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    लिंगायत मठ में पुजारी के पद पर मुस्लिम युवक, दे रहा धर्मनिरपेक्षता का संदेश

    By Monika MinalEdited By:
    Updated: Thu, 20 Feb 2020 11:08 AM (IST)

    कर्नाटक के लिंगायत मठ का कमान एक मुस्लिम युवक के हाथों में सौंप दिया गया है जो 26 फरवरी से मठ के पुजारी का पद संभालेंगे।

    लिंगायत मठ में पुजारी के पद पर मुस्लिम युवक, दे रहा धर्मनिरपेक्षता का संदेश

    हुबली, एएनआइ। उत्‍तरी कर्नाटक के गडग जिले में लिंगायत मठ (Lingayat Math) का नेतृत्‍व मुस्लिम युवक दीवान शरीफ रहीमनसाब मुल्‍ला (Diwan Sharief Rahimansab Mulla) को सौंपा गया है। 33 वर्षीय मुल्‍ला 26 फरवरी को समुदाय का कमान संभालेंगे। श्री मुरुगाराजेंद्र कोरोनेश्‍वर स्‍वामी ने कहा, ‘आप किस जाति से हैं यह मायने नहीं रखता। यदि भगवान आपके अच्‍छाइ व त्‍याग की राह में आते हैं तो जन्‍म व जाति को लेकर मनुष्‍यों द्वारा बनाए गए बंधन बेकार हैं।’ मुल्‍ला ने बताया क‍ि वे 12वीं सदी के बसवन्‍ना  की सीखों से वे प्रेरित है और बचपन से ही सामाजिक न्‍याय व सौहाद्र के लिए काम कर रहे हैं।

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    टाइम्‍स ऑफ इंडिया में प्रकाशित खबर के अनुसार, आसुत‍ि गांव के मुरुघराजेंद्र कोरानेश्‍वर शांतिधाम मठ के पुजारी के तौर पर मुल्‍ला की नियुक्ति की गई है। मुख्‍य बात यह है कि मुल्‍ला के पिता ने सालों पहले इस मठ के लिए दो एकड़ जमीन दान में दी थी। यह दान उन्‍होंने आसुति में शिवयोगी के प्रवचनों से प्रभावित होने के बाद दिया था। शिवयोगी ने बताया कि आसुति मठ का निर्माण कार्य जारी है।

    एशियानेट के अनुसार, मुल्‍ला भी बसवन्‍ना की तरह मानते हैं कि ईश्‍वर एक है। आसुति गांव स्थित मुरुगराजेंद्र कोरानेश्वरा शांतिधाम मठ में मुल्‍ला को पुजारी का पद सौंपा गया है। कलबुर्गी के खजुरी गांव के 350 साल पुराने कोरानेश्वर संस्थान मठ से जुड़े इस शांतिधाम मठ के लिए खजूरी मठ के पुजारी मुरुगराजेंद्र कोरानेश्वर शिवयोगी ने कहा, 'बसवन्‍ना का दर्शन सार्वभौमिक है और हम अनुयायियों को जाति और धर्म की विभिन्नता के बावजूद गले लगाते हैं। उन्होंने 12वीं शताब्दी में सामाजिक न्याय और सद्भाव का सपना देखा था और उनकी शिक्षाओं का पालन करते हुए, मठ ने सभी के लिए अपने दरवाजे खोल दिए हैं।'

    आसुति में शिवयोगी के प्रवचनों से प्रभावित होकर शरीफ के पिता स्वर्गीय रहिमनसब मुल्ला ने गांव में एक मठ स्थापित करने के लिए जमीन दान की थी। शिवयोगी ने कहा, 'मुल्‍ला बसवन्‍ना के दर्शन के प्रति समर्पित हैं। उनके पिता ने भी हमसे 'लिंग दीक्षा' ली थी। 10 नवंबर, 2019 को शरीफ ने 'दीक्षा' ली। हमने उन्हें पिछले तीन वर्षों में लिंगायत धर्म और बासवन्ना की शिक्षाओं के विभिन्न पहलुओं को लेकर प्रशिक्षित किया है।'

    मुल्‍ला ने आगे बताया, ‘मैं पास के मेनासगी गांव में आटा चक्की चलाता था और अपने खाली समय बसवन्ना और 12वीं शताब्दी के अन्य साधुओं द्वारा लिखे गए प्रवचनों के प्रसार के साथ व्‍यतीत करता था। मुरुगराजेंद्र स्वामीजी ने मेरी इस छोटी सेवा को पहचान लिया और मुझे अपने साथ ले लिया। मैं बसवन्ना और मेरे गुरु द्वारा प्रचारित उसी रास्ते पर आगे बढ़ूंगा।'

    मुल्‍ला विवाहित हैं। वे तीन बेटियों व एक बेटे के पिता हैं। लिंगायत मठों में गृहस्‍थ को पुजारी के तौर पर नियुक्‍त नहीं किया जाता है। लेकिन मुल्‍ला का मामला जुदा है। शिवयोगी ने कहा, 'लिंगायत धर्म संसार  के माध्यम से सद्गति में विश्वास करता है। पारिवारिक व्यक्ति एक स्वामी बन सकता है और सामाजिक तथा आध्यात्मिक कार्य कर सकता है।' उन्होंने कहा, 'मठ के सभी भक्तों के समर्थन से पुजारी के पद को मुल्‍ला को सौंपा गया है।’