सबरीमाला मंदिर केस: SC में दलील- 'महिलाओं से बैन हटा तो बन जाएगी एक और अयोध्या'
दलील दी थी कि न्याय से जुड़ा व्यक्ति होने की वजह से भगवान अय्यप्पा को संविधान के तहत अपने ब्रह्मचारी चरित्र को सुरक्षित रखने का अधिकार है।
नई दिल्ली [ एजेंसी ]। सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को कहा कि सबरीमाला मंदिर में भगवान अय्यप्पा के ब्रह्मचारी चरित्र की दलील के बावजूद वे इस तथ्य से आंखें नहीं मूंद सकते कि सबरीमाला मंदिर में मासिक धर्म से जुड़े शारीरिक आधार पर 10 से 50 साल की महिलाओं के प्रवेश पर प्रतिबंध है। अदालत में सबरीमाला मंदिर की तरफ से पेश याचिकाकर्ताओं ने कहा कि अगर मंदिर में महिलाओं के प्रवेश पर लगे प्रतिबंध को हटाया जाता है तो एक और अयोध्या जैसी स्थिति उपन्न हो सकती है। इस दलील पर चीफ जस्टिस ने कहा कि केरल के मंदिर के रीति-रिवाज संवैधानिक सिद्धांतों के आधार पर परखे जाएंगे, जिस पर उन्हें खरा उतरना होगा।
याचिकाकर्ताओं ने पीठ के समक्ष कहा कि अदालत को धार्मिक रीति-रिवाजों में हस्तेक्षप नहीं देना चाहिए। याचिकाकर्ताओं के वकील कैलाशनाथ पिल्लई ने कहा कि सदियों पुराने रीति-रिवाजों में दखलंदाजी से एक और अयोध्या बनने का खतरा उत्पन्न हो जाएगा। उन्होंने कहा कि यह सामाजिक तनाव की वजह बन सकता है। अदालत ने कहा कि रीतियों को रेग्युलेट करने का अधिकार तो हो सकता है, लेकिन ऐसी शर्त नहीं लगाई जा सकती, जिससे भेदभाव होता हो।
इस पर पीठ ने कहा कि 'हम इस बात से बेखबर नहीं हो सकते कि महिलाओं के एक वर्ग को फीजियोलॉजिकल आधार पर मंदिर में प्रवेश से वंचित किया जा रहा है।' पीठ ने कहा कि देवता के दर्शन के भक्त के हक को खत्म नहीं किया जा सकता। पीठ ने कहा कि अगर संविधान सभी पहलुओं से ऊपर है तो स्त्रियों को मंदिर में प्रवेश से कैसे वंचित किया जा सकता है। सबरीमाला में 10 से 50 साल की महिलाओं के प्रवेश पर बैन को सीनियर एडवोकेट ने सही बताया।
याचिकाकर्ताओं ने दलील दी थी कि न्याय से जुड़ा व्यक्ति होने की वजह से भगवान अय्यप्पा को संविधान के तहत अपने ब्रह्मचारी चरित्र को सुरक्षित रखने का अधिकार है। इस पर प्रधान न्यायाधीश ने कहा, 'आपके तर्क प्रभावशाली हैं, मुझे इन्हें स्वीकार करना चाहिए। लेकिन अदालत इस तथ्य को नहीं नकार सकती कि महिलाओं के एक वर्ग को शारीरिक कारणों से अनुमति नहीं दी गई है।'