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    कोलकाता में थमने वाली है 152 साल पुराने ट्रामों की रफ्तार, सरकार ने लिया बंद करने का निर्णय

    Updated: Mon, 29 Dec 2025 08:27 PM (IST)

    कोलकाता में 152 साल पुरानी ट्राम सेवा जल्द ही थमने वाली है। सरकार ने इस ऐतिहासिक परिवहन प्रणाली को बंद करने का निर्णय लिया है। यह फैसला शहर के सार्वजन ...और पढ़ें

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    कोलकाता की 152 साल पुरानी ट्राम सेवा पर लगेगा विराम (फाइल फोटो)

    राज्य ब्यूरो, जागरण, कोलकाताः कोलकाता की सड़कों पर पिछले डेढ़ सौ सालों से गूंजने वाली ट्राम की घंटियां अब हमेशा के लिए खामोश होने की कगार पर हैं। एशिया के इस सबसे पुराने ट्राम नेटवर्क को आधुनिकता की दौड़ और यातायात के बढ़ते दबाव के कारण बंद करने की तैयारी कर ली गई है।

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    बंगाल सरकार ने हाल ही में इस ऐतिहासिक परिवहन सेवा को पूरी तरह समाप्त कर केवल एक छोटा 'हेरिटेज रूट' (विरासत मार्ग) बनाए रखने का निर्णय लिया है। यह खबर उन लाखों लोगों के लिए भावुक कर देने वाली है, जिनके लिए ट्राम सिर्फ एक सवारी नहीं, बल्कि शहर की पहचान का अभिन्न हिस्सा रही है।

    1873 में शुरू हुआ था सफर

    ट्राम का सफर 1873 में घोड़ों द्वारा खींची जाने वाली बग्घियों से शुरू हुआ था, जो 1902 में बिजली से चलने वाले आधुनिक रूप में बदलीं। अपने स्वर्णिम दौर में इस नेटवर्क के पास 340 से अधिक ट्रामें थीं, जो पूरे शहर को एक सूत्र में पिरोती थीं। लेकिन आज बदलते वक्त के साथ इसकी चमक फीकी पड़ गई है।

    अब शहर की सड़कों पर महज 10 से कम ट्रामें बची हैं और अधिकांश डिपो बेचे जा चुके हैं या कबाड़ में तब्दील हो रहे हैं। प्रशासन का तर्क है कि धीमी गति से चलने वाली ट्रामें आधुनिक महानगर के ट्रैफिक जाम और तेज रफ्तार की जरूरतों के बीच फिट नहीं बैठतीं, इसलिए अब मेट्रो और चौड़ी सड़कों पर ध्यान दिया जा रहा है। हालांकि, इस फैसले का चौतरफा विरोध भी हो रहा है।

    कोलकाता की रूह का हिस्सा है ट्राम

    'कलकत्ता ट्राम यूजर्स एसोसिएशन' जैसे नागरिक समूह इस विरासत को बचाने के लिए कानूनी लड़ाई लड़ रहे हैं। स्थानीय निवासियों का मानना है कि ट्राम न केवल प्रदूषण मुक्त परिवहन है, बल्कि कोलकाता की रूह का हिस्सा भी है। 19 साल के युवाओं से लेकर 36 साल तक सेवा देने वाले कंडक्टरों तक, हर कोई इसे शहर के शरीर से अलग होते एक अंग की तरह देख रहा है।

    फिलहाल ट्राम का भविष्य अदालत के फैसले पर टिका है, लेकिन आधुनिकीकरण की आंधी में इस ऐतिहासिक सवारी का अस्तित्व अब आखिरी सांसें गिनता नजर आ रहा है।