खूब मचा था नासा का शोर, लेकिन Lander Vikram को तलाशने में रहा नाकाम, हमारा ऑर्बिटर कहीं आगे

नासा के ऑर्बिटर के लैंडर विक्रम की खोज में नाकाम रहने के बाद इसरो को गहरा धक्‍का लगा है। अब इसरो के पास इससे संपर्क करने के केवल दो दिन शेष बचे हैं।

By Kamal VermaEdited By: Published: Thu, 19 Sep 2019 03:39 PM (IST)Updated: Fri, 20 Sep 2019 07:19 AM (IST)
खूब मचा था नासा का शोर, लेकिन Lander Vikram को तलाशने में रहा नाकाम, हमारा ऑर्बिटर कहीं आगे
खूब मचा था नासा का शोर, लेकिन Lander Vikram को तलाशने में रहा नाकाम, हमारा ऑर्बिटर कहीं आगे

नई दिल्‍ली [जागरण स्‍पेशल]। भारत के लैंडर विक्रम को खोज पाने में नासा का लूनर क्राफ्ट या LRO (Lunar Reconnaissance Orbiter) नाकाम रहा है। इसके साथ ही इसको लेकर पिछले करीब दो दिन से चल रही गहमागहमी भी खत्‍म हो गई। पहले माना जा रहा था कि एलआरओ इस काम को बखूबी अंजाम दे पाएगा, लेकिन ऐसा नहीं हुआ। इसरो को भी एलआरओ से काफी उम्‍मीदें थीं, लेकिन वह उतना काम भी नहीं कर पाया जितना चंद्रमा की परिक्रमा कर रहे भारत के ऑर्बिटर ने कर दिखाया था। आपको बता दें कि 7 सितंंबर को लैंडर विक्रम की क्रेश लैंडिंग चांद की सतह पर हुई थी। लेकिन ऐसा होने से कुछ मिनट पहले ही इसका संपर्क इसरो के मिशन कंट्रोल रूम से टूट गया था। इसके बाद इसकी कोई जानकारी इसरो को नहीं मिल सकी थी। 

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इसरो ने पता लगाई थी विक्रम की पॉजीशन

9 सितंबर को इसरो ने ट्वीट कर बताया था कि चांद के चक्‍कर लगा रहे ऑर्बिटर ने विक्रम की पॉजीशन का पता लगा लिया है और इसके ऊपर से उड़ते हुए उसने इसकी एक थर्मल इमेज भी क्लिक की है। हालांकि इसरो ने कोई इमेज इसके बाद रिलीज नहीं की थी। नासा ने विक्रम की पॉजीशन का पता लगाने की बात कही थी। नासा के एलआरओ को यह काम अंजाम देना था। एलआरओ वर्ष 2009 से ही चांद की परिक्रमा कर रहा है। विक्रम की खोज के लिए एलआरओ को अपनी ऊंचाई को 100 किमी से घटा कर 90 किमी करना था। इस पूरी प्रक्रिया के दौरान एलआरओ को उसी रास्‍ते पर उड़ान भरनी थी जिस रास्‍ते पर विक्रम के होने की पहली जानकारी मिली थी।इस दौरान ऑर्बिटर (Lunar  Reconnaissance Orbiter camera) को उसकी इमेज भी क्लिक करनी थी।एलआरओ जिस वजह से अपने इस काम को अंजाम देने में नाकामयाब रहा है उसकी वजह वही है जिसके बारे में भारत पहले ही कह चुका था। दरअसल, जिस जगह पर विक्रम है वह हिस्‍सा अब अंधकार में डूबा हुआ है। इस वजह से एलआरओ अपने काम में विफल रहा है।   

अंधेरा होने की शुरुआत 

नासा के मुताबिक चांद के इस क्षेत्र में अब दो सप्‍ताह के लिए अंधेरा होने की शुरुआत हो चुकी है। इस वजह से इस क्षेत्र में बेहद कम उजाला है जिसकी वजह से भी एलआरओ को विक्रम को तलाशने में मुश्किल हुई है।कम रोशनी की वजह से एलआरओ विक्रम की पॉजीशन (Lander Vikram Position on Moon's South Pole) को पता लगाने और इसकी इमेज क्लिक करने में नाकाम रहा है। नासा से उम्‍मीद इस वजह से भी लगाई जा रही थी कि वह विक्रम के टचडाउन एरिया (Vikram Touchdown area) की पहले और बाद की तस्‍वीर खींचकर जारी करेगा। इसरो इस ऑर्बिटर से मिले आंकड़ों का भी अध्‍ययन करना था, लेकिन इसरो को इसमें भी निराशा ही हाथ लगी है। आपको बता दें कि इसरो ने पहले ही ये कहा था कि यदि चांद पर रात हो गई तो विक्रम को तलाश करना मुश्किल हो जाएगा।   

बचे केवल दो दिन 

गौरतलब है कि इसरो के पास लैंडर विक्रम से संपर्क करने का केवल एक ही दिन शेष रह गया है। ऐसा इसलिए भी है क्‍योंकि एक दिन बाद यह क्षेत्र पूरी तरह से अंधेरे की गिरफ्त में आ जाएगा। साथ ही यहां का तापमान भी काफी गिर जाएगा। इसरो खुद इस बात को मान चुका है। आपको बता दें कि चांद पर एक दिन धरती के 14 दिनों के बराबर होता है। इसको लूनर डे (Lunar Day) कहा जाता है। वहीं अंधेरा होने के बाद लैंडर भी पूरी तरह से निष्‍क्रय हो जाएगा। यह भी तभी काम कर सकता है जब इस पर सूरज की किरणें पड़ेंगी। इस रोशनी से ही इसमें लगे सोलर पैनल से इसमें ऊर्जा पैदा होती है। जिस वक्‍त लैंडर विक्रम ने चांद की सतह को छुआ था उस वक्‍त लूनर डे की शुरुआत थी। अब उसको करीब 12 दिन बीत चुके हैं। फिलहाल  विक्रम चांद की सतह पर किसी निर्जीव चीज की भांति ही मौजूद है।   

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