खाक भी जहां की पारस है, वह शहर बनारस है
''बनरसिया कुल बउरायल हउवन। बउरहट एही से समझा कि हर हर महादेव अब हर हर मोदी हो गइलन।''.... ''ई बनारस बड़े-बड़े के चढ़ा के उतार देवेला। कॉहे कि इन्हन के ...और पढ़ें

वाराणसी [राजकिशोर]। ''बनरसिया कुल बउरायल हउवन। बउरहट एही से समझा कि हर हर महादेव अब हर हर मोदी हो गइलन।''....
''ई बनारस बड़े-बड़े के चढ़ा के उतार देवेला। कॉहे कि इन्हन के कपारे पर त महादेव बइठल रहलन। हवा में मत उड़े तनि जमीन पर रहा, अउर राजनीति के धरा, कॉहे कि सबकर राजनीति अब जमीनए पर आ गयल हौ। समझगइला गुरू हर-हर मोदी अब थर-थर मोदी हो गइल हौ।'' बाबा क परसादी (भांग) भकोस के वीरेंद्र श्रीवास्तव ने ज्ञान टेलीकास्ट किया।
टीवी पर जैसे बहस चल रही है, रेलगाड़ी डब्बा कलर का लाल कुर्ता पहन कर भाजपा नेता अशोक पांडेय ने हड़हड़ाते हुए पप्पू की दुकान में एंट्री की और न्यूज ब्रेक की ''देखला गुरू एमएलसी स्नातक में केदार सिंह दुगुना से जीतल हउअन, ई मोदी का ट्रेलर हौ। फिल्म अभी बाकि हौ।'' तभी समाजवादी नेता जोगेंद्र यादव बोकराते हुए दुकान में दाखिल हुए- ''न दायम न बायम देखो, चरित्तर एक मुलायम देखो।''
बनारस अइसहीं चलता है। चलता रहा है और रहेगा। बड़े-बड़े बोकरादी देने वाले दिल्ली, लखनऊ न जाने कहां-कहां चले गए। पर बनारस छूटता है कभी? न छूटेगा। हमें लंठ कहिए, बकलोल कहिए, उजड्ड कहिए, आपकी मर्जी, हम तो ऐसे ही हैं। ऐसे ही रहेंगे। राजा बस एक है राजा बनारस। देव बस एक है महादेव। धर्म ? होंगे कई। दंगों में होते भी हैं कई। पर हमारा धर्म बनारस है। मेरी चाय खतम हो गई थी। प्रो. देवब्रत चौबे भाजपा की हरियरी समझा रहे थे। तभी आम आदमी पार्टी के सदस्य रामानंद राय ने बात काटते हुए कहा कि हमन त सबकर बायो-डाटा आरटीआइ से निकलवा के..। इस पर कांग्रेसी नेता उमाशंकर शुक्ला बिलबिलाए और कहा एक दिन का राजा जब भिश्तीया बनल त चमड़ा का सिक्का चला देहलस, तोहन लोग उंचास दिन में कुछ उखाड़ नाहीं पवला।
रमाशंकर तिवारी ने दलील दी ''अच्छा इ बताव कि दनादन खुलासा करत त हउवा लोग, एको प्रमाण त दे ना सकता लोग। ऐही से पता चलेला कि लौंडो की दोस्ती और ढेले की सनसनाहट।'' प्रो. देवब्रत चौबे ने बीच में चीत्कार लगाई ये तो वही बात हुआ कि मेरे बाप बाघ से लड़ गए, क्या हुआ? बघवा मार के खा गया। मोदी के सामने सब बौनसाई हैं। अशोक पांडेय ने ज्ञानपीठाधीश्वर गुरू की ओर देखते हुए कहा कि कांग्रेस आई, राहुल भाई और सोनिया माई से त्रस्त है।
प्रो. कौशल किशोर मिश्र ने अपनी चुप्पी तोड़ते हुए कहा कि राजनीति के सेंसेक्स में सभी पार्टी धड़ाम हैं, केवल भाजपा ऊंचाई पर है। क्योंकि विजन, विजडम, विनिंग एटीच्यूड केवल भाजपा के पास संरक्षित है। सपा नेता गोपाल यादव ने लगे हाथ कहा कि न्यूयार्क टाइम्स के आप पार्टी में बड़ा दिलचस्पी हौ। कुछ गणित अमेरिका से सेट हौ का। तब तक इस पंचायत से अनजान एक युवा दहाड़ा मुकाबला मोदी और मुख्तार में है, बाकी सब अखबार में है।
