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    केवल कानूनी उत्तराधिकारी ही नि:संतान बुजुर्ग के भरण-पोषण के लिए उत्तरदायी, केरल हाई कोर्ट की अहम टिप्पणी

    Updated: Sun, 10 Aug 2025 11:30 PM (IST)

    केरल हाई कोर्ट ने एक महत्वपूर्ण फैसले में कहा कि निसंतान वरिष्ठ नागरिक का भरण-पोषण करने का दायित्व केवल कानूनी उत्तराधिकारी पर है। संपत्ति पर कब्जा होने मात्र से कोई व्यक्ति भरण-पोषण के लिए उत्तरदायी नहीं होगा जब तक कि वह कानूनी उत्तराधिकारी न हो। कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि रिश्तेदार की परिभाषा में कानूनी उत्तराधिकारी ही शामिल हैं न कि केवल संपत्ति धारक।

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    केवल कानूनी उत्तराधिकारी ही नि:संतान बुजुर्ग के भरण-पोषण के लिए उत्तरदायी : हाई कोर्ट

    माला दीक्षित, नई दिल्ली। केरल हाई कोर्ट ने नि:संतान वरिष्ठ नागरिक के भरण-पोषण मामले में अहम फैसला सुनाया है। हाई कोर्ट ने कहा कि केवल कानूनी उत्तराधिकारी ही नि:संतान वरिष्ठ नागरिक का भरण-पोषण करने के लिए उत्तरदायी है।

    किसी वरिष्ठ नागरिक की संपत्ति पर कब्जा अपने आप में भरण-पोषण का दायित्व नहीं बनाता, जब तक कि वह व्यक्ति लागू पर्सनल लॉ के तहत कानूनी उत्तराधिकारी न हो।

    हाई कोर्ट ने मेंटीनेंस ट्रिब्युनल और अपीलीय ट्रिब्युनल का फैसला खारिज करते हुए कहा कि अपीलकर्ता महिला बुआ सास (पति की बुआ) के भरण-पोषण के लिए उत्तरदायी नहीं है।

    मेंटीनेंस ट्रिब्युनल और अपीलीय ट्रिब्युनल ने माता-पिता व वरिष्ठ नागरिकों के भरण-पोषण और कल्याण कानून, 2007 के तहत महिला को बुआ सास का भरण-पोषण करने के लिए जिम्मेदार ठहराया था क्योंकि नि:संतान वरिष्ठ नागरिक की संपत्ति उसके पास थी।

    आखिर क्या है पूरा मामला?

    मामला यह है कि अपीलकर्ता महिला के पति की अविवाहित व नि:संतान बुआ ने अपनी संपत्ति भतीजे को उपहार में दे दी थी और भतीजे की मृत्यु के बाद वह संपत्ति उसकी पत्नी के पास चली गई थी।

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    ऐसे में भतीजे की मृत्यु के बाद बुजुर्ग महिला ने वरिष्ठ नागरिक भरण-पोषण कल्याण कानून के तहत भतीजे की पत्नी को भरण-पोषण का आदेश देने की मांग की थी।

    हाई कोर्ट ने महिला की याचिका पर क्या कहा? 

    केरल हाई कोर्ट के न्यायाधीश सतीश निनान और पी. कृष्ण कुमार की खंडपीठ ने बुआ सास के भरण-पोषण की जिम्मेदारी डालने वाले आदेश के विरुद्ध दाखिल महिला की याचिका स्वीकार करते हुए कहा कि उसे पति की बुआ का भरण-पोषण करने का आदेश नहीं दिया जा सकता क्योंकि वह माता-पिता एवं वरिष्ठ नागरिक भरण-पोषण अधिनियम की धारा 2(जी) के मुताबिक 'रिश्तेदार' की श्रेणी में नहीं आएगी।

    हाई कोर्ट ने स्पष्ट किया कि किसी वरिष्ठ नागरिक की संपत्ति पर कब्जा अपने आप में भरण-पोषण का दायित्व नहीं बनाता, जब तक कि वह व्यक्ति लागू पर्सनल ला के तहत कानूनी उत्तराधिकारी न हो। कोर्ट ने कहा कि जो व्यक्ति वरिष्ठ नागरिक का कानूनी उत्तराधिकारी नहीं है, वह कानून के तहत सिर्फ इस आधार पर 'रिश्तेदार' नहीं कहा जा सकता कि उसके पास वरिष्ठ नागरिक की संपत्ति है।

