जानें लिंगायत समुदाय के संस्थापक बसवन्ना को जिनसे प्रेरित हो मठ की राह चला मुस्लिम युवक
कर्नाटक के लिंगायत मठ ने धर्मनिरपेक्षता का उदाहरण पेश करते हुए मुस्लिम युवक को पुजारी बनाया जो लिंगायत समुदाय के संस्थापक बसवन्ना से प्रेरित है। जानें कौन थे बसवन्ना-
नई दिल्ली, जागरण स्पेशल। हिंदू ब्राह्मण समुदाय के अंधविश्वासों को दरकिनार कर संप्रदाय का स्थापना करने वाले बसवन्ना से प्रेरित होने वाले मुस्लिम युवक दीवान शरीफ रहीमनसाब मुल्ला को लिंगायत मठ ने पुजारी का स्थान दिया है। मुल्ला इस पद पर 26 फरवरी से आसीन होंगे। उल्लेखनीय है कि कर्नाटक की राजनीति से लिंगायत समुदाय का गहरा नाता है क्योंकि राज्य की विधानसभा की 224 सीटों में से 80 सीटों पर लिंगायत समुदाय का प्रभुत्व है। यह समुदाय हिंदू धर्म से अलग एक धर्म की मान्यता की मांग करता रहा है। दक्षिण कर्नाटक, आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, महाराष्ट्र और केरल तक प्रभावशाली लिंगायत समुदाय माना जाता है।
विशेष बात यह है कि मुल्ला विवाहित हैं और तीन बच्चों के पिता भी हैं जबकि मठ में पुजारी के लिए यह शर्त है कि वह गृहस्थ नहीं हो सकता।
ब्राह्मण परिवार में बसवन्ना का जन्म
कर्नाटक में लिंगायत धर्म के प्रणेता बसवन्ना का जन्म ब्राह्मण परिवार में हुआ था लेकिन वहां मौजूद अंधविश्वासों को देखते हुए उन्होंने नए संप्रदाय ‘लिंगायत’ की स्थापना की। इसके अंतर्गत तमाम वैसी चीजों को रखा जो धर्म के नाम पर अंधविश्वास वाले कामों के लिए मजबूर न करे। दरअसल, ब्राह्मण समुदाय के बासव ने बचपन से ही माता-पिता को अंधविश्वासों का पालन करते देखा। इसके बाद ही उन्हें इस बात की जरूरत महसूस हुई और उन्होंने नए संप्रदाय के गठन का फैसला ले लिया। बस फिर क्या था उन्होंने हिंदू धर्म से बुराइयों को नहीं उठाया केवल अच्छी बातें लेकर अपने नए संप्रदाय का गठन कर लिया।
‘आओ बासव आओ’
जन्म के बाद आमतौर पर बच्चे रोते हैं लेकिन बसवन्ना तो पैदाइशी जुदा थे, वे न रोए न हिले डुले। ऐसा देख सब घबरा गए और संत ईश्नाया गुरु को बुलाया। गुरु ईश्नाया ने नवजात शिशु को गुनगुने पानी में सूती कपड़े को गीला किया और बच्चे का चेहरा पोंछ माथे पर भस्म लगा दिया। इसके बाद रुद्राक्ष और शिवलिंग की माला पहनाया। साथ ही बच्चे के कान में पंचाक्षरी मंत्र पढ़ा। उन्होंने बोला 'आओ बासव, आओ।' पुकार सुनते ही बसवन्ना मुस्कुराए और माता-पिता की ओर देखा।
दिया था नारा- ‘ईश्वर एक है’
ईश्वर एक है का नारा देने वाले बसवन्ना का जन्म कर्नाटक के बागेवाड़ी जिले में हुआ था। उनके माता-पिता मदारासा और मदालंबे कर्नाटक के कम्मे ब्राह्मण थे। बता दें कि कम्मे ब्राह्मण शैव संप्रदाय के होते हैं जो भगवान शिव की भक्ति करते हैं। ऐसा कहा जाता है कि 1131 में कार्तिक शुद्ध पूर्णिमा की आधी रात को बसवन्ना का जन्म हुआ था। उनकी इच्छा के विरुद्ध 8 वर्ष की उम्र में यज्ञोपवीत संस्कार हुआ जिसे बीच में ही छोड़ वे ईशान्या गुरु की शरण में पहुंच गए। वहीं उन्होंने तमाम कर्म-कांड, धर्म, वेद, उपनिषद और ग्रंथों की शिक्षा ली।
ईशान्य गुरुकुल से शिक्षा लेने के बाद वे राजा के दरबार में लग गए लेकिन हिंदू धर्म की कुछ बातें उन्हें भीतर ही भीतर सालती रहीं। वहां की वर्ण-व्यवस्था से वे दुखी थे। इसका उन्होंने खुलकर विरोध किया साथ ही नारी जाति के लिए समानता की आवाज उठाई। इसके अलावा धार्मिक आडंबर व अंधविश्वासों का विरोध किया।
लिंगायत संप्रदाय में प्रवेश की शर्तें
- अहंकार से दूरी
- त्याग दें चोरी का विचार
- दुख से दूर न भागें करें सामना
- हत्या की सख्त मनाही
- एक दूसरे के लिए सहयोग की भावना
- क्रोध से मुक्ति
- झूठ का छोड़ दें साथ
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