5000 साल से इस स्वाद का दीवाना है संसार, चीन के इस सीक्रेट को भारत ने दुनिया तक पहुंचाया
चाय से लेकर इसके आइस टी बनने तक का पूरा सफर वैज्ञानिको खोजों की जगह इतिहास की घटनाओं पर आधारित है। अकेले भारत में 50 तरह की चाय पैदा होती है और इसकी 12 तरह की रेसिपी है।
नई दिल्ली [जागरण स्पेशल]। ‘एक कली दो पत्तियां, नाजुक नाजुक उंगलियां, तोड़ रही हैं कौन, ये एक कलि दो पत्तियां, रतनपुर बागीचे में।’ मशहूर संगीतकार भूपेन हजारिका की ये कविता जितनी प्रसिद्ध है, उससे कहीं ज्यादा प्रसिद्ध है इन दो पत्तियों और एक कली के संयोजन से बना पेय। पानी के बाद ये दुनिया में सबसे ज्यादा पीया जाने वाला पेय है। इसके इतने स्वाद हैं कि शायद ही किसी ने सबको चखा हो। कई वर्षों तक ये पेय चीन का एक रहस्य था, जिसे चुराने के लिए अंग्रेजों को बकायदा जासूस की मदद लेनी पड़ी। जासूस की मदद से ये पेय भारत पहुंचा। इसके बाद भारत से आज ही के दिन चाय इंग्लैंड पहुंची और इस तरह से पूरी दुनिया चाय की चुस्की से रूबरू हुई।
जी हां, यहां हम बात कर रहे हैं चाय की। सुबह की नींद दूर करनी हो या शाम को दिन भर की थकान, चाय की चुस्की में वो जादू है जो हर पल को ताजगी प्रदान करने की क्षमता रखता है। चाय के चीन से भारत पहुंचने और फिर दुनिया के कोने-कोने तक फैलने की कहानी तकरीबन 5000 साल पुरानी है। तब तक चाय, चीन का ऐसा रहस्य था, जिसे दुनिया से बचाने के लिए वह हर संभव प्रयास कर रहा था। ऐसे वक्त में अंग्रेजों ने अपने एक जासूस को चीन भेजा।
भारत में असफल हो गई थी जासूस की मेहनत
उसने लंबे समय तक चीन में चाय के लिए जासूसी की। इसके बाद चाय के बीज और चाय बागान में काम करने वाले कुछ मजदूरों को भारत भेजा। उनकी मदद से भारत के असम राज्य में चाय की खेती शुरू हुई। हालांकि इस दौरान एक समस्या खड़ी हो गई, जिसका पहले अनुमान नहीं लगाया गया था। चीन में चाय की खेती बेहद ठंडे वातावरण में होती थी। लिहाजा वहां से लाए गए बीजों से पौधे तैयार हुए, वो असम की गर्मी बर्दाश्त नहीं कर सके और सूख गए।
ऐसे सामने आयी भारतीय चाय
इसी दौरान अंग्रेजों को स्थानीय लोगों की मदद से असम में उगने वाले एक जंगली पौधे के बारे में पता चला। उसकी पत्तियां, चाय की पत्तियों से मिलती-जुलती थीं। कुछ स्थानीय लोग इन पत्तियों का स्वाद ले चुके थे और उन्हें ये बेहद पसंद आया था। बताया जाता है कि इस भारतीय चाय का स्वाद चीन की चाय से भी बेहतरीन था। लिहाजा अंग्रेजों ने उस पौधे के जरिए चाय के बागान तैयार करवाए। इस तरह भारत में चीन से बेहतर चायपत्ती तैयार होने लगी।
5000 साल पहले ऐसे हुई थी चाय की खोज
चीन की खोज किसी वैज्ञानिक ने नहीं, बल्कि इतिहास की तकरीबन 5000 साल पुरानी एक घटना ने की थी। उस वक्त चीन के सम्राट शेन नुग्न थे, वह खुद को स्वस्थ रखने के लिए रोजाना गर्म पानी पीते थे। एक दिन उनके गर्म पानी में कुछ पत्तियां गिर गईं। इससे पानी का रंग बदल गया और उससे खुशबू आने लगी। सम्राट ने जब उस पानी को पिया तो उन्हें गजब की ताजगी महसूस हुई। इस तरह से चाय की खोज हुई। इसके बाद सम्राट ने अपने राज्य में सभी को इन चाय की पत्तियों को उबालकर पीने की सलाह दी। इसके बाद ये पेय पूरे चीन का पसंदीदा बन गया।
बौद्ध भिक्षुओं ने भी अपना लिया
चाय चीन में प्रसिद्ध होने के बाद उन्होंने विदेशियों का स्वागत भी इसी पेय से करना शुरू कर दिया। इस तरह चाय का स्वाद तो चीन के बाहर चला गया, लेकिन उसकी रेसिपी चीन ने कई वर्षों तक गोपनीय रखी। चाय पूरी तरह से प्राकृतिक तरीके से तैयारी होती है, लिहाजा चीन के निवासियों के बाद बौद्ध भिक्षुओं ने भी इसका सेवन शुरू कर दिया। इससे उन्हें लंबे समय तक नींद नहीं आती थी और वह सही से ध्यान लगा पाते थे।
चाय के भारत पहुंचने की एक और कहानी
