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    दहेज-हत्या के मामलों में निचली अदालतें हर बार कर रहीं एक ही गलती, सुप्रीम कोर्ट की अहम टिप्पणी

    Updated: Fri, 31 Jan 2025 08:15 PM (IST)

    सुप्रीम कोर्ट ने एक मामले की सुनवाई के दौरान कहा कि दहेज एवं उत्पीड़न मामले की सुनवाई के दौरान निचली अदालतें एक ही गलती बार- बार कर रही हैं। सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले की सुनवाई के दौरान कहा कि इस न्यायालय ने धारा 304बी के तहत अपराध के तत्वों को बार-बार निर्धारित और स्पष्ट किया। लेकिन निचली अदालतें बार-बार वही गलतियां कर रही हैं।

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    दहेज- हत्या मामलों को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने एक अहम टिप्पणी की।

    डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। सर्वोच्च न्यायालय ने शुक्रवार को क्रूरता और दहेज-हत्या के दोषी एक शख्स को बरी कर दिया और कहा कि निचली अदालतें ऐसे मामलों में बार-बार एक ही गलती कर रही हैं। दरअसल, दहेज उत्पीड़न के एक मामले की सुनवाई के दौरान कोर्ट ने ऐसी टिप्पणी की।

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    बता दें कि न्यायमूर्ति अभय एस ओका और न्यायमूर्ति उज्जल भुयान की पीठ ने कहा कि यह मामला आवश्यक तत्व से रहित है। कोर्ट ने कहा कि गवाहों के किसी भी बयान में क्रूरता या उत्पीड़न का कोई विशिष्ट उदाहरण नहीं था।

    बार- बार एक ही गलतियां कर रही निचली अदालतें

    एनडीटीवी पर लगी एक खबर के अनुसार कोर्ट ने इस मामले की सुनवाई के दौरान कहा कि इस न्यायालय ने धारा 304बी के तहत अपराध के तत्वों को बार-बार निर्धारित और स्पष्ट किया है। लेकिन, निचली अदालतें बार-बार वही गलतियां कर रही हैं। इसमें राज्य न्यायिक अकादमियों को हस्तक्षेप करना चाहिए। शायद यह नैतिक दृढ़ विश्वास का मामला है।

    इस मामले पर सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि दहेज की मांग पर अपने बयान के समय, पीड़िता की मां ने पति पर क्रूरता या उत्पीड़न के किसी विशेष कृत्य का आरोप नहीं लगाया। मामले की सुनवाई के दौरान के कोर्ट ने कहा कि यह धारा 304-बी का एक आवश्यक तत्व है। यह साक्ष्य से नहीं बनता है। अपीलकर्ता के खिलाफ लगाए गए दोनों ही अपराध अभियोजन पक्ष द्वारा उचित संदेह से परे साबित नहीं किए गए।

    एससी ने पलटा निचली अदालतों का फैसला

    बता दें कि इस मामले पर अपना फैसला देते हुए शीर्ष न्यायालय ने पंजाब और हरियाणा उच्च न्यायालय और निचली अदालत के आदेशों को दरकिनार करते हुए व्यक्ति को बरी कर दिया। व्यक्ति और उसके माता-पिता पर आईपीसी की धारा 304बी (दहेज हत्या) और 498ए (पति या पति के रिश्तेदार द्वारा महिला के साथ क्रूरता करना) के तहत मुकदमा चलाया गया। जबकि उसके माता-पिता को बरी कर दिया गया, ट्रायल कोर्ट ने उस व्यक्ति को दोषी ठहराया।

    जानिए पूरा मामला

    जानकारी के अनुसार इस कपल ने 25 जून, 1996 को शादी की थी। इसके बाद महिला ने 2 अप्रैल, 1998 को आत्महत्या कर ली। इस घटना के बाद पोस्टमॉर्टम के बाद, डॉक्टरों ने कहा कि मौत फांसी से दम घुटने के कारण हुई। ये पूरा मामला कोर्ट पहुंचा, जहां पर इसकी सुनवाई हुई।

    इस मामले में तीन मुख्य गवाह थे जिसमें उसकी मां, भाई और मामा शामिल थे। दोनों अदालतों ने माँ और भाई की गवाही पर विश्वास किया। बता दें कि आईपीसी की धारा 304 बी के तहत अपराध स्थापित करने के लिए समय सीमा एक शर्त है।

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