जानें कौन है तालिबान, क्या है उनका मदरसों से बड़ा लिंक, इनके उभार में सऊदी अरब और पाक का बड़ा रोल
दरअसल तालिबान का अस्तित्व 1990 के दशक में उत्तरी पाकिस्तान में हुआ था। यह वह वक्त था जब अफगानिस्तान में तत्कालीन सोवियत संघ की सेना वापस जा रही थी। सोवियत सैनिकों की वापसी के बाद अफगानिस्तान में तालिबान का वर्चस्व बढ़ता गया।
नई दिल्ली, ऑनलाइन डेस्क। पश्तो जुबान में छात्रों को तालिबान कहा जाता है। नब्बे के दशक की शुरुआत में जब सोवियत संघ अफग़ानिस्तान से अपने सैनिकों को वापस बुला रहा था, उसी दौर में तालिबान का उभार हुआ। यह माना जाता है कि पश्तो आंदोलन पहले धार्मिक मदरसों में उभरा और इसके लिए सऊदी अरब ने आर्थिक मदद मुहैया कराई थी। इस आंदोलन में सुन्नी इस्लाम की कट्टर मान्यताओं का प्रचार किया जाता था। अफगानिस्तान की जमीन को दशकों से जंग का मैदान बनाकर रखने वाले तालिबान अत्यधिक शक्ति अर्जित कर ली है।
1990 के दशक में उत्तरी पाकिस्तान में हुआ तालिबान का अस्तित्व
दरअसल, तालिबान का अस्तित्व 1990 के दशक में उत्तरी पाकिस्तान में हुआ था। यह वह वक्त था, जब अफगानिस्तान में तत्कालीन सोवियत संघ की सेना वापस जा रही थी। सोवियत सैनिकों की वापसी के बाद अफगानिस्तान में तालिबान का वर्चस्व बढ़ता गया। तालिबान ने कंधार शहर का अपना पहला केंद्र बनाया। आज तालिबान ने वापस कंधार शहर की कमान अपने हाथ में ले ली है। अफगानिस्तान की जमीन कभी सोवियत संघ के हाथ में थी और 1989 में मुजाहिदीन ने उसे बाहर का रास्ता दिखा दिया। इसी मुजाहिदीन का कमांडर बना पश्तून आदिवासी समुदाय का सदस्य मुल्ला मोहम्मद उमर। उमर ने आगे चलकर तालिबान की स्थापना की।
बुरहानुद्दीन रब्बानी को सत्ता से हटाया
तालिबान ने उस वक्त अफगानिस्तान के राष्ट्रपति रहे बुरहानुद्दीन रब्बानी को सत्ता से हटा दिया था। रब्बानी सोवियत सैनिकों के अतिक्रमण का विरोध करने वाले अफगान मुजाहिदीन के संस्थापक सदस्यों में थे। वर्ष 1998 तक करीब 90 अफगानिस्तान पर तालिबान का नियंत्रण हो गया था। सोवियत सैनिकों के जाने के बाद अफग़ानिस्तान के आम लोग मुजाहिदीन की ज्यादतियों और आपसी संघर्ष से ऊब गए थे। इसलिए पहले पहल तालिबान का स्वागत किया गया। भ्रष्टाचार पर अंकुश, अराजकता की स्थिति में सुधार, सड़कों का निर्माण और नियंत्रण वाले इलाक़े में कारोबारी ढांचा और सुविधाएं मुहैया कराना-इन कामों के चलते शुरुआत में तालिबानी लोकप्रिय भी हुए।
तालिबानी फरमानों का सिलसिला
शुरुआत में अफगानिस्तान में तालिबान का स्वागत और समर्थन किया गया। यह माना गया कि तालिबान देश में व्याप्त भ्रष्टाचार और पटरी से उतर चुकी अर्थव्यवस्था को ठीक कर देंगे। तालिबान ने फिर धीरे-धीरे कड़े इस्लामिक नियम लागू किए। चोरी से लेकर हत्या तक के दोषियों को सरेआम मौत की सजा दी जाने लगी। समय के साथ रुढ़िवादी कट्टरपंथी नियम थोपे जाने लगे। टीवी और म्यूजिक को बैन कर दिया गया, लड़कियों को स्कूल जाने से मना कर दिया गया, महिलाओं पर बुर्का पहनने का दबाव बनने लगा।
तालिबान के इस्लामिक तौर तरीकों से उकताए लोग
इस दौरान तालिबान ने सजा देने के इस्लामिक तौर तरीकों को लागू किया। इसमें हत्या और व्याभिचार के दोषियों को सार्वजनिक तौर पर फांसी देना और चोरी के मामले में दोषियों के अंग भंग करने जैसी सजाएं शामिल थीं। अफगानिस्तान में पुरुषों के लिए दाढ़ी और महिलाओं के लिए पूरे शरीर को ढकने वाली बुर्के का इस्तेमाल अनिवार्य कर दिया गया था। तालिबान ने टेलीविजन, संगीत और सिनेमा पर पाबंदी लगा दी और 10 साल और उससे अधिक उम्र की लड़कियों के स्कूल जाने पर रोक लगा दी।
अमेरिका से उलझा तालिबान
अमेरिका के वर्ल्ड ट्रेड सेंटर पर आतंकी हमले के बाद तालिबान दुनिया की नजरों में अया। अलकायदा सरगना ओसामा बिन लादेन 11 सितंबर, 2001 के अमेरिका में आतंकी हमले की योजना बना रहा था, तब तालिबान ने उसे पनाह दे रखी थी। हमले के अमेरिका ने तालिबान से लादेन को सौंपने के लिए कहा था, लेकिन तालिबान ने साफ इन्कार कर दिया। इसके बाद अमेरिका ने अफगानिस्तान में घुसकर मुल्ला ओमार की सरकार को गिरा दिया। ओमार और बाकी तालिबानी नेता पाकिस्तान भाग गए। यहां उन्होंने फिर से अफगानिस्तान लौटने की तैयारी शुरू कर दी।
इस संगठन में 85 हजार लड़ाके शामिल
यह दावा किया गया है कि तालिबान पहले से ज्यादा मजबूत होकर उभरा है। इस संगठन में 85 हजार लड़ाके शामिल हैं। अफगानिस्तान का कितना हिस्सा पूरी तरह से उनके हाथ में है, यह समझना मुश्किल है लेकिन यह 20-30 फीसद तक हो सकता है। करीब 20 साल तक जंग के बाद अमेरिका जैसी महाशक्ति ने भी अपने हाथ यहां से वापस खींच लिए है। मुमकिन है तालिबान इसे अपनी जीत समझ रहा है। इसीलिए ताबड़तोड़ हिंसा मचाते हुए आगे बढ़ता जा रहा है।
तालिबान सरकार को मान्यता देने वाले देश
पाकिस्तान दुनिया के उन तीन देशों में शामिल था, जिसने तालिबान सरकार को मान्यता दी थी। पाकिस्तान के अलावा सऊदी अरब और संयुक्त अरब अमीरात ने भी तालिबान सरकार को मान्यता दिया था।