Updated: Sun, 10 Aug 2025 08:01 PM (IST)
इलाहाबाद हाई कोर्ट ने एक महत्वपूर्ण फैसले में कहा कि किसी भी कार्य को करने का एक निर्धारित तरीका होता है और उसे उसी तरीके से किया जाना चाहिए। कोर्ट ने एक पुलिस सिपाही को बर्खास्त करने के आदेश को रद्द कर दिया क्योंकि जांच अधिकारी ने खुद ही बर्खास्तगी की सिफारिश की थी जो कि नियमों के खिलाफ था।
विधि संवाददाता, प्रयागराज। इलाहाबाद हाई कोर्ट ने कहा कि प्रशासनिक कानूनी सिद्धांत है कि किसी कार्य को प्राधिकारी द्वारा विशेष तरीके से करने का विधान हो तो वह कार्य उसी तरीके से किया जाना चाहिए।
कोर्ट ने विभागीय जांच अधिकारी द्वारा याची को आरोपों का दोषी करार देते हुए बर्खास्त करने की संस्तुति करने, फिर उसी आधार पर बर्खास्त किये जाने को कानूनी प्रक्रिया के विपरीत माना। 14 अप्रैल 2023 की जांच रिपोर्ट व 11 दिसंबर 2023 का बर्खास्तगी आदेश अवैध करार देते हुए रद कर दिया है।
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याची को बर्खास्तगी के समय की सेवा स्थिति बहाल करने का निर्देश दिया है। यह आदेश न्यायमूर्ति अजित कुमार की एकलपीठ ने बरेली के पुलिस सिपाही तौफीक अहमद की याचिका को स्वीकार करते हुए दिया है।
कोर्ट ने कहा कि यदि विभाग चाहे तो नियमानुसार तीन माह में नए सिरे से जांच की कार्यवाही कर सकता है। मामले के अनुसार याची के खिलाफ आरोपों की जांच के लिए जांच अधिकारी नियुक्त किया गया। उसने अपनी रिपोर्ट में याची को दोषी करार दिया। साथ ही बर्खास्त करने की संस्तुति भी कर दी।
कहा कि जांच रिपोर्ट के आधार पर सक्षम प्राधिकारी ने कारण बताओ नोटिस के बाद बर्खास्त कर दिया। आदेश पारित करते समय अपने स्वतंत्र विवेक का इस्तेमाल नहीं किया। याची ने जांच अधिकारी की दंड की संस्तुति की अधिकारिता पर सवाल उठाया।
कहा कि उत्तर प्रदेश पुलिस अधीनस्थ रैंक कर्मचारी (दंड एवं अपील) नियमावली 1991 के नियम 14(1) के अंतर्गत जांच अधिकारी को दंड की संस्तुति करने का अधिकार नहीं है। याची ने बलबीर सिंह केस का हवाला दिया। प्राधिकारी को ऐसी रिपोर्ट अस्वीकार करनी चाहिए थी। इसलिए याची की रिपोर्ट की संस्तुति पर की गई बर्खास्तगी अवैध है।
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