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मांसपेशियों में कमजोरी का हो अनुभव तो 'लोकोमोटिव सिंड्रोम' का हो सकते हैं शिकार

Locomotive Syndrome डॉ.स्वरूप पटेल ने बताया कि लोकोमोटिव सिंड्रोम या चलने-फिरने में असमर्थता यह एक दिन में होने वाली बीमारी नहीं है। इसके लिए हमें पर्याप्त समय मिलता है।

By Sanjay PokhriyalEdited By: Published: Tue, 21 Jan 2020 12:59 PM (IST)Updated: Thu, 23 Jan 2020 06:56 AM (IST)
मांसपेशियों में कमजोरी का हो अनुभव तो 'लोकोमोटिव सिंड्रोम' का हो सकते हैं शिकार
मांसपेशियों में कमजोरी का हो अनुभव तो 'लोकोमोटिव सिंड्रोम' का हो सकते हैं शिकार

नई दिल्‍ली [जागरण स्‍पेशल]। मनुष्य के शरीर में चलने-फिरने की गति में होने वाली समस्या को लोकोमोटिव सिंड्रोम कहा जाता है। मनुष्य शरीर को चलने-फिरने के लिए शरीर के अनेक अंगों के बीच उचित तालमेल बनाना पड़ता है, जिनमें प्रमुख रूप से पैरों, कूल्हों एवं रीढ़ की हड्डियां और घुटने आदि शामिल हैं। शरीर के मूवमेंट को नियंत्रित करने के लिए सशक्त मांसपेशियों एवं नसों की आवश्यकता होती है। उपरोक्त अंगों के तालमेल से ही मानव शरीर दोनों पैरों पर सामान्य रूप से चल पाता है। जानें क्‍या कहते है वाराणसी के मशहूर आर्थो सर्जन डॉ.स्वरूप पटेल

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सिंड्रोम के लक्षण

शरीर में बदलाव

मानव शरीर में उम्र बढ़ने के साथ कुछ बदलाव शुरू हो जाते हैं, जिन्हें डीजेनेरेटिव चेंज कहते हैं। जैसे ऑस्टियोपोरोसिस, ऑस्टियोअर्थराइटिस, रीढ़ की हड्डी में लंबर कैनाल स्टेनोसिस या कूल्हे की मांसपेशियों का संकुचित होना या उन पर दबाव पड़ना आदि। ये एक प्रकार के मानसिक विकार होते है जो उम्र बढ़ने के साथ मस्तिष्क में हुए बदलाव के कारण होते हैं। ये डीजेनेरेटिव बदलाव मानव शरीर में लगभग 40 वर्ष की उम्र के साथ शुरू हो जाते हैं।

क्यों आवश्यक है जानकारी

वर्तमान समय में देश में 40 वर्ष से कम उम्र की जनसंख्या चरम पर है और भविष्य में यह युवा जनसंख्या मध्यम आयु सीमा में आ जाएगी और इस स्थिति में डीजेनेरेटिव प्रक्रिया प्रारंभ हो जाती है। यदि हम इस समस्या को तत्काल प्रभाव से नहीं समझते तो इसके दुष्प्रभावों के लिए हमें तैयार होना पड़ेगा। उदाहरण के लिए जापान जैसे विकसित देश में जहां की अधिकांश जनसंख्या मध्यम आयु एवं वृद्धावस्था की ओर अग्रसर है, उन्हें अनेक प्रकार की आर्थिक एवं सामजिक समस्याओं से जूझना पड़ रहा है। एक शोध के अनुसार पता चला है कि जो व्यक्ति न चलने-फिरने के कारण एक सीमित दायरे में रह जाते हैं, उनका मानसिक संतुलन कमजोर हो जाता है। इसलिए शरीर को स्वस्थ व चलता-फिरता रखें।

समय से पहचानें लक्षण

वाराणसी के आर्थो सर्जन डॉ.स्वरूप पटेल ने बताया कि लोकोमोटिव सिंड्रोम या चलने-फिरने में असमर्थता यह एक दिन में होने वाली बीमारी नहीं है। इसके लिए हमें पर्याप्त समय मिलता है। समय से इसके लक्षणों की पहचान कर उचित परामर्श लेकर विशेषज्ञ डॉक्टर से समुचित इलाज कराना चाहिए। नियमित योग, मेडिटेशन, एक्सरसाइज, संतुलित आहार हमारी मांस पेशियों को तंदुरुस्त रखते हैं और हम लोकोमोटिव सिंड्रोम को लंबे समय तक टाल सकते हैं।

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