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    Monsoon Update: कैसे होती है मानसून की एंट्री, इस बार क्यों आया जल्दी? समझें पूरा साइंस

    Monsoon Arrival केरल में मानसून ने 24 मई को दस्तक दी जो सामान्य तिथि से 8 दिन पहले है। ऐसा आखिरी बार 2009 में हुआ था। मानसून मौसिम शब्द से बना है जिसका अर्थ मौसम होता है। यह एक जलवायु घटना है जिसमें हवाएं 120 से 180 डिग्री तक बदल जाती हैं। भारत में दो तरह के मानसून होते हैं समर मानसून और विंटर मानसून।

    By Digital Desk Edited By: Chandan Kumar Updated: Sun, 25 May 2025 06:48 PM (IST)
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    मानसून शब्द की उत्पत्ति अरबी भाषा के शब्द 'मौसिम' से हुई है, जिसका अर्थ है- ऋतु या मौसम।

    डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। केरल में शनिवार यानी 24 मई को मानसून ने दस्तक दे दी। इस बार मानसून अपने तय वक्त से 8 दिन पहले पहुंच गया। अब जुलाई तक मानसून पूरे देश तक पहुंच जाएगा। आखिरी बार 2009 में ऐसा हुआ था जब मानसून इतनी जल्दी पहुंच गया था। अगर उत्तर भारत की बात करें तो यह अममून 20-25 जून तक पहुंचता है।

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    लेकिन मानसून आता क्यों है और मानसून के जल्दी आ जाने के पीछे क्या वजह हैं? आइए इस खबर में जानते हैं इन सवालों के जवाब।

    मानसून क्या है और कैसे आता है?

    मानसून शब्द की उत्पत्ति अरबी भाषा के शब्द 'मौसिम' से हुई है, जिसका अर्थ है- ऋतु या मौसम। पुर्तगाली में इसे मान्सैओ कहते हैं। मानसून को रिवर्सल ऑफ विंड कहा जा सकता है। मानसून एक खास तरह की जलवायु घटना है। इस ऐसे समझें कि एक दिशा से कम से कम 120 डिग्री या पूरी तरह से 180 डिग्री तक हवाओं का पलट जाना। 

    मानसून का जादू शुरू होता है जब दक्षिण-पश्चिमी हवाएं, जिन्हें मानसून हवाएं कहते हैं, हिंद महासागर से भारत की ओर बढ़ती हैं। ये हवाएं अपने साथ नमी भरी बादल लाती हैं, जो पहाड़ों और मैदानों पर बरसते हैं। ये हवाएं इतनी ताकतवर होती हैं कि ये पूरे उपमहाद्वीप (Indian Subcontinent) में बारिश का पैटर्न तय करती हैं। इसकी चाल और ताकत का असर इस बात पर पड़ता है कि समुद्र की सतह कितनी गर्म है और हवाओं का रुख कैसा है।

     

    भारत के दो हिस्से में अलग तरीके से आता है मानसून

    तेज हवाएं और बारिश वाले बादल जब बंगाल की खाड़ी और अरब सागर में पहुंचते हैं, तो ये दो हिस्सों में बंट जाते हैं। इसका एक हिस्सा अरब सागर की ओर यानी गुजरात, मुंबई, राजस्थान से होते हुए आगे बढ़ता है। वहीं, इसका दूसरा हिस्सा बंगाल की खाड़ी से पश्चिम बंगाल, बिहार होते हुए हिमालय से टकराकर गंगा के तलहटी क्षेत्रों की ओर मुड़ जाता है। इस तरीके से मानसून भारत में दस्तक देता है।

    ये है मानसून के एंट्री की सामान्य तारीख और इस बार की हकीकत

    मॉनसून तिथियाँ

    स्थान सामान्य तिथि वास्तविक तिथि 2025
    पोर्ट ब्लेयर मई 21 मई 15 - 16
    तिरुवनंतपुरम जून 1 मई 24
    कोच्चि जून 1 मई 24
    बेंगलुरु जून 3 मई 24
    शिमोगा जून 4 मई 24
    करवार जून 5 मई 24

    स्रोत: आईएमडी

    कैसे पता करते हैं कब आने वाला है मानसून?