उसकी तरफ सब मठाधीश एक नजर फिरायै के फिर बौद्धिक आगे बढ़ा दिए। अशोक पांडेय ने जोगेंद्र यादव को दबेड़ते हुए कहा कि तुम भी मुलायम के सहारे दिल्ली की बैतरणी पार करोगे? अरे ऐतनै दम रहल त काहें नाहीं कूद गईला काशी के अखाड़े में? किनारे-किनारे काहें माटी पोतत हउवा। जवाब में आप के रामानंद राय ने पांडेय को पिनकाया बाभन एही त किए जिंदगी भर जरे, जराए, आग लगाए।
सरोज यादव इस बात पर खिखियाये तो उनकी तरफ मुखातिब होकर पांडेय बोले, 'आधी रोटी तवा में और जनता दल हवा में।' वीरेंद्र श्रीवास्तव का गूढ़ ज्ञान निकला, 'दम नहीं है न मोदी में, वापस जइहैं गोदी में।' इस बात पर जोगेंद्र यादव लपके और बोले कि का बात कहला भइया। इस पर पांडेय चीत्कार किए कि और वइसे भी इस बार बालक, सपा सफा है।
बहुत देर से चुप बैठे उमाशंकर शुक्ला ने जैसे बहस-मुबाहिसे का फैसला सुनाने के अंदाज में ज्ञान बघारा, 'तुम हाफ पैंटिए हवा बांधने में तो माहिर होते हो। कंग्रेसिया सब गिरहकटी में। रही बात मोलायम की। इ त ससुर इस बार कउड़ी के दू हो रहे हैं लिख लो। सैफई में रंगीनी ने इनको मुजफ्फरनगर में नंगा कर दिया। जाएं जरा देवबंद वोट मांगने, छील दी जाएगी।'
रामानंद राय ने फिर आप का झंडा उठाया और बोले कि अरविंद केजरीवाल को हल्के में मत लो। मौका मिलेगा तो रेल देगा। अ मौका मिल रहा है अगर कांग्रेस, अगर सपा, अगर बसपा ने अरबिंदवा को सपोर्ट दे दिया तो तुम्हारे मोदी जी दक्खिन लग जाएंगे। 'अ चच्चा अंसरियो तो है' जोगेंद्र ने बीच में खोदा। राय बोले कि न न मोख्तार न जीत पइहन। करेंगे क्या ये कौम के लिए। अ कर क्या सकते हैं। वसूली? जब भदोही का कालीन उद्योग बंद हो रहा था तब कहां थे मोख्तार? मउ में बनारसी साड़ी, बनारस के जोलाहा भूखे मरने की नौबत तक पहुंच गए। अब मजहबी अफीम नहीं चलेगा गुरू। रोटी दो, सुरक्षा दो, विकास दो अउर वोट लो यही नारा है बस। तो ? मोदी भी तो यही कह रहे हैं। अशोक पांडेय फिर कूदे।
इस बात पर हर तरफ से ठहाके लगे और इसके बाद फिर रमाशंकर तिवारी ज्ञान दिए कि दरअसल राहुल गंधिया, मुलायम सिंह हौ मुलायम, मुख्तार हौ मोदी मुलायम। इ राजनीति हौ गुरू। जे आडवाणी के नाहीं सटे देहलस, जौने राहुल के चुनाव में हरिजन याद आयल खाना खाए बदे। जौन मुलायम सैफई में नंगई में डूबल रहलन उ हम लोगों के लिए कुछ करेंगे? एह राजनीति में कुछ बचल हौ का। छाना-घोटा मस्त रहा।
यही है बनारस। यहां राजनीति और रिश्ते का घालमेल नहीं है। कहा न आपसे बनारसी चढ़ा के उतार देता है। इसलिए राजनीतिक ठगों सावधान। और रही बात दिल्ली में बैठे विद्वानों की तो काशी में संभलकर। यहां ज्ञानी हाथ में बारह हाथ का लउर लिए चलते हैं। खाने को तैयार हों तो उलझे। यहां का नाऊ वाशिंगटन डीसी का इतिहास समझा सकता है। पंडा बराक ओबामा के खानदान के पिंडदान का पूरा लेखा जोखा बता सकता है। खाक भी जहां की पारस है, वह शहर बनारस है।

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