नई दिल्ली, पीटीआई। केंद्रीय विधि एवं न्याय मंत्री किरेन रिजिजू ने गुरुवार को तिब्बतियों के धर्मगुरु दलाई लामा को शांति का दूत बताया। उन्होंने कहा कि तिब्बतियों के हितों के लिए महत्वपूर्ण योगदान देने की जरूरत है। तिब्बती बौद्ध नववर्ष पर एक कार्यक्रम को संबोधित करते हुए उन्होंने कहा कि भारत सरकार की कल्याणकारी योजनाओं को देश के विभिन्न हिस्सों में रह रहे तिब्बती समुदाय तक भी पहुंचाने की जरुरत है।
दलाई लामा को बताया शांति दूत
किरेन रिजिजू ने कहा कि तिब्बती लोग जानबूझकर कभी भारत के लिए कोई समस्या खड़ी नहीं करते हैं। वे बहुत शांतिप्रिय लोग हैं और इसके साथ ही दलाई लामा शांति के दूत हैं। वे ऐसे व्यक्ति हैं जिन्हें दुनियाभर से प्रेम और सम्मान मिलता है। अतीत में चीन दलाई लामा को ‘साधू की पोशाक में भेड़िया’, ‘दोहरा व्यापारी’ और ‘अलगाववादी नेता’ कह चुका है। चीन मानता है कि दलाई लामा तिब्बत को चीन से अलग करवाना चाहते हैं। दलाई लामा के लंबे और स्वस्थ जीवन की कामना करते हुए रिजिजू ने कहा कि उनके विचारों का व्यापक तौर पर सम्मान किया जाता है और पूरी दुनिया में उन्हें स्वीकार किया जाता है।
तिब्बत शरणार्थी नीति की होनी चाहिए समीक्षा
रिजिजू ने कहा कि भारत सरकार को समय-समय पर अपनी तिब्बत शरणार्थी नीति की समीक्षा करनी चाहिए ताकि तिब्बत से विस्थापित समुदाय के जीवन को सरल किया जा सके। दिल्ली के मजनू का टीला क्षेत्र में हुए कार्यक्रम में उन्होंने कहा हमें तिब्बती लोगों के लिए मजबूती से सहयोग करना चाहिए। एक दिन आप उस वहां शांति और आत्मसम्मान के साथ जीवन व्यतीत कर सकेंगे।
मोदी सरकार ने किया तिब्बती शरणार्थी नीति में संशोधन
उन्होंने कहा कि बहुत से तिब्बती लोग दुनिया के अलग-अलग हिस्सों में रह रहे हैं और उनमें से बहुत से भारत से गए हैं। वे जहां भी रहे उन्होंने अपनी तिब्बती परंपरा को संजोए रखा और अपनी जड़ों को नहीं भूले। उन्होंने हमेशा दलाई लामा को सम्मान दिया। उन्होंने कहा मोदी सरकार ने तिब्बती शरणार्थी नीति में संशोधन किया है और वो पहले ऐसे केंद्रीय मंत्री हैं जो भारत में रहने वाले तिब्बतियों की बहुत सी बस्तियों में गए हैं।
दुनिया शांति चाहती है
इस कार्यक्रम को संबोधित करते हुए आरएसएस के नेता और भारत तिब्बत सहयोग मंच के संरक्षक इंद्रेश कुमार ने कहा दुनिया शांति चाहती है, लेकिन यदि किसी के अधिकार छीने जाएंगे तो शांति कायम नहीं रह सकती। किसी को किसी के अधिकार नहीं छीनना चाहिए। यह सिर्फ हिमालय या एशिया पर नहीं हर जगह पर लागू होता है।
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