    मानसून का ऐलान करने से पहले मौसम विभाग कुछ तय मानकों को चेक करता है फिर मानसून के एंट्री की घोषणा कर देता है। अव्वल तो मौसम विभाग केरल और आसपास के इलाके में 14 तय मौसम केंद्रों में से कम से कम 60 फीसदी पर लगातार दो दिनों तक 2.5 मिलीमीटर या उससे ज्यादा बारिश हो।

    इसके साथ ही पश्चिमी हवा 15-20 नॉट की स्पीड से चलनी चाहिए। वहीं एक खास इलाके में आउटगोइंग लॉन्गवेव रेडिएशन (OLR) का स्तर 200 W/m² से कम होना चाहिए।

    अल नीना और ला नीना करते हैं असली खेल

    वास्तव में मानसून और बारिश के लिए दो स्थितियां (पैटर्न) जिम्मेदार होती हैं। इनमें एक है अल नीनो और दूसरी ला नीना। अल नीनो में समुद्र का तापमान तीन से चार डिग्री तक बढ़ जाता है।

    आमतौर पर इस स्थिति का प्रभाव 10 साल में दो बार देखने को मिलता है। इसका प्रभाव यह होता है कि ज्यादा बारिश वाले इलाकों में कम बारिश और कम बारिश वाले क्षेत्रों में अधिक बारिश होती है।

    दूसरी ओर, ला नीना में समुद्र का पानी खूब तेजी से ठंडा होने के कारण दुनिया भर के मौसम पर सकारात्मक असर पड़ता है। इससे बादल छाते हैं और बेहतर बारिश होती है।

    जल्दी मानसून आने के पीछे की क्या है वजह?

    इस साल वायुमंडलीय और समुद्री का कारक के सा-साथ स्थानीय कारक भी मानसून के जल्दी दस्तक देने की वजह बनी। इस साल मानसून अंडमान सागर और आसपास के क्षेत्रों में 13 मई को ही पहुंच गया था लेकिन इसकी पहुंचने की तारीख 21 मई थी। मौसम विभाग ने कई कारकों को मानसून के जल्दी आने के पीछे की वजह माना है।

    मानसून ट्रफ- यह एक लंबी निम्न-दबाव वाली पट्टी है, जो गर्मी के निम्न-दबाव क्षेत्र से लेकर उत्तरी बंगाल की खाड़ी तक फैली होती है। इस ट्रफ का उत्तर-दक्षिण में हिलना जून से सितंबर तक मुख्य मानसून क्षेत्र में बारिश का कारण बनता है।

    हीट-लो- गर्मियों में सूर्य के उत्तरी गोलार्ध की ओर बढ़ने से अरब सागर में एक निम्न-दबाव क्षेत्र विकसित होता है। पाकिस्तान और आसपास के इलाकों में एक मजबूत हीट-लो दबाव क्षेत्र मानसून ट्रफ के साथ नम हवा को खींचने का काम करता है, जिससे अच्छी बारिश होती है।

    मैडन-जूलियन ऑसिलेशन (MJO)- यह एक जटिल समुद्री-वायुमंडलीय घटना है, जो भारतीय मानसून को प्रभावित करती है और इसका उद्गम हिंद महासागर में होता है। इसमें बादल, हवा और दबाव का एक Disturbance 4-8 मीटर प्रति सेकंड की गति से पूरब की ओर बढ़ता है। 30 से 60 दिनों में MJO की हवाएं दुनिया का चक्कर लगा सकती हैं और अपने रास्ते में मौसम में बड़े बदलाव लाती हैं। अनुकूल चरण में यह मानसून के दौरान भारत में बारिश को तेज कर देता है।

    मस्करेन हाई- मानसून अवधि के दौरान मस्करेन द्वीप समूह (दक्षिण हिंद महासागर में) के आसपास एक उच्च-दबाव क्षेत्र बनता है। इस उच्च-दबाव की तीव्रता में बदलाव भारत के पश्चिमी तट पर भारी बारिश के लिए जिम्मेदार होता है।

    कुछ अन्य वजहें

    सोमाली जेट- यह एक निम्न-स्तरीय, अंतर-गोलार्धीय, भूमध्य रेखा को पार करने वाली हवा की पट्टी है, जो मॉरीशस और उत्तरी मेडागास्कर से शुरू होती है। मई में यह पूर्वी अफ्रीकी तट को पार करके अरब सागर और भारत के पश्चिमी तट तक पहुँचती है। मजबूत सोमाली जेट मानसून हवाओं को और ताकतवर बनाती है।

    कन्वेक्शन- वायुमंडल में गर्मी और नमी का ऊर्ध्वाधर स्थानांतरण, यानी कन्वेक्शन गतिविधि में वृद्धि, बारिश लाती है। उदाहरण के लिए, पिछले हफ्ते हरियाणा में एक कन्वेक्शन सिस्टम दक्षिण-पूर्व की ओर बढ़ा, जिससे दिल्ली क्षेत्र में बारिश हुई।

    प्रेशर ग्रेडिएंट और मानसून ऑनसेट वॉर्टेक्स- ये अरब सागर में एक चक्रवाती हवा है, जिसे मानसून ऑनसेट वॉर्टेक्स कहते हैं और प्रेशर ग्रेडिएंट भी अच्छे मानसून की शुरुआत में अहम भूमिका निभाते हैं। इन सभी कारकों की वजह से इस साल भारत में मानसून जल्दी दाखिल हो गया।

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