अंग्रेजी जासूस द्वारा चीन से चाय को चोरी कर भारत लाने और फिर यहां पर उसी तरह के चाय के पौधे की पहचान होने की कहानी के इतर, इसके भारत पहुंचने की एक और कहानी है। बताया जाता है कि बौद्ध शिक्षा से प्रभावित होकर जैन धर्म के संस्थापक महावीर ने ध्यान करना शुरू कर दिया। जैन धर्म की स्थापना करने से पहले बौद्ध भिक्षुओं से ध्यान के गुण सीखने के दौरान महावीर को चाय की पत्तियों के बारे में पता चला। इसके बाद असम के जंगलों में साधना करने के दौरान उन्होंने वहां उसी तरह के चाय के पौधों को खोज निकाला। उन्होंने जंगल में करीब सात वर्ष तक ध्यान लगाया। इस दौरान वह चाय की पत्तियों को चबाया करते थे। इससे उन्हें नींद नहीं आती थी और वह बिना भोजन के भी ध्यान करने में सक्षम रहे। माना जाता है कि इस तरह बौद्ध भिक्षुओं के जरिए असम की आम जनता तक चाय के रहस्यमयी गुण पहुंचे।
भारत से विदेशों का सफर
चीन की चाय की खोज जब भारत में हो गई, तो अंग्रेजों ने दक्षिण भारत और पूर्वोत्तर में इसकी बड़े पैमाने पर खेती शुरू कराई। माना जाता है कि भारत में चाय की खोज 1834 में गवर्नर लॉर्ड विलियम बैंटिक ने असम के जंगलों में कराई थी। एक साल बाद 1835 में उन्होंने असम से चाय की आपूर्ति इंग्लैंड में शुरू कर दी। बताया जाता है कि 10 जनवरी 1835 को भारत से चाय की पहली खेप इंग्लैंड पहुंची थी। इससे पहले तक इंग्लैंड चाय के लिए केवल चीन पर निर्भर रहता था। इसके लिए उन्हें बड़ी कीमत चुकानी पड़ती थी। चीन को जब इसका पता चला तो उन्होंने अंग्रेजों से व्यापारिक समझौता कर चाय के बीज भी दिए, जिनसे पूर्वोत्तर के ठंडे इलाकों में बागान तैयार कराए गए। पूर्वोत्तर में इन बीजों ने चीन से बेहतर चाय पैदा की। इसके बाद भारतीय बाजार से चाय का स्वाद पूरी दुनिया में फैल गया।
ऐसे बना टी बैग
अंग्रेज 1947 में भारत से वापस चले गए, लेकिन चाय का कारोबार जारी रहा। 1953 में भारत में टी बोर्ड का गठन हुआ, जिससे भारतीय चाय को विदेश तक पहुंचाना आसान हो गया। आज दुनिया में भारत सबसे बड़ा चाय निर्माता है, जिसकी 70 फीसद खपत अकेले भारत में होती है। खानपान में सफाई की वजह से अंग्रेजों को पसंद नहीं था कि कोई चाय की पत्तियों को हाथ लगाए। लिहाजा उन्होंने धातु की डिब्बी में चाय की पत्तियों को सहेजना शुरू किया। इसे गर्म पानी के कप में डालते ही चाय तैयार हो जाती थी, लेकिन समस्या डिब्बी को निकालते वक्त होती थी। इसके बाद अंग्रेजों के खानसामों ने अपना दिमाग लगाकर गोंदी से कागज के टी-बैग इजाद किए। गरम पानी में पड़ने पर इन टी-बैग का गोंद गलने लगता था, जिससे चाय का स्वाद खराब हो जाता था। इसके बाद 1901 में दो महिलाओं रोबेर्टा सी लॉओन और मैरी मार्कलेन ने कॉटन के साथ कपड़ों की छोटी-छोटी थैली सिलकर बनानी शुरू की। इन्ही थैलियों में चाय भरी जाती थी। इस तरह पहली बार आधुनिक टी बैग का निर्माण किया गया था। इसके बाद 1930 में विलियम हॉरमनसोन ने पहली बार कागज वाले टी बैग बनाए। ये हल्के और सस्ते थे।
भारत में 50 से ज्यादा किस्म की चाय
आज भारत के हिमाचल, दार्जिलिंग व तमिलनाडू आदि जगहों की चाय पूरी दुनिया में आपूर्ति होती है। भारत में तकरीबन 50 से ज्यादा किस्म की चाय उगाई जाती है। इन्हें तैयार करने की भी दर्जनों रेसिपी हैं। खास बात ये है कि भारतीय चाय के पाउडर से दवाएं भी बनती हैं। चाय से हर्बल कैप्सूल बनाए जाते हैं। ये शरीर में रोग प्रतिरोधक क्षमता (इम्युनिटी सिस्टम) को ठीकर करने में मददगार है।
ऐसे हुआ आइस टी का अविष्कार
चाय की तरह ही आइस टी की खोज भी इतिहास की एक घटना से हुई। 1940 की गर्मियों में अमेरिका के मिसोरी में एक चायवाला चाय बेच रहा था। गर्मी की वजह से उसकी चाय बिक नहीं रही थी। उसे एक खुराफात या कहें दिल्लगी सूझी। वह पास में आइसक्रीम बेच रहे एक व्यक्ति से कुछ बर्फ ले आया। इसके बाद उसने चाय में बर्फ डालकर कुछ ग्राहकों को दे दिया। उसे बिल्कुल अंदाजा नहीं था कि बर्फ डली चाय का स्वाद ग्राहकों को पसंद आएगा, लेकिन एक दिन में ही उसकी आइस टी (कोल्ड टी) प्रसिद्ध हो गई।
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