    हाई कोर्ट ने कहा कि वह उस फैसले से सहमत नहीं है जिसमें कहा गया है कि जो व्यक्ति नि:संतान वरिष्ठ नागरिक की संपत्ति का उत्तराधिकारी होगा, उसे उसका 'रिश्तेदार' माना जाएगा। हाई कोर्ट ने कहा कि ऐसा समझा जाना कानून की स्पष्ट भाषा के साथ अन्याय होगा।हाई कोर्ट ने कानून के तहत 'रिश्तेदार' की व्याख्या की है।

    कहा कि माता-पिता और वरिष्ठ नागरिक भरण पोषण कानून की धारा-पांच कहती है कि माता-पिता अपने बच्चों से भरण-पोषण का दावा कर सकते हैं और अगर वरिष्ठ नागरिक नि:संतान है तो वह अपने 'रिश्तेदार' से भरण-पोषण का दावा कर सकता है।

    कानून के मुताबिक वह व्यक्ति वरिष्ठ नागरिक का रिश्तेदार होना चाहिए। उसके पास भरण-पोषण के साधन होने चाहिए। उसके कब्जे में वरिष्ठ नागरिक की संपत्ति होनी चाहिए या उसे वरिष्ठ नागरिक की संपत्ति का उत्तराधिकार हो।

    कोर्ट ने कहा कि कानून में जो 'रिश्तेदार' की व्याख्या की गई है उसके मुताबिक नि:संतान वरिष्ठ नागरिक का कोई कानूनी उत्तराधिकारी, जो नाबालिग न हो और जिसके कब्जे में उसकी संपत्ति हो या वह उसकी संपत्ति पर उत्तराधिकार रखता है। हाई कोर्ट ने कहा कि इसका मतलब है कि वह व्यक्ति कानून के मुताबिक वरिष्ठ नागरिक के कानूनी उत्तराधिकारी के वर्ग या श्रेणी में आता हो।

    कोर्ट ने कहा कि कानूनी उत्तराधिकारी वही होता है जो पर्सनल ला के तहत संपत्ति पर उत्तराधिकार पाने का अधिकारी हो। इसलिए पहली शर्त है कि वह व्यक्ति पर्सनल ला के अनुसार वरिष्ठ नागरिक का कानूनी उत्तराधिकारी होना चाहिए।

    हाई कोर्ट ने कहा कि इसलिए जो व्यक्ति कानूनी उत्तराधिकारी नहीं है, वह कानून के मुताबिक वरिष्ठ नागरिक का 'रिश्तेदार' नहीं हो सकता। केवल संपत्ति पर कब्जा होने भर से या उसे उत्तराधिकार में संपत्ति मिलने से वह 'रिश्तेदार' नहीं माना जाएगा।

    हाई कोर्ट ने कहा कि इस मामले में अपीलकर्ता महिला भारतीय उत्तराधिकार अधिनियम के तहत वरिष्ठ नागरिक की कानूनी उत्तराधिकारी नहीं है, जो पक्षकारों पर लागू होता है। सिर्फ इस आधार पर कानून में उसे 'रिश्तेदार' नहीं माना जा सकता कि उस महिला ने अपने पति की संपत्ति पर उत्तराधिकार पाया है, जो वरिष्ठ नागरिक ने उपहार में दी थी।

    कोर्ट ने कहा कि अपीलकर्ता कानून के तहत 'रिश्तेदार' नहीं है इसलिए उस पर वरिष्ठ नागरिक अधिनियम की धारा 4(4) के तहत 'रिश्तेदार' होने के नाते भरण-पोषण का दायित्व नहीं डाला जा सकता। यह कहते हुए कोर्ट ने ट्रिब्युनल का फैसला रद कर दिया।

    हालांकि हाई कोर्ट ने कहा कि अगर वरिष्ठ नागरिक की गिफ्ट डीड के उल्लंघन के तहत कोई अधिकार बनता है तो उसके लिए उसमें उपचार का रास्ता खुला है